बुध्द विचारधारा में फालुन गोंग की उत्पत्ति फालुन शिउलियन दाफा[1] से हुई है। यह बुध्द विचारधारा की विशेष चीगोंग प्रणालियों में से एक है, किन्तु इसके अपने विशिष्ट गुण हैं जो इसे बुध्द विचारधारा के औसत साधना मार्गों से अलग करते हैं। यह साधना पध्दति एक विशेष, गहन साधना पध्दति है जिसमें साधकों के लिए अत्यंत ऊंचे महान जन्मजात गुणों की आवश्यकता रही है। अधिक अभ्यासी अपने में सुधार ला सकें और साथ ही एक बड़ी संख्या में निष्ठावान साधकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, मैंने इसकी पुनर्संरचना की है और इस वर्ग की साधना पध्दतियों को सार्वजनिक किया है जो अब लोक प्रचार के लिए उपयुक्त हैं। परिवर्तनों के बावजूद, यह अभ्यास दूसरे अभ्यासों से उनकी शिक्षाओं और स्तरों में कहीं आगे है।
1. फालुन का अर्थ
फालुन गोंग के फालुन की वही प्रकृति है जो ब्रह्माण्ड की है, क्योंकि यह ब्रह्माण्ड का ही लघु रूप है। फालुन गोंग के साधक न केवल तेजी से अपनी अलौकिक सिध्दियां और गोंग सामर्थ्य विकसित करते हैं, वे बहुत कम समय में एक बहुत शक्तिशाली फालुन भी विकसित करते हैं। एक बार विकसित होने पर, व्यक्ति का फालुन एक चेतन सत्ता की तरह अस्तित्व में रहता है। यह साधक के उदर के निचले भाग में स्वत: लगातार घूमता है, ब्रह्माण्ड से सतत ऊर्जा ग्रहण तथा परावर्तित करता रहता है और अन्तत: अभ्यासी की ''बनती'' में ऊर्जा को गोंग में बदलता है। परिणामस्वरूप, ''फा द्वारा अभ्यासी को परिष्कृत करने'' के प्रभाव की प्राप्ति होती है। इसका अर्थ यह है कि फालुन उस व्यक्ति को लगातार परिष्कृत करता रहता है, उस समय भी जब वह अभ्यास नहीं कर रहा होता है। आन्तरिक रूप से, फालुन व्यक्ति को मुक्ति प्रदान है। यह व्यक्ति को स्वस्थ और बलशाली, अधिक मेधावी और बुध्दिमान बनाता है, और अभ्यासी को भटकने से बचाता है। यह साधक की निम्न नैतिकगुण वाले लोगों द्वारा उत्पन्न बाधा से भी रक्षा कर सकता है। बाहरी तौर से, फालुन उदर के निचले भाग में सतत घूमता रहता है, नौ बार घड़ी की दिशा में तथा उसके बाद नौ बार घड़ी की विपरीत दिशा में। घड़ी की दिशा में घूमते हुए, यह ब्रह्माण्ड से तेजी से ऊर्जा सोखता है और यह ऊर्जा बहुत सघन होती है। जैसे जैसे व्यक्ति का गोंग सामर्थ्य बढ़ता है इसकी घूर्णन शक्ति भी सुदृढ़ होती जाती है। यह वह स्थिति है जो ची को जबरन सर के उपर से भर लेने से प्राप्त नहीं होती। घड़ी के विपरीत दिशा में घूमते हुए, यह ऊर्जा का निष्कासन करता है तथा सभी जीवों का कल्याण करता है, तथा असामान्य दशाओं को ठीक करता है। अभ्यासी के आसपास के लोग लाभान्वित होते हैं। हमारे देश में सिखाई जाने वाली सभी चीगोंग पध्दतियों में, फालुन गोंग पहली तथा केवल एक साधना प्रणाली है जो ''फा द्वारा अभ्यासी को परिष्कृत करने की'' उपलब्धि को पूर्ण करती है।
फालुन अत्यंत बहुमूल्य है और इसे धन से नहीं मापा जा सकता। जब मेरे गुरु ने मुझे फालुन प्रदान किया था, उन्होंने मुझे कहा था कि फालुन किसी और को नहीं दिया जाना चाहिए; उन लोगों को भी नहीं जो एक हजार वर्ष या उससे भी अधिक समय से साधना कर रहे हैं। यह साधना पध्दति केवल एक व्यक्ति को बहुत, बहुत समय के अंतराल पर ही प्रदान की जा सकती है, उन पध्दतियों की तरह नहीं जो कुछ दशाब्दियों बाद ही दे दी जाती हैं। इसलिए, फालुन अत्यंत बहुमूल्य है। इसे अब सार्वजनिक रूप से सुलभ करने के लिए हमने इसमें परिवर्तन करके इसे कम शक्तिशाली कर दिया है, फिर भी यह अत्यंत बहुमूल्य है। जिन साधकों ने इसे प्राप्त कर लिया है उनकी आधी साधना पूर्ण हो गई है। अब जो करना है वह केवल यह है कि आप अपने नैतिकगुण में सुधार लाऐं, और एक उच्च स्तर आपकी प्रतीक्षा में है। निश्चित रूप से, जिन लोगों के लिए यह पूर्व निर्धारित नहीं है वे कुछ साधना के बाद रूक जाएंगे, और उनका फालुन लुप्त हो जायेगा।
फालुन गोंग बुध्द विचारधारा से संबंधित है, किन्तु इसका उद्देश्य बुध्द विचारधारा से कहीं अधिक है : फालुन गोंग संपूर्ण ब्रह्माण्ड के अनुसार साधना करता है। विगत में, बुध्द विचारधारा की साधना में केवल बुध्द विचारधारा के सिध्दांत बताये जाते थे, जबकि ताओ विचारधारा की साधना में केवल ताओ विचारधारा के सिध्दान्तों की चर्चा की जाती थी। दोनों में से किसी ने भी ब्रह्माण्ड की उसके मूल स्तर पर संपूर्ण व्याख्या नहीं की। ब्रह्माण्ड मनुष्यों के समान है क्योंकि, भौतिक संरचना के साथ-साथ, इसकी अपनी प्रकृति है। इस प्रकृति को संक्षेप में तीन शब्दों : ज़न-शान-रेन में व्यक्त किया जा सकता है। ताओ विचारधारा साधना का ज्ञान ''ज़न'' पर केन्द्रित है : सत्य बोलना, सच्चे कार्य करना, अपने मूल सच्चे स्वभाव की ओर लौटना, और अन्तत: एक सत् पुरुष बनना। बुध्द विचारधारा साधना ''शान'' पर केन्द्रित है : महान अनुकम्पा विकसित करना, और सभी जीवों को मुक्ति प्रदान करना। हमारा साधना मार्ग ज़न, शान, रेन तीनों की एक साथ साधना करता है, जो सीधे ब्रह्माण्ड की मूल प्रकृति के अनुसार साधना है और अन्त में अभ्यासी का ब्रह्माण्ड के साथ ऐकीकरण कराता है।
फालुन गोंग मन और शरीर दोनों की साधना प्रणाली है; जब अभ्यासी का गोंग सामर्थ्य और नैतिकगुण दोनों एक विशिष्ट स्तर तक पहुंच जाते हैं, तब इसके लिए इस संसार में ज्ञान प्राप्ति (गोंग के खुलने की स्थिति (काई गोंग)) और अमर शरीर दोनों की प्राप्ति अवश्यंभावी है। साधारणतया फालुन गोंग को त्रि-लोक-फा तथा पार-त्रिलोक-फा में वर्गीकृत किया जाता है, जिसमें कई और स्तर सम्मिलित हैं। मुझे विश्वास है कि सभी समर्पित अभ्यासी परिश्रम से साधना करेंगे तथा अपने नैतिकगुण में सतत सुधार लाएंगे जिससे वे मोक्ष की प्राप्ति तक पहुंच सकें।
2. फालुन की संरचना
फालुन गोंग का फालुन एक चेतन, उच्च शक्ति तत्वों की घूर्णन करती हुई संरचना है। यह ब्रह्माण्ड की संपूर्ण महान गतिशीलता की लय के अनुसार घूमता है। एक प्रकार से, फालुन ब्रह्माण्ड का एक लघु रूप।
फालुन के केन्द्र में बुध्द विचारधारा का श्रीवत्स , प्रतीक है (संस्कृत में श्रीवत्स का अर्थ है ''सारे सौभाग्य का एकीकरण'' - सी हाई शब्दकोश के अनुसार), जो फालुन का केन्द्र है। इसका रंग सुनहरी पीले के समीप है, और इसका आधार रंग चमकीला लाल है। बाहरी घेरे का आधार रंग नारंगी है। आठ दिशाओं में चार ताइची[3] प्रतीक और क्रमबध्द चार बुध्द विचारधारा के श्रीवत्स स्थित हैं। लाल और काले रंग के ताइची ताओ विचारधारा से संबंधित हैं, जबकि लाल और नीले रंग के ताइची महान आदि ताओ विचारधारा के हैं। चार लघु श्रीवत्स भी सुनहरी पीले हैं। फालुन का मूल रंग क्रमश: लाल से नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला और बैंगनी रंगों में बदलता रहता है। ये रंग असाधारण रूप से सुंदर होते हैं (रंगीन चित्र देखें)। मध्य श्रीवत्स और ताइची के रंग नहीं बदलते। विभिन्न आकार के श्रीवत्स , फालुन की ही भांति, स्वयं घूर्णन करते हैं। फालुन का मूल ब्रह्माण्ड में है। ब्रह्माण्ड घूम रहा है, सभी आकाश गंगाऐं घूम रही हैं, और इसी प्रकार फालुन भी घूम रहा है। जिनका तीसरा नेत्र निम्न स्तरों पर है फालुन को पंखे की तरह घूमते हुए देख सकते हैं; जिनका तीसरा नेत्र ऊंचे स्तरों पर है वे फालुन का संपूर्ण रूप देख सकते हैं, जो अत्यंत सुंदर और मनोहारी है, और यह अभ्यासियों को और परिश्रम के साथ साधना करने तथा शीघ्रता से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
3. फालुन गोंग साधना की विशिष्टताऐं
(1) फा अभ्यासी को परिष्कृत करता है
जो लोग फालुन गोंग का अभ्यास करते हैं वे शीघ्रता से न केवल अपना गोंग सामर्थ्य और अलौकिक सिध्दियां बढ़ा पाते हैं, बल्कि साधना से एक फालुन भी प्राप्त करते हैं। फालुन अल्प समय में ही विकसित हो जाता है, एक बार बन जाने पर यह बहुत शक्तिशाली होता है। यह अभ्यासियों को गलत राह पर भटकने से तथा निम्न नैतिकगुण वाले लोगों के हस्तक्षेप से बचा सकता है। फालुन गोंग के सिध्दांत पारंपरिक साधना पध्दतियों से सर्वथा भिन्न हैं। यह इसलिए क्योंकि एक बार फालुन विकसित हो जाने पर, यह स्वयं सतत आवर्तन करता है; इसका अस्तित्व एक चेतन सत्ता के रूप में है जो अभ्यासी के उदर के निचले भाग में निरन्तर ऊर्जा एकत्रित करता है। फालुन घूर्णन द्वारा ब्रह्माण्ड से स्वत: ऊर्जा एकत्रित करता है। फालुन ''फा द्वारा अभ्यासी को परिष्कृत करने'' का ध्येय इसीलिए प्राप्त कर लेता है क्योंकि यह बिना रूके घूमता है, जिसका अर्थ है फालुन लोगों का बिना रूके संवर्धन करता रहता है यद्यपि वे हर पल क्रियाऐं नहीं कर रहे होते हैं। जैसा कि आप सब जानते हैं, साधारण लोगों को दिन में काम करना होता है और रात में सोना होता है। इससे क्रियाओं के लिए सीमित समय बचता है। पूरे समय क्रियाऐं करने के विचार भर से दिन में निस्तर चौबीस घंटे क्रियाऐं करने का परिणाम प्राप्त नहीं होगा। पूरे समय निरन्तर क्रियाऐं करने का ध्येय किसी भी और पध्दति द्वारा संभव नहीं है। जबकि फालुन बिना रूके घूमता रहता है तथा अंदर की ओर घूमते हुए यह अत्यधिक मात्रा में ची (शक्ति का आरंभिक अस्तित्व) एकत्रित करता है। रात दिन, फालुन एकत्रित ची को फालुन के प्रत्येक भाग में संचित तथा परावर्तित करता रहता है। यह ची को उच्च स्तरीय तत्वों में परिवर्तित करता है, और अंतत: साधक के शरीर में इसे गोंग में परिवर्तित कर देता है। यही ''फा द्वारा अभ्यासी को परिष्कृत करना'' कहलाता हैं। फालुन गोंग की साधना दूसरी अभ्यास प्रणालियों या चीगोंग साधना पध्दतियों से सर्वथा भिन्न है, जहां तान[4] का संवर्धन किया जाता है।
फालुन गोंग की मुख्य विशेषता यह है कि यह फालुन की साधना है न कि ''तान'' की। अभी तक, जितनी भी साधना पध्दतियां सार्वजनिक की गई हें, भले ही वे किसी भी विचारधारा अथवा साधना मार्ग से हों चाहे वे बुध्दमत अथवा ताओ मत की हों, बुध्द अथवा ताओ विचारधारा की हों, या लोगों में प्रचलित मार्गों की हों ''तान'' की साधना करती हैं। यही पार्श्व द्वार साधना मार्गों में होता है। वे तान-पध्दति के चीगोंग[5] कहलाते हैं। साधु, साध्वी तथा ताओ साधक, ''तान'' साधना का यही मार्ग अपनाते हैं। उनकी मृत्यु के पश्चात यदि उन्हें चिताग्नी दी जाती है, तो सरीर[6] का निर्माण होता है, जो एक कठोर और सुंदर तत्व के बने होते हैं जिसका आधुनिक विज्ञान को ज्ञान नहीं है। वास्तव में, वह एक उच्च शक्ति तत्व है, जो दूसरे आयामों से एकत्रित किया गया है न कि हमारे आयाम से। यही ''तान'' है। जो तान-पध्दति चीगोंग का अभ्यास करते हैं उनके लिए व्यक्ति के जीवनकाल में ज्ञान की प्राप्ति बहुत कठिन होती है। ऐसा होता था कि कई लोग तान-पध्दति चीगोंग का अभ्यास करते थे, अपने ''तान'' को उठाना चाहते थे। एक बार नीवान महल[7] तक उठने के बाद यह बाहर की ओर नहीं निकल पाया, और इस प्रकार ये लोग वहीं तक सीमित रह गए। कुछ लोग जानबूझ कर उसका विस्फोट करना चाहते थे किन्तु उनके पास ऐसा करने के लिए कोई मार्ग नहीं था। कुछ घटनाऐं इस प्रकार की थीं : एक व्यक्ति का दादा साधना में सफल नहीं हुआ, इसलिए अपनी जीवन अवधि पूरी होने पर उसने अपना ''तान'' निष्कासित कर दिया और इस व्यक्ति के पिता को हस्तान्तरित कर दिया; उसका पिता साधना में सफल नहीं हुआ, इसलिए उसकी जीवन अवधि समाप्त होने पर उसने इसे निष्कासित किया और इस व्यक्ति को हस्तान्तरित कर दिया। आज तक यह व्यक्ति कुछ विशेष प्राप्त नहीं कर पाया। यह वास्तव में कठिन है! अवश्य ही, कई अच्छी साधना प्रणालियां हैं। यदि आप किसी से सच्ची शिक्षा प्राप्त कर पायें तो कुछ बुरा नहीं है; किन्तु हो सकता है कि वह आपको ऊंचे स्तर की शिक्षा न दें।
(2) मुख्य चेतना की साधना
सभी के पास एक मुख्य चेतना है। कार्य करने और सोचने के लिए व्यक्ति साधारणतय: अपनी मुख्य चेतना पर निर्भर होता है। मुख्य चेतना के अतिरिक्त व्यक्ति के पास एक या उससे अधिक सह चेतनाएं और पुरखों से वंशानुगत प्राप्त चेतनाएं भी होती हैं। सह चेतना (ओं) का वही नाम होता है जो मुख्य चेतना का है किन्तु साधारणतया यह अधिक सक्षम और ऊंचे स्तर की होती है। वह हमारे मानव समाज में भ्रमित नहीं होती और यह अपने विशिष्ट आयाम को देख सकती है। कई साधना पध्दतियां सहचेतना की साधना के मार्ग को अपनाती है, जिसमें व्यक्ति का शरीर और मुख्य चेतना केवल एक वाहन का कार्य करते हैं। ये साधक साधारणतया इन बातों के बारे में नहीं जानते, और स्वयं के बारे में उनकी धारणा अच्छी ही होती है। समाज में रहते हुए व्यक्ति के लिए यह अत्यंत कठिन है कि वह व्यवहारिक वस्तुओं के मोह से दूर रह सके, विशेषकर उन वस्तुओं से जिनसे उसे आसक्ति है। इसीलिए, कई साधना पध्दतियों में क्रियाओं को अचेतन अवस्था में करने पर बल दिया जाता है पूर्णतय: अचेतन अवस्था में। जब अचेतन अवस्था के दौरान रूपान्तरण होता है, तब वास्तव में सह चेतना एक भिन्न समाज में रूपान्तरित होती है और इस क्रम में उसका संवर्धन होता है। एक दिन सहचेतना अपनी साधना को पूर्ण कर लेगी और आपका गोंग ले जाएगी। आपकी मुख्य चेतना और आपके मूल शरीर के पास कुछ नहीं बचेगा, और आपकी जीवन भर की साधना फलित होने से पहले ही समाप्त हो जाएगी। यह बड़े दु:ख की बात है। कुछ प्रसिध्द चीगोंग गुरु सभी प्रकार की अलौकिक शक्तियों के स्वामी होते हैं, और उसके साथ ही प्रसिध्दि और आदर को प्राप्त करते हैं। किन्तु वे भी नहीं जानते कि उनका गोंग वास्तव में उनको शरीर पर विकसित नहीं हुआ है।
हमारा फालुन गोंग प्रत्यक्षत: मुख्य चेतना की साधना करता है। हम सुनिश्चित करते हैं कि गोंग वास्तव में आपके शरीर पर विकसित हो। वास्तव में सहचेतना को भी उसका भाग मिलेगा; इसका भी संवर्धन होता है किन्तु अप्रधान स्थिति में। हमारी साधना पध्दति में कड़े नैतिकगुण मानदंड की आवश्यकता होती है जो मानव समाज में, अत्यधिक जटिल अवस्थाओं के बीच - कीचड़ में उगते हुए कमल पुष्प की तरह, आपके नैतिकगुण को दृढ़ करता है और सुधार लाता है। इसी कारण आप साधना में सफल हो सकते हैं। वही कारण है कि फालुन इतना बहुमूल्य है : यह बहुमूल्य है क्योंकि, यह स्वयं आप ही हैं जो गोंग प्राप्त करते हैं। किन्तु यह बहुत कठिन भी है। यह कठिनाई इस कारण है क्योंकि आपने जो मार्ग चुना है वह सर्वाधिक जटिल परिस्थिति में आपको दृढ़ करेगा और आपकी परीक्षा लेगा।
व्यक्ति की साधना निर्देशित करने के लिए मुख्य चेतना का ही प्रयोग होना चाहिए, क्योंकि हमारे अभ्यास का लक्ष्य मुख्य चेतना की साधना है। मुख्य चेतना को निर्णय लेना चाहिए, न कि सहचेतना पर टाल देना चाहिए। अन्यथा ऐसा दिन आएगा जब सहचेतना एक ऊंचे स्तर पर अपनी साधना पूर्ण कर लेगी और साथ ही आपका गोंग ले जाएगी, जबकि आपके मूल शरीर और मुख्य चेतना के पास कुछ शेष नहीं बचेगा। जब आप ऊंचे स्तरों की साधना कर रहे हों, आपकी मुख्य चेतना इस अज्ञान में नहीं रहनी चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं, जैसे यह सुशुप्त अवस्था में हो। आपको स्पष्ट होना चाहिए कि यह आप हैं जो क्रियाएं कर रहे हैं, साधना में आगे बढ़ रहे हैं, और अपने नैतिकगुण में सुधार ला रहे हैं केवल तभी आप नियंत्रण में रहेंगे और गोंग प्राप्त करने में सक्षम हो सकेंगे। कई बार जब आपका मन कहीं और होता है आप कुछ कार्य पूर्ण कर लेते हैं बिना यह जाने कि यह कैसे हुआ। वास्तव में यह आपकी सहचेतना है जो अपना प्रभाव दिखा रही है; आपकी सह चेतना के अधिकार में हैं। ध्यान मुद्रा में बैठे हुए यदि आप आसपास देखने के लिए अपनी आंखें खोलें और आपके दूसरी ओर कोई दूसरे आप हैं, तो वह आपकी सहचेतना है। यदि आप ध्यान मुद्रा में उत्तर की ओर मुख करके बैठे हों, किन्तु एकाएक आप पाएं कि आप उत्तर दिशा में बैठे हैं, और आश्चर्य से सोचें, ''मैं बाहर कैसे निकला?'', तब यह आपकी वास्तविक चेतना है जो बाहर आई। जो आपके हाड़मास के शरीर में बैठी है वह आपकी सहचेतना है। इनमें अंतर किया जा सकता है। जब आप फालुन गोंग की क्रियाएं करते हैं आपको अपने बारे में पूर्ण रूप से अचेतन नहीं हो जाना चाहिए। ऐसा करना फालुन गोंग साधना के महामार्ग के अनुरूप नहीं है। क्रियाएं करते हुए आपको अपना मन स्पष्ट रखना चाहिए। यदि आपकी मुख्य चेतना प्रबल है तो अभ्यास के दौरान भटकाव नहीं होगा, क्योंकि कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता। यदि मुख्य चेतना क्षीण है तो हो सकता है आपके शरीर में कुछ वस्तुएं प्रवेश कर जाएं।
(3) क्रियाओं में दिशा और समय का बन्धन नहीं है।
साधना की कई पध्दतियों में यह विशेष ध्यान दिया जाता है कि किस समय और किस दिशा में उनकी क्रियाएं करना उत्ताम हैं। हमें इससे कोई सरोकार नहीं है। फालुन गोंग की साधना ब्रह्माण्ड की प्रकृति के अनुसार और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सिध्दान्तों के अनुसार की जाती है। इसलिए दिशा और समय महत्वपूर्ण नहीं है। हम, वास्तव में, जब क्रियाएं कर रहे होते हैं तो फालुन में स्थित होते हैं, जो सभी दिशाओं में व्याप्त है और सतत् आवर्तन कर रहा है। हमारा फालुन ब्रह्माण्ड के साथ समयबध्द है। ब्रह्माण्ड गतिशील है, आकाश गंगा गतिशील है, नौ ग्रह सूर्य के चारों ओर घूम रहे हैं, तथा पृथ्वी स्वयं भी घूम रही है। किस और उत्तर, पूर्व, दक्षिण या पश्चिम है? ये दिशाएं पृथ्वी पर रहने वाले लोगों ने बनाई हैं। इसीलिए भले ही आप जिस दिशा की ओर मुख करें, आप सभी दिशाओं के सम्मुख होते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि मध्य रात्रि में क्रियाएं करना सर्वोत्ताम हैं, जबकि कुछ कहते हैं कि दोपहर या कोई और समय सर्वोत्ताम है। हमें इससे भी कोई सरोकार नहीं है, क्योंकि फालुन तब भी आपका संवर्धन करता है जब आप क्रियाएं नहीं कर रहे होते हैं। फालुन हर पल साधना करने में आपकी मदद करता रहता है फा अभ्यासी को परिष्कृत करता है। तान-पध्दति चीगोंग में, यह फा है जो लोगों का संवर्धन करता है। जब आपके पास समय हो आप अधिक क्रियाएं करें, और जब समय कम हो तब आप कम क्रियाएं करें। यह बहुत सुविधाजनक है।
4. मन और शरीर दोनों की साधना
फालुन गोंग मन और शरीर दोनों का संवर्धन करता है। क्रियाएं करने से सर्वप्रथम व्यक्ति की ''बनती'' में बदलाव आता है। ''बनती'' को छोड़ नहीं दिया जाता है। मुख्य चेतना मनुष्य के भौतिक शरीर के साथ एकसार हो जाती है, जिससे पूरे व्यक्ति के पूरे अस्तित्व की साधना की प्राप्ति होती है।
(1) व्यक्ति की ''बनती'' का परिवर्तन
मनुष्य का शरीर मांस, रक्त व हड्डियों का बना होता है जिनके अणुओं की संरचना और अव्यव भिन्न-भिन्न होते हैं। साधना के द्वारा मानव शरीर की अणु संरचना उच्च शक्ति तत्व में परिवर्तित हो जाती है। तब मानव शरीर अपने मूल तत्वों से निर्मित नहीं रह जाता, क्योंकि इसकी मूल प्रकृति में ही बदलाव आ जाता है। किन्तु साधक साधारण व्यक्तियों के बीच ही रहते हैं और साधना करते हैं और वे मानव समाज के तौर-तरीकों में व्यवधान उत्पन्न नहीं कर सकते। इसीलिए इस प्रकार के परिवर्तन से न तो शरीर की मूल अणु-संरचना में बदलाव आता और न ही उस श्रेणी में जिस श्रेणी में अणु व्यवस्थित होते हैं; यह केवल मूल अणुओं के पदार्थ को बदलता है। शरीर का मांस लचीला रहता है, हड्डियों सख्त रहती हैं, और रक्त भी तरल बहता है। चाकू से काटने पर रक्त अब भी निकलेगा। चीन के पंच तत्व सिध्दांत के अनुसार, सभी कुछ धातु, लकड़ी, जल, अग्नि और पृथ्वी से बना है। मानव शरीर भी भिन्न नहीं है। जब एक साधक के मूल शरीर में बदलाव आते हैं जिसमें मूल अणु तत्व उच्च शक्ति तत्वों में परिवर्तित हो जाते हैं, तो उस स्थिति में मनुष्य शरीर अपने मूल तत्वों से बना हुआ नहीं रह जाता। ''पंच तत्वों के पार जाने'' की कहावत के पीछे यही सिध्दांत है।
मन और शरीर दोनों का संवर्धन करने वाली साधना पध्दतियों की सबसे अधिक ध्यान देने योग्य विशेषता यह है वे व्यक्ति की आयु में वृध्दि करती हैं और वृध्दावस्था को रोकती हैं। हमारे फालुन गोंग में भी यह विशेषता है। फालुन गोंग इस प्रकार कार्य करता है : यह मानव शरीर की अणु संरचना को आधारभूत तरीके से परिवर्तित कर देता है, इकट्ठा किया हुआ उच्च शक्ति तत्व प्रत्येक कोशिका में एकत्रित करता है और अंतत: इस उच्च शक्ति तत्व से कोशिका अव्यवों को बदलने देता है। इसके बाद उपापचयन नहीं होता। इस प्रकार व्यक्ति पंच तत्व के परे हो जाता है, क्योंकि उसका शरीर दूसरे आयामों से आए तत्वों से बने शरीर में परिवर्तित हो गया है। यह व्यक्ति चिर युवा रहेगा, क्योंकि वह हमारे काल-आकाश के बन्धन में नहीं रह गया है।
इतिहास में कई सिध्द योगी हुए हैं जिनका जीवनकाल बहुत अधिक था। अब भी सड़कों पर घूमते हुए ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनकी आयु सैंकड़ों वर्ष है, केवल आप यह नहीं बता सकते कि वे कौन हैं, आप उन्हें नहीं पहचान सकते, क्योंकि वे बहुत युवा दिखते हैं और साधारण व्यक्तियों की भांति कपड़े पहनते हैं। मनुष्य का जीवनकाल उतना कम नहीं होना चाहिए जितना कि अब है। आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से कहा जाए तो, लोगों को दो सौ वर्ष से अधिक जीवित रहना चाहिए। आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन में फेम काथ नाम का व्यक्ति था जो दो सौ सात वर्ष तक जीवित रहा। जापान का एक व्यक्ति मितसू ताइरा दो सौ ब्यालिस वर्ष तक जीवित रहा। हमारे देश में तांग राजवंश के दौरान, हुई झाओ नामक साधु था जो दो सौ नब्बे वर्ष तक जीवित रहा। फूजियान[8] राज्य में यौंग ताई के इतिहास लेखों के अनुसार, चेन जुन का जन्म तांग राजवंश में सम्राट शीजांगै के राज्यकाल में झौंग समय (881 ए.डी.) के प्रथम वर्ष में हुआ। वह 443 वर्ष जीवित हरने के बाद, यूवान राजवंश में ताई डिंग समय (1324 ए.डी.) में मृत्यु को प्राप्त हुआ। ये सब दस्तावेजों में दर्ज है और उसकी छानबीन की जा सकती है[9] ये केवल परिकथाएं नहीं हैं। हमारे फालुन गोंग अभ्यासियों के चेहरों पर भी झुरियां स्पष्ट रूप से कम हो जाती हैं, और एक गुलाबी स्वस्थ चमक आ जाती है, और यह साधना के कारण होता है। उनके शरीर बहुत हल्के जान पड़ते हैं, और चलते हुए या कार्य करते हुए उन्हें जरा भी थकान नहीं होती। सामान्यत: ऐसा होता है। मैंने स्वयं भी कई दशाब्दियों तक साधना की है और दूसरे लोग कहते हैं कि पिछले बीस वर्षों में मेरे चेहरे पर अधिक बदलाव नहीं आए हैं। यही कारण है। हमारे फालुन गोंग में शरीर के संवर्धन के लिए बहुत शक्तिशाली वस्तुएं निहित हैं। फालुन गोंग साधक उम्र में साधारण लोगों से बिल्कुल अलग दिखते हैं वे अपनी वास्तविक उम्र से कम के दिखते हैं। इसीलिए मन और शरीर दोनों के संवर्धन करने वाली साधना पध्दतियों की प्राथमिक विशेषता है कि : आयु बढ़ती है, बुढ़ापा रूकता है, और लोगों की दीर्घायु होने की संभावना बढ़ जाती है।
(2)
फालुन अलौकिक परिपथ
हमारा मानव शरीर एक लघु ब्रह्माण्ड है। मनुष्य शरीर की शक्ति शरीर के चारों ओर घूमती है, और इसे लघु ब्रह्माण्ड घूर्णन, या अलौकिक घूर्णन कहा जाता है। स्तरों की दृष्टि से कहा जाए तो, दो नाड़ियों रेन और डू को मिलाना केवल एक छद्म अलौकिक परिपथ है। इससे शरीर के संवर्धन का प्रभाव प्राप्त नहीं होता। लघु अलौकिक परिपथ, वास्तविक अर्थ में, शरीर के अन्दर नीवान महल से तान त्येन तक परिभ्रमण करता है। इस आन्तरिक परिभ्रमण द्वारा व्यक्ति की सभी नाड़ियां खुल जाती हैं और उनमें शरीर के अन्दर से बाहर की ओर फैलाव होता है। हमारे फालुन गोंग में आरम्भ से ही सभी नाड़ियां खोल दी जाती हैं।
वृहत् अलौकिक परिपथ आठ अतिरिक्त शक्ति नाड़ियों[10] का घुमाव है, और यह पूरे शरीर के साथ-साथ परिधि करता है जिससे एक क्रम पूरा होता है। यदि वृहत् अलौकिक परिपथ खोल दिया जाये, तो इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी जिसमें व्यक्ति धरातल से उठ कर हवा में तैर सकता है। ''दिन में उड़ने'' का यही अर्थ है, जो तान साधना के शास्त्रों में लिखा है। यद्यपि, आपके शरीर का एक भाग बांध दिया जायेगा जिससे आप उड़ने में असमर्थ होंगे। हालांकि इससे आप इस स्थिति में आ जायांगे : आप तेजी से और बिना परिश्रम चलेंगे, और जब आप चढ़ाई पर चढ़ रहे होंगे तो ऐसा लगेगा जैसे कोई पीछे से धकेल रहा है। वृहत् अलौकिक परिपथ के खुलने से एक प्रकार की अलौकिक सिध्दि भी उत्पन्न हो सकती है। यह शरीर के विभिन्न अंगों में व्याप्त ची को स्थान बदलने में समर्थ कर सकता है। हृदय की ची उदर में जा सकती है, उदर की ची आंतों में जा सकती है, इत्यादि। जैसे-जैसे व्यक्ति का गोंग सामर्थ्य सुदृढ़ होता है, यदि इस सिध्दि को शरीर के बाहर उपयोग किया जाए तो यह दूर-स्थानांतरण की अलौकिक सिध्दि बन जाएगी। इस प्रकार के अलौकिक परिपथ को नाड़ी अलौकिक परिपथ या स्वर्ग और पृथ्वी अलौकिक परिपथ भी कहा जाता है। किन्तु इसके परिभ्रमण से भी शरीर के रूपान्तरण का ध्येय प्राप्त नहीं होगा। इसके समानांतर एक दूसरा अलौकिक परिपथ होना आवश्यक है जिसे परिधि रेखा अलौकिक परिपथ कहते हैं। परिधि रेखा अलौकिक परिपथ इस प्रकार परिभ्रमण करता है : यह हुइयिन बिंदु[11] या बाईहुइ बिंदु[12] से निकलता है और शरीर के साथ-साथ, जहां यिन और यांग[13] की परिधि है, घूमता है।
फालुन गोंग में अलौकिक परिपथ आठ अतिरिक्त नाड़ियों के परिभ्रमण की तुलना में जिनकी चर्चा साधारण पध्दतियों में की जाती है, बहुत अधिक है। यह पूरे शरीर में स्थित आर-पार जाने वाली सभी शक्ति नाड़ियों का परिभ्रमण है। पूरे शरीर की सभी शक्ति नाड़ियों को एक साथ पूरी तरह खोलना आवश्यक है, और वे सभी एक साथ घूमनी चाहिएं। ये सभी वस्तुएं फालुन गोंग में पहले से ही निहित हैं, इसलिए आपको जानबूझ कर उन्हें करने अथवा अपने विचारों द्वारा संचालित करने की आवश्यकता नहीं है। यदि आप ऐसा करेंगे तो आप भटक सकते हैं। व्याख्यानों के दौरान, मैं आपके शरीर के बाहर शक्ति यन्त्र स्थापित करता हूं जो स्वत: परिभ्रमण करते हैं। शक्ति यन्त्र ऊंचे स्तर की साधना से संबंधित विलक्षण वस्तुएं हैं, और वे इसी का भाग हैं जिससे हमारी क्रियायें स्वचालित हो जाती हैं। फालुन की ही भांति, वे सतत घूमती हैं, और सभी आंतरिक नाड़ियों का परिभ्रमण करती हैं। यदि आपने अलौकिक परिपथ को क्रियाशील नहीं किया है, उन नाड़ियों को पहले से ही घूमने के लिए क्रियाशील किया जा चुका है, और आंतरिक तथा बाहरी स्तर पर वे एक साथ घूम रही हैं। हम अपनी क्रियाओं का प्रयोग शरीर के बाहर विद्यमान शक्ति यन्त्रों को सुदृढ़ करने के लिए करते हैं।
(3) शक्ति नाड़ियों को खोलना
नाड़ियों को खोलने का ध्येय शक्ति का संचार होने देना और कोशिकाओं की अणुसंरचना को परिवर्तित करना, और उन्हें उच्च शक्ति तत्व में रूपान्तरित करना है। जो अभ्यासी नहीं है उनकी नाड़ियों में अवरोध होता है? और बहुत संकरी होती हैं। अभ्यासियों की नाड़ियां क्रमश: उज्जवलित होती जाती है, और उनका अवरोध साफ हो जाता है। वरिष्ठ अभ्यासियों की नाड़ियां चौड़ी हो जाती है, तथा ऊंचे स्तरों पर वे और चौड़ी होती हैं। कुछ लोगों की नाड़ियां एक अंगुली के बराबर चौड़ी होती हैं। परन्तु नाड़ियों का खुलना अपने आपमें न तो व्यक्ति का साधना स्तर दर्शाता है, न ही उसकी गोंग की ऊंचाई। क्रियायें करते रहने से नाड़ियां उज्जवलित और चौड़ी होती जायेगी, और अंतत: जुड़कर एक बड़ा स्तम्भ बन जायेगी। उस स्थिति में उस व्यक्ति में न तो नाड़ियां होंगी और न ही अक्युपंचर बिन्दु। दूसरी तरह कहां जाये तो, उसका सम्पूर्ण शरीर ही नाड़ियां और अक्युपंचर बिन्दु होगा। उस स्थिति का भी ये अर्थ नहीं है, कि वह ताओ प्राप्त कर चुका है। यह केवल फालुन गोंग साधना क्रम के एक स्तर की अभिव्यक्ति है। इस स्तर पर पहुंचना यह दर्शाता है कि यह व्यक्ति त्रिलोक फा साधना के अन्त तक पहुंच गया है। इसके साथ ही, एक स्थिति उत्पन्न होती है, जो उसके बाह्य आकृति के कारण अलग ही जान पड़ती है : जिसे सिर के ऊपर तीन पुष्प एकत्रित होना (सान हुआ जुडिंग) कहते हैं। तब गोंग स्तर बहुत ऊंचा होता है, और बहुत सी अलौकिक सिध्दियां विकसित हो चुकी होंगी, जिनमें सभी की एक आकृति और रूप होता है। तीन पुष्प सर की चोटी पर दिखाई पड़ते हैं, जिनमें से एक गुलदाउदी और दूसरा कमल जैसा लगता है। तीनों पुष्प स्वयं अपनी धूरी पर भी घूमते हैं, और साथ ही एक दूसरे के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं। प्रत्येक पुष्प के पास उसके ऊपर एक अत्यंत ऊंचा ध्रुव होता है, जो आकाश तक जाता है। ये तीनों ध्रूव भी पुष्पों के साथ घूमते हैं और परिक्रमा करते हैं। व्यक्ति को ऐसा लगेगा कि उसका सर बहुत भारी हो गया है। इस बिन्दु पर वह व्यक्ति त्रिलोक फा साधना के अन्तिम पायदान पर है।
5. मानसिक उद्देश्य
फालुन गोंग में मानसिक संकल्प का प्रयोग नहीं किया जाता। एक व्यक्ति का मानसिक उद्देश्य स्वयं कोई कार्य पूर्ण नहीं करता। हालांकि यह आदेश भेज सकता है। जो वास्तव में कार्य करती हैं वे अलौकिक सिध्दियां हैं, जिनमें एक बुध्दिमान व्यक्ति जैसी सोचने की क्षमता है और वे मस्तिष्क से संकेत प्राप्त कर सकती हैं। किन्तु कई लोगों, विशेषत: जो चीगोंग से संबंधित हैं, के पास इसके बारे में विभिन्न सिध्दांत हैं। वे सोचते हैं कि मानसिक उद्देश्य कई कार्य कर सकता है। कुछ लोग मानसिक उद्देश्य के प्रयोग से अलौकिक सिध्दियां विकसित करने की बात करते हैं, इसके द्वारा त्येनमू को खोलना, रोगों का उपचार करना, दूर स्थानान्तरण करना आदि। यह एक गलत समझ है। निचले स्तरों पर, साधारण व्यक्ति मानसिक उद्देश्य का प्रयोग उनके संवेदनशील अंग तथा हाथ और पैरों को निर्देशित करने के लिए करते हैं। ऊंचे स्तरों पर, एक साधक का मानसिक उद्देश्य दिशा निर्धारित करता है और सिध्दियों को उस ओर निर्देशित करता है। दूसरे शब्दों में, अलौकिक सिध्दियां मानसिक उद्देश्य द्वारा संचालित होती हैं। हमारा मानसिक उद्देश्य से यह तात्पर्य है। कई बार हम चीगोंग गुरुओं को दूसरों का उपचार करते हुए देखते हैं। गुरु के अंगुली उठाने से पहले ही, रोगी कहते हैं कि वे ठीक हो चुके हैं, और वे सोचते हैं कि रोग निवारण गुरु के मानसिक उद्देश्य से हुआ है। वास्तव में, वह गुरु एक प्रकार की अलौकिक सिध्दि छोड़ते हैं और उसे रोग उपचार करने अथवा कुछ और करने का आदेश देते हैं। क्योंकि अलौकिक सिध्दियां दूसरे आयाम में चलती हैं, साधारण लोग उन्हें आंखों द्वारा नहीं देख सकते। जो नहीं जानते सोचते हैं कि यह मानसिक उद्देश्य है जो उपचार करता है। कुछ लोगों का विश्वास है कि मानसिक उद्देश्य का प्रयोग रोग उपचार के लिए किया जा सकता है, और इससे लोग भ्रमित होते हैं। इसे स्पष्ट किया जाना आवश्यक है।
मानव विचार एक प्रकार के संदेश हैं, एक प्रकार की शक्ति, तथा एक प्रकार का भौतिक अस्तित्व। जब कोई व्यक्ति सोचता है, मस्तिष्क एक आवृति उत्पन्न करता है। कई बार मन्त्र का जाप करना बहुत प्रभावी होता है, क्यों? यह इसलिए क्योंकि ब्रह्माण्ड की अपनी भी दोलन आवृति है, और जब आपके मन्त्र की आवृति ब्रह्माण्ड की आवृति से मिलती है तो एक प्रभाव उत्पन्न होता है। इसके प्रभावी होने के लिए, इसका पवित्र प्रकृति का होना परमावश्यक है क्योंकि ब्रह्माण्ड में अनिष्ट के अस्तित्व की अनुमति नहीं है। मानसिक उद्देश्य भी एक विशिष्ट प्रकार का विचार है। एक ऊंचे स्तर के चीगोंग गुरु के धर्म शरीर उसके मुख्य शरीर के विचारों द्वारा संचालित तथा निर्देशित होते हैं। एक धर्म शरीर के पास स्वयं अपने विचार तथा स्वयं कठिनाइयां सुलझाने की और कार्य करने की क्षमता भी होती है। उसका एक पूर्णत: स्वाधीन अस्तित्व होता है। इसके साथ ही, धर्म शरीर चीगोंग गुरु के मुख्य शरीर के विचार जानते हैं और वे अपना कार्य उन विचारों के अनुसार करते हैं। उदाहरण के लिए यदि चीगोंग गुरु किसी व्यक्ति विशेष का रोग उपचार करना चाहता है, तो धर्म शरीर वहां पहुंच जाएंगे। उस विचार के बिना वे नहीं जाएंगे। जब वे करने योग्य एक बहुत अच्छा कार्य देखेंगे तो वे उसे स्वयं ही कर देंगे। कुछ गुरुओं को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है, और ऐसे भी रहस्य हैं जो वे स्वयं नहीं जानते किन्तु उनके धर्म शरीर पहले से जानते हैं।
''मानसिक उद्देश्य'' का एक और अर्थ भी है, प्रेरणा। प्रेरणा व्यक्ति की मुख्य चेतना से नहीं आती। मुख्य चेतना का ज्ञान भण्डार बहुत सीमित होता है। यदि आप कुछ ऐसा करने के लिए जिसका अभी इस समाज में अस्तित्व नहीं है पूरी तरह मुख्य चेतना पर निर्भर होते हैं, तो आप असफल होंगे। प्रेरणा सह चेतना से आती है। जब कुछ लोग रचनात्मक कार्य अथवा वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे होते हैं और अपनी पूरी मस्तिष्क शक्ति लगाने पर भी कहीं उलझ जाते हैं। वे उस कार्य को किनारे रख देते हैं, कुछ देर आराम करते हैं, या बाहर चहलकदमी करते हैं। तभी उनके विचार किये बिना ही आकस्मिक प्रेरणा आती है। वे तुरन्त तेजी से सभी कुछ लिखना आरंभ कर देते हैं, जिससे किसी नये विचार का सृजन होता है। यह इसलिए होता है क्योंकि जब मुख्य चेतना सुदृढ़ होती है, यह मस्तिष्क पर नियन्त्रण कर लेती है और इसके प्रयत्न करने पर भी कोई विचार नहीं आता। एक बार मुख्य चेतना के शिथिल होने पर, सह चेतना क्रियाशील हो जाती है और मस्तिष्क पर नियंत्रण करती है। सह चेतना नई वस्तुओं का सृजन कर पाती है, क्योंकि यह दूसरे आयाम से संबंधित है और इस आयाम से सीमित नहीं है। फिर भी सह चेतना मानव समाज की स्थिति को पार अथवा उससे हस्तक्षेप नहीं कर सकती; इसे समाज के विकास क्रम को प्रभावित करने की अनुमति नहीं है।
प्रेरणा दो स्थानों से आती है। एक सह चेतना है। सह चेतना इस विश्व से भ्रमित नहीं है और प्रेरणा उत्पन्न कर सकती है। दूसरा स्रोत ऊंचे स्तर के वासियों से प्राप्त आदेश तथा मार्ग प्रदर्शन है। ऊंचे स्तर के वासियों से मार्ग निर्देशन मिलने पर, लोगों के मन का विस्तार होता है और वे आश्चर्यजनक वस्तुओं का सृजन कर पाते हैं। समाज तथा विश्व का सम्पूर्ण विकास उनके विशिष्ट नियमों के अनुसार होता है। कुछ भी आकस्मिक नहीं होता।
6. फालुन गोंग में साधना के स्तर
(1) उच्च स्तरों पर साधना
क्योंकि फालुन गोंग की साधना बहुत ऊंचे स्तरों पर होती है, गोंग बहुत तेजी से उत्पन्न होता है। महान साधना मार्ग बहुत सरल और सुगम होता है। फालुन गोंग में कुछ ही गति-क्रियायें हैं। किन्तु पूर्ण रूप से देखा जाए तो इससे शरीर के सभी पहलू संचालित होते है, जिसमें वे वस्तुएं भी सम्मिलित हैं जो अभी उत्पन्न होनी हैं। जब तक व्यक्ति का नैतिकगुण बढ़ता रहता है, उसका गोंग तेजी से बढ़ेगा; इसमें न तो किसी संकल्प युक्त प्रयास की आवश्यकता होती है, न किसी विशेष प्रणाली की, और न ही गलाने की भट्टी लगाकर एकत्रित रसायनों से तान बनाने की या अग्नि उत्पन्न करने की और न ही रसायन एकत्रित करने की। मानसिक उद्देश्य के मार्गदर्शन पर निर्भर होना बहुत जटिल हो सकता है और इससे व्यक्ति सरलता से भटक सकता है। हम यहां सबसे सुगम और सर्वोत्ताम साधना मार्ग उपलब्ध कराते हैं, किन्तु सबसे कठिन भी। दूसरी पध्दतियों में किसी साधक को दुग्ध-श्वेत शरीर अवस्था में पहुंचने के लिए हो सकता है दस वर्षों से भी अधिक लगे, या कई दशाब्दियां, या उससे भी अधिक। किन्तु हम आपको इस स्तर पर तुरन्त ले आते हैं। हो सकता है आप इस स्तर से आगे निकल आए हों और आपको पता भी न लगा हो। हो सकता है कि यह केवल कुछ घंटे ही रहा हो। एक दिन ऐसा होगा जब आप बहुत संवेदनशील अनुभव करेंगे, और केवल कुछ ही देर बाद आप उतना संवेदनशील अनुभव नही करेंगे। वास्तव में, तब आप एक महत्वपूर्ण स्तर के आगे निकल गए होंगे।
(2) गोंग का प्रकटीकरण
एक बार फालुन गोंग शिष्यों के भौतिक शरीर को व्यवस्थित कर दिए जाने के बाद वे उस स्थिति में पहुंच जाते हैं जो दाफा[14] साधना के लिए उपयुक्त हैं : दुग्ध-श्वेत शरीर की अवस्था। गोंग इस स्थिति की प्राप्ति के बाद ही विकसित होगा। लोग जिनके पास ऊंचे स्तर का त्येनमू है वे देख सकते हैं कि गोंग अभ्यासी की त्वचा के सतह पर विकसित होता है और उसके पश्चात उसके शरीर में सोख लिया जाता है। गोंग की उत्पत्ति व अवशोषण का यह क्रम बार-बार होता रहता है, एक स्तर से दूसरे स्तर, कई बार अति शीघ्रता से। यह प्रथम चरण का गोंग है। प्रथम चरण के बाद, अभ्यासी का शरीर साधारण शरीर नहीं रह जाता। दुग्ध-श्वेत शरीर की अवस्था तक पहुंचने के बाद अभ्यासी का शरीर फिर कभी रोगग्रस्त नहीं होगा। इधर-उधर होने वाली पीड़ा या किसी विशेष भाग में होने वाली बेचैनी रोग नहीं है, हालांकि यह वैसा ही जान पड़ती है : यह कर्म के कारण होता है। दूसरे चरण के गोंग के विकास के पश्चात व्यक्ति के प्रज्ञावान वासी विकसित होकर विशाल हो चुके होते हैं तथा इधर-उधर घूमने और बात करने में सक्षम हो जाते हैं। कई बार वे नगण्य संख्या में उत्पन्न होते हैं, और कई बार बहुत अधिक संख्या में। वे एक दूसरे से बात कर सकते हैं। उन प्रज्ञावान वासियों में बहुत अधिक मात्रा में शक्ति संचित रहती है, और उसका उपयोग व्यक्ति की बनती को परिवर्तित करने के लिए होता है।
फालुन गोंग साधना में एक विशेष उन्नत स्तर पर कई बार साधक के पूरे शरीर में साधना शिशु (यिंगहाई) प्रकट होते हैं। वे चंचल, हर्षोउल्लास से भरे, तथा दयालु होते हैं। एक दूसरे प्रकार का शरीर, जिसे अमर शिशु (युवान यिंग) कहते हैं, भी उत्पन्न हो सकता है। वह कमल पुष्प के सिंहासन पर बैठता है जो बहुत सुन्दर होता है। साधना द्वारा उत्पन्न अमर शिशु का जन्म मानव शरीर में यिन और यैंग के मिलन से होता है। स्त्री और पुरुष साधक दोनों ही अमर शिशु को संवर्धित करने में सक्षम होते हैं। आरम्भ में अमर शिशु बहुत छोटा होता है वह धीरे-धीरे बड़ा होता है और अंतत: साधक के आकार का हो जाता है। वह बिल्कुल साधक जैसा दिखता है और वास्तव में साधक के शरीर में ही स्थित होता है। जब अलौकिक सिध्दियां प्राप्त लोग उसे देखते हैं, वे कहते हैं कि इस व्यक्ति के दो शरीर हैं। वास्तव में यह व्यक्ति अपना वास्तविक शरीर संवर्धित करने में सफल हो गया है। साधना द्वारा कई धर्म शरीर भी विकसित किए जा सकते हैं। संक्षेप में वे सभी अलौकिक सिध्दियां जो ब्रह्माण्ड में विकसित की जा सकती हैं फालुन गोंग में विकसित की जा सकती हैं; दूसरी साधना पध्दतियों में विकसित अलौकिक सिध्दियां सभी फालुन गोंग में भी सम्मिलित हैं।
(3) पार-त्रिलोक-फा साधना
फालुन गोंग क्रियायें करते रहने से, अभ्यासी अपनी नाड़ियों को चौड़ा तथा और चौड़ा बना सकते हैं, जब तक वे मिल कर एक सार न हो जाएं। इसका अर्थ है कि व्यक्ति ने उस स्तर तक साधना कर ली है जब उसके शरीर में न तो नाड़ियां हैं न ही एक्यूपंक्चर बिंदु या इसके विपरीत नाड़ियां और एक्यूपंक्चर बिंदु सर्वव्यापी हैं। इसका अभी भी यह अर्थ नहीं है कि उसने ताओ प्राप्त कर लिया है - यह फालुन गोंग साधना पध्दति के विकासक्रम में केवल एक प्रकार की अभिव्यक्ति है और एक स्तर का प्रतिबिंब है। इस चरण की प्राप्ति के पश्चात, व्यक्ति त्रिलोक फा साधना अपने अंतिम स्तर पर होता है। जो गोंग उसने विकसित किया है वह बहुत शक्तिशाली होता है और अपनी आकृति निर्धारित कर चुका होता है। साथ ही, इस व्यक्ति का गोंग स्तम्भ अत्यंत ऊंचा होगा और उसके सर के ऊपर तीन पुष्प प्रकट हो चुके होंगे। उस समय उस व्यक्ति ने त्रिलोक फा साधना में केवल अंतिम पग रखा होगा।
जब और आगे पग बढ़ाया जाता है, तो कुछ शेष नहीं रहता। व्यक्ति की सभी अलौकिक सिध्दियां शरीर के सबसे गहरे आयाम में संकुचित कर दी जाएंगी। वह शुध्द-श्वेत शरीर अवस्था में प्रवेश करेगा, जहां शरीर पारदर्शी होता है। एक और पग आगे बढ़ाने पर यह व्यक्ति पार-त्रिलोक-फा साधना में प्रवेश करेगा, जिसे ''बुध्द शरीर की साधना'' भी कहा जाता है। इस स्तर पर विकसित अलौकिक सिध्दियां ईश्वरीय शक्तियों की श्रेणी में आती हैं। इस बिन्दु पर अभ्यासी के पास असीमित शक्तियां होंगी और वह अत्यंत महान होगा। और ऊंचे स्तरों तक पहुंचने पर, वह साधना करने पर एक महान ज्ञान प्राप्त व्यक्ति हो जाएगा। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने नैतिकगुण को किस प्रकार संवर्धित करते हैं। जिस किसी स्तर तक आप साधना करते हैं वह आपकी उपलब्धि का स्तर होता है। समर्पित साधक एक सच्चा साधना मार्ग खोजते हैं और सच्ची उपलब्धी प्राप्त करते हैं - यही ज्ञान प्राप्ति है।
[5]
सरीर - कुछ साधकों की चिताग्नी देने के पश्चात बचे विशेष तत्व।