मैं सभी अभ्यासियों को अपना शिष्य मानता हूँ
क्या हर कोई जानता है कि मैं क्या कर रहा हूँ? मैं सभी अभ्यासियों को, जिन में वे भी शामिल हैं जो स्वयं पढ़कर वास्तव में साधना अभ्यास कर पाते हैं, अपना शिष्य मानता हूँ। साधना को ऊँचे स्तरों पर सिखाने के लिए, यदि मैं आपको इस प्रकार नहीं मानता तो इसका कोई अर्थ नहीं होगा। अन्यथा, यह वैसा ही होगा जैसे गैर जिम्मेदार होना और परेशानी पैदा करना। हमने आपको इतना कुछ दिया है और आपको इतने सारे नियमों को जानने दिया है जिनकी जानकारी साधारण लोगों को नहीं होनी चाहिए। आपको बहुत सी वस्तुएँ प्रदान करने के अलावा, मैंने आपको यह दाफा सिखाया है। कुछ अन्य विषयों के साथ ही, आपका शरीर शुध्द कर दिया गया है। इस प्रकार, आपको शिष्य न मानना निश्चित ही मेरे लिए अस्वीकार्य होगा। साधारण लोगों के लिए सहज ही इतने दिव्य रहस्यों को उजागर करने की अनुमति नहीं है। लेकिन यहाँ एक बात स्पष्ट करनी आवश्यक है। आज समय बदल गया है। हम दण्डवत् प्रणाम करने या झुकने के संस्कारों का अभ्यास नहीं करते। उस प्रकार की औपचारिकता की कोई उपयोगिता नहीं है, और धर्म की भांति लगती है। हम इसका अभ्यास नहीं करते। आपके दण्डवत् प्रणाम करने और गुरु की पूजा करने की क्या उपयोगिता है यदि घर से बाहर पाँव रखते ही, आप अपना व्यवहार हमेशा की तरह रखते हैं और मनमानी करते हैं, साधारण लोगों के बीच निजी-लाभ और प्रसिध्दि के लिए स्पर्धा करते हैं। आप मेरी छत्रछाया में फालुन दाफा की प्रतिष्ठा को भी धूल में मिला सकते हैं।
सच्चा साधना अभ्यास पूरी तरह आपके हृदय पर निर्भर करता है। जब तक आप साधना का अभ्यास करते रहते हैं और साधना अभ्यास में स्थिर और संकल्पित बने रहते हैं, हम आपको शिष्य मानेंगे। मेरे लिए ऐसा न मानना असंभव होगा। किन्तु कुछ ऐसे लोग हैं जो शायद स्वयं को सच्चे रूप से अभ्यासी न मानें और साधना अभ्यास में नियमित न रहें। कुछ लोगों के लिए यह असंभव है। किन्तु कई लोग वास्तव में साधना का अभ्यास करते रहेंगे। जब तक आप यह करते रहेंगे, हम आपको शिष्य मानेंगे।
क्या आपको फालुन दाफा शिष्य माना जा सकता है यदि आप केवल इन कुछ व्यायामों का हर रोज अभ्यास करते हैं? यह आवश्यक नहीं है। यह इसलिए क्योंकि सच्चे साधना अभ्यास के लिए नैतिकगुण आदर्श की आवश्यकताओं जिन्हें हमने स्थापित किया है का पालन करना आवश्यक है, और आपको वास्तव में अपना नैतिकगुण बढ़ाना होगा -तभी यह सच्चा साधना अभ्यास है। यदि आप बिना शिंनशिंग में सुधार किए और बिना प्रभावशाली शक्ति के जो सभी कुछ सुदृढ़ करती है, केवल व्यायामों का अभ्यास करते हैं तो इसे साधना अभ्यास नहीं कहा जा सकता; और न ही हम आपको फालुन दाफा शिष्य मान सकते हैं। यदि आप हमारे फालुन दाफा की आवश्यकताओं का पालन किए बिना इसी प्रकार चलते रहे और साधारण लोगों के बीच अपने नैतिकगुण में सुधार किए बिना हमेशा की तरह आचरण करते रहे, आप कुछ न कुछ परेशानियों में पड़ते रहेंगे यद्यपि आप व्यायामों का अभ्यास करते हैं। आप यहां तक भी कह सकते हैं कि यह फालुन दाफा का अभ्यास है जिसने आपको भटकाया है। यह सभी संभव है। इसलिए, आपको वास्तव में हमारे शिंनशिंग की आवश्यकताओं का पालन करना आवश्यक है- केवल तभी आप एक सच्चे अभ्यासी कहलायेंगे। मैंने यह सब को स्पष्ट कर दिया है। इस प्रकार मेरे पास कृपया गुरु की पूजा की औपचारिकता के लिए न आयें। जब तक आप वास्तव में साधना का अभ्यास करते रहेंगे, मैं आपको इसी प्रकार मानूँगा। मेरे फा-शरीर इतने अधिक है कि वे अनगिनत हैं। इन अभ्यासियों के अतिरिक्त, चाहे कितने भी और लोग हों, मैं तब भी उनकी देखभाल कर सकता हूँ।
बुध्द विचारधारा चीगोंग और बुध्दमत
बुध्द विचारधारा चीगोंग बुध्द धर्म नहीं है। मैं सभी को यह विषय स्पष्ट करना चाहूँगा। वास्तव में, ताओ विचारधारा चीगोंग भी ताओ धर्म नहीं है। आप में से कुछ इन विषयों से हमेशा उलझन में रहते हैं। कुछ लोग मठों के भिक्षु हैं, और कुछ घरों में रहने वाले बुध्द उपासक हैं। वे सोचते हैं कि वे बुध्द धर्म के बारे में कुछ अधिक जानते हैं, इसलिए वे हमारे अभ्यासियों के बीच उत्साह से बुध्दमत फैलाते हैं। मैं आपको बताना चाहूँगा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक भिन्न साधना विचारधारा से है। धर्म का धार्मिक स्वरूप होता है। हम यहाँ हमारी विचारधारा का साधना वाला भाग सिखा रहे हैं। उन भिक्षुओं और भिक्षुणियों को छोड़ कर जो फालुन दाफा शिष्य हैं, और सभी को धार्मिक स्वरूप धारण नहीं करना चाहिए। इसलिए, धर्म विनाश काल में हमारी विचारधारा बुध्दमत नहीं है।
बुध्दमत का धर्म बुध्द फा का केवल एक संक्षिप्त भाग है। आज भी अनेक प्रकार के महान उच्च स्तर के फा अस्तित्व में है। विभिन्न स्तरों में भी विभिन्न फा हैं। शाक्यमुनि ने कहा था कि चौरासी हजार साधना मार्ग होते हैं। बुध्दमत में केवल कुछ ही साधना मार्ग सम्मिलित हैं। इसमें केवल त्येनताई, हवेयान, जेन बुध्दमत, पवित्र भूमि, तंत्र विद्या, आदि हैं। वे सब मिलाकर कुछ ही हैं! इसलिए बुध्दमत संपूर्ण बुध्द फा का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, और बुध्द फा का केवल एक संक्षिप्त भाग है। हमारा फालुन दाफा भी बुध्द विचारधारा के चौरासी हजार साधना मार्गों में से एक है, और इसका मूल बुध्दमत और धर्म विनाश काल के बुध्दमत से कोई संबंध नहीं है; न ही इसका आधुनिक धर्मों से संबंध है।
बुध्दमत की स्थापना प्राचीन भारत में शाक्यमुनि ने पच्चीस सौ वर्ष पूर्व की थी। जब शाक्यमुनि गोंग खुलने की अवस्था तक पहुंचे और उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, उन्हें वह सब याद आ गया जिसकी उन्होंने साधना की थी और लोगों को बचाने के लिए उसे सार्वजनिक किया। उस विचारधारा से चाहे कितने ही हजारों कोश धर्मग्रन्थ आए हों, यह वास्तव में केवल तीन शब्दों से बना है। इस विचारधारा की विशेषताएं हैं : "शील, समाधि, प्रज्ञा।" शील साधारण लोगों की इच्छाओं को छोड़ने के लिए और आपके निजी-लाभ के इच्छाभाव को त्यागने के लिए, सभी कुछ जो सांसारिक है को त्यागने के लिए हैं, इत्यादि। इस प्रकार व्यक्ति का मन रिक्त हो जायेगा और इसमें कोई विचार शेष नहीं रहेगा, और यह शांत हो सकता है। ये एक दूसरे के पूरक हैं। शांति अवस्था प्राप्त कर लेने के बाद, व्यक्ति वास्तविक साधना के लिए ध्यान में बैठ सकता है और साधना में आगे बढ़ने के लिए शांत अवस्था पर निर्भर हो सकता है। यह उस विचारधारा में वास्तविक साधना अभ्यास का भाग है। इसमें व्यायाम आवश्यक नहीं है, और न ही यह व्यक्ति के मूल शरीर1 में बदलाव लाता है। व्यक्ति केवल गोंग की साधना करता है जो उसके स्तर की ऊँचाई निर्धारित करता है। इस प्रकार, वह केवल अपने नैतिकगुण की साधना करता है। वह अपने शरीर की साधना नहीं करता, इसलिए वह गोंग के रूपान्तरण की परवाह नहीं करता। इस बीच, ध्यान द्वारा वह अचेतन अवस्था में रहने की योग्यता को सुदृढ़ करता है, और वह ध्यान में दु:ख भोगने और कर्म को हटाने के लिए बैठता है। 'प्रज्ञा' का अर्थ है वह महान विवेक के साथ ज्ञान प्राप्त करता है, और बह्माण्ड का सत्य और साथ ही ब्रह्माण्ड के विभिन्न आयामों का सत्य भी देख सकता है। सभी दिव्य शक्तियां प्रकट होती हैं। प्रज्ञा के उदय और ज्ञानोदय को गोंग का खुलना भी कहा जाता है।
जब शाक्यमुनि ने इस साधना मार्ग की स्थापना की थी, उस समय भारत में आठ धर्म प्रचलित थे। उस समय ब्राह्मण धर्म की जड़ें बहुत गहरी थी। अपने पूरे जीवन काल में, शाक्यमुनि दूसरे धर्मों के साथ शास्त्रार्थ करते रहे। क्योंकि जो शाक्यमुनि ने सिखाया वह उचित मार्ग था, उनके सिखाने के समय में बुध्दधर्म जो उन्होंने सिखाया और अधिक प्रसिध्द होता गया जबकि दूसरे धर्म और क्षीण होते गये। यहां तक कि गहरी जड़ों वाला ब्राह्मण धर्म भी समापन के कगार पर था। शाक्यमुनि के निर्वाण2 के बाद, हालांकि, दूसरे धर्म, खास तौर पर ब्राह्मण धर्म, दोबारा प्रसिध्द हो गये। किन्तु बुध्दमत की क्या स्थिति हुई? कुछ भिक्षु गोंग खुलने की अवस्था तक पहुँचे और उन्हें विभिन्न स्तरों पर ज्ञान प्राप्त हुआ, किन्तु उनके ज्ञान प्राप्ति का स्तर बहुत निम्न था। शाक्यमुनि तथागत स्तर पर पहुँचे थे, किन्तु बहुत से भिक्षु इस स्तर पर नहीं पहुँचे।
बुध्द फा के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न स्वरूप हैं। हालांकि, जितना ऊँचा स्तर होता है, उतना ही यह सत्य के समीप होता है। जितना निम्न स्तर होता है, उतना ही यह सत्य से दूर होता है। वे भिक्षु गोंग के खुलने की अवस्था पर पहुँचे और उन्हें निम्न स्तरों पर ज्ञान प्राप्त हुआ। जो शाक्यमुनि ने कहा उसका अर्थ निकालने के लिए, उन्होंने ब्रह्माण्ड के उस स्वरूप को बताया जो उन्होंने अपने स्तरों पर देखा और जो स्थितियां और नियम वे समझे। यानि, कुछ भिक्षुओं ने शाक्यमुनि के धर्म को एक प्रकार या दूसरे प्रकार समझाया। शाक्यमुनि के मूल शब्दों को प्रयोग करने के स्थान पर, कुछ भिक्षुओं ने वे शिक्षायें भी दीं जो वे शाक्यमुनि के शब्दों से समझे; इससे बुध्द धर्म इतना विकृत हो गया कि उसका स्वरूप बदल गया, और यह वह धर्म नहीं रह गया जो शाक्यमुनि ने सिखाया था। अन्त में, इस कारण बुध्द धर्म भारत से विलुप्त हो गया। यह इतिहास का एक गंभीर पाठ है। इसके पश्चात, बुध्दमत भारत में नहीं रहा। अपने विलुप्त होने से पहले, बुध्दमत कई बदलावों से गुजरा। इसने अंतत: कुछ बातें ब्राहमण धर्म से ग्र्रहण कीं और आज का भारतीय धर्म हिन्दुमत बन गया। इसमें किसी बुध्द की उपासना नहीं की जाती। इसमें किसी और की उपासना की जाती है, और शाक्यमुनि में विश्वास नहीं किया जाता। यह स्थिति है।
अपने विकासक्रम के दौरान, बुध्दमत में कई बड़े बदलाव हुए। एक शाक्यमुनि की मृत्यु के कुछ समय पश्चात ही हुआ। कुछ लोगों ने शाक्यमुनि द्वारा सिखाये ऊँचे स्तर के नियमों के आधार पर महायान की स्थापना की। उनका विश्वास था कि जो धर्म शाक्यमुनि ने जनता को सिखाया था वह साधारण लोगों द्वारा स्वयं मोक्ष पाने और अरहत स्तर प्राप्ति के लिए था। वह धर्म सभी प्राणियों को मोक्ष प्रदान नहीं करा सकता था इसलिए उसे हीनयान कहा गया। दक्षिण-पूर्व एशिया के भिक्षु शाक्यमुनि के समय के मूल साधना मार्ग का अनुसरण करते आ रहे हैं। चीन में, हम इसे 'हीनयान' बुध्दमत कहते हैं। जबकि, वे स्वयं को इस प्रकार नहीं समझते। उनका विश्वास है कि उन्होंने शाक्यमुनि के मूल संस्कारों को ग्रहण किया है। यह वास्तव में इसी प्रकार है, क्योंकि उन्होंने शाक्यमुनि के समय के साधना-मार्ग को ग्रहण किया है।
इसके बाद बदला हुआ महायान चीन में आरंभ किया गया, इसकी जड़ें हमारे देश में मजबूत हुईं, और यह चीन में सिखाये जाने वाला आज का बुध्दमत बन गया। वास्तव में, शाक्यमुनि के समय के बुध्दमत से इसका पूरा स्वरूप बदल गया है। सभी कुछ बदल गया है, वेशभूषा से लेकर संपूर्ण ज्ञानोदय की अवस्थायें और साधना अभ्यास का पूरा क्रम। मूल बुध्दमत में, केवल शाक्यमुनि की इसके संस्थापक के रूप में उपासना की जाती थी। अब, हालांकि अब, बुध्दमत में कई बुध्द और महान बौधिसत्व हैं। इसके अतिरिक्त, अनेकों बुध्द में विश्वास किया जाता है। कई तथागतों की उपासना की जाती है, और बुध्दमत एक ऐसा धर्म बन गया जिसमें अनेकों बुध्द, जिसमें बुध्द अमिताभ, औषध बुध्द, महान सूर्य तथागत, आदि की उपासना की जाती है। इसमें अनेक महान बौधिसत्व भी हैं। इस प्रकार, संपूर्ण बुध्दमत उससे बिल्कुल भिन्न हो गया जिसकी शाक्यमुनि ने अपने समय में स्थापना की थी।
उसी समयावधि में, एक और बदलाव हुआ जब बौधिसत्व नागार्जुन ने एक गुप्त साधना अभ्यास सिखाया। यह भारत से आया था और इसका चीन में परिचय अफगानिस्तान और बाद में शिनज्यांग3 के मार्ग से हुआ। यह तांग राजवंश4 के दौरान हुआ, इसलिए इसे तांग तंत्रविद्या कहा गया। कनफ्यूशन मत के प्रभाव के कारण, चीन के नैतिक गुण साधारणत: दूसरे देशों से भिन्न थे। इस गुप्त अभ्यास में पुरुष और स्त्री की युग्म साधना की जाती थी, और उस समय समाज इसे स्वीकार नहीं कर सका। इसलिए यह उस समय समाप्त हो गया जब तांग राजवंश में ह्वेचांग के समय बुध्दमत का दमन किया गया, और इस प्रकार तांग तंत्रविद्या चीन से विलुप्त हो गयी। अब जापान में एक पूर्वी तंत्रविद्या है जो उस समय चीन से आयी थी; हालांकि यह, शक्तिपात की प्रक्रिया से नहीं गुजरी। तंत्र के अनुसार, यदि कोई शक्तिपात 5 के बिना तंत्रविद्या सीखता है, तो यही माना जाता है कि वह धर्म को चुरा रहा है, और यह नहीं माना जाता कि उसे व्यक्तिगत रूप से शिक्षा प्राप्त हुई है। एक और साधना मार्ग, जिसे भारत और नेपाल द्वारा तिब्बत में परिचित किया गया, उसे "तिब्बत तंत्रविद्या" कहा गया, और यह आज तक चला आ रहा है। मूल रूप से, बुध्दमत की यह स्थिति है। मैने अभी बहुत संक्षेप में इसके विकास और बदलाव के क्रम को बताया। बुध्दमत के संपूर्ण विकासक्रम के दौरान, कुछ पध्दतियाँ विकसित हुई जैसे- बौधिधर्म द्वारा स्थापित ज़ेन बुध्दमत, पवित्र भूमि बुध्दमत, और ह्वेयान बुध्दमत। उन सभी की स्थापना शाक्यमुनि के कथनों की समझ पर हुई थी जो उन्होंने उस समय कहे थे। ये सभी बदले हुये बुध्दमत से संबंधित हैं। बुध्दमत में इस प्रकार के दस से अधिक साधनामार्ग हैं, और सभी ने धर्म का रूप अपना लिया है, इसलिए वे सब बुध्दमत से संबंधित हैं।
जहां तक इस शताब्दी में स्थापित धर्मों का संबंध है, न केवल इस शताब्दी बल्कि अनेकों धर्म जिनकी विश्व के विभिन्न भागों में पिछली कई शताब्दियों में स्थापना हुई है, उनमें से अधिकतर पाखण्डी हैं। सभी महान ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों के अपने दिव्यलोक होते हैं जहां वे मनुष्यों को बचाते हैं। तथागत बुध्द जैसे शाक्यमुनि, बुध्द-अमिताभ और महान सूर्य तथागत के लोगों को बचाने के लिए अपने दिव्यलोक हैं। हमारी आकाशगंगा में, सौ से अधिक ऐसे दिव्यलोक हैं। हमारे फालुन दाफा का भी एक फालुन दिव्यलोक है।
जहां तक मोक्ष का प्रश्न है, वे पाखण्डी पध्दतियाँ अपने अनुयायियों को कहां ले जा सकती हैं? वे लोगों को मुक्ति प्रदान नहीं कर सकतीं, क्योंकि जो वे सिखाती हैं फा नहीं है। निश्चित ही, कुछ लोगों ने जब पहली बार पंथों की स्थापित की, वे वैसे असुर नहीं बनना चाहते थे जो पारम्परिक धर्मों का अनादर करते हैं। वे गोंग के खुलने की अवस्था पर पहुँचे और उन्हें विभिन्न स्तरों पर ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने कुछ सिध्दान्त देखे, किन्तु वे उन ज्ञानप्राप्त व्यक्तियों से कहीं दूर थे जो लोगों को मुक्ति प्रदान कर सकते हैं। वे बहुत निम्न स्तरों पर थे, और उन्हें कुछ नियमों का ज्ञान हुआ। उन्होंने जाना कि साधारण लोगों के बीच कुछ वस्तुऐं गलत हैं, और वे लोगों को यह भी बताते थे कि कैसे अच्छे कार्य करें। आरम्भ में, वे दूसरे धर्मों के विरूध्द नहीं थे। किन्तु लोग अन्तत: उन पर यह सोच कर विश्वास करने लगे कि जो उन्होंने कहा वह उचित है; इसके बाद लोग उन पर और अधिक विश्वास करते गये। परिणामस्वरूप, लोग धर्म के स्थान पर उनकी ओर अधिक श्रध्दालु हो गये। प्रसिध्दि और निजी-लाभ का मोहभाव विकसित होने पर, वे लोगों को कहते कि वे उन्हें कुछ पदवी से विभूषित करें। उसके बाद वे नये धर्मों की स्थापना करते थे। मैं आप को बता रहा हूँ कि वे सभी दुष्ट धर्म हैं। हालांकि वे लोगों को हानि नहीं पहुँचाते, वे फिर भी दुष्ट पध्दतियां हैं क्योंकि वे लोगों के पारम्परिक धर्मों के विश्वास में बाधा डालते हैं। पारम्परिक धर्म लोगों को मुक्ति प्रदान कर सकते हैं, किन्तु वे नहीं। जैसे-जैसे समय बीतता है, वे बुरे कार्य करने में भी नहीं घबराते। हाल ही में, ऐसी कई पध्दतियां चीन में भी आरम्भ हुई हैं। ग्वानयिन6 नामक पंथ उनमें से एक है। इसलिए, सावधान रहें। यह कहा जाता है कि एक पूर्वी एशिया के देश में दो हजार से भी अधिक पध्दतियाँ प्रचलित हैं। दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों और कुछ पश्चिमी देशों में सभी प्रकार की विश्वास पध्दतियाँ प्रचलित हैं। एक देश में खुले रूप से एक असुर उपासना की पध्दति है। ये सभी वस्तुएं वे असुर हैं जो धर्म विनाश काल में सामने आ गये हैं। धर्म विनाश काल केवल बुध्दमत से ही संबंधित नहीं है, बल्कि एक अत्यन्त ऊँचे आयाम के नीचे अनेकों आयामों के भ्रष्ट होने से भी संबंधित है। "धर्म-विनाश" केवल बुध्दमत को ही इंगित नहीं करता "इसका यह भी अर्थ है कि मानव समाज में नैतिकता बनाये रखने के लिए कोई आध्यात्मिक दायित्व शेष नहीं रह गया है।
केवल एक साधना मार्ग का अभ्यास करना
हम सिखाते हैं कि व्यक्ति को केवल एक ही साधना मार्ग का अभ्यास करना चाहिए। आप जिस प्रकार भी साधना अभ्यास करते हैं, आप को दूसरी वस्तुएं डाल कर अपनी साधना बर्बाद नहीं करनी चाहिए। कुछ बुध्दमत के अनुयायी बुध्दमत और हमारे फालुन दाफा दोनों का अभ्यास करते हैं। मैं बता रहा हूँ कि अंत में आपको कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि कोई भी आपको कुछ नहीं देगा। क्योंकि हम सभी बुध्द विचारधारा से संबंधित हैं, यहाँ एक नैतिकगुण का विषय है और, इसके साथ ही, एक ही पध्दति में प्रवीणता प्राप्त करने का विषय है। आपके पास एक ही शरीर है। आपका शरीर किस विचारधारा के गोंग को विकसित करेगा? इसका रूपांतरण किस प्रकार होगा? आप कहां जाना चाहते हैं? आप वहीं जायेंगे जहां आपका साधना मार्ग आपको ले जाता है। यदि आप पवित्र भूमि बुध्दमत में साधना करते हैं तो आप बुध्द अमिताभ के परमानंद दिव्यलोक में जायेंगे। यदि आप साधना में औषध बुध्द का अनुसरण करते हैं तो आप आभावान दिव्यलोक में जायेंगे। सब धर्मों में यही कहा गया है, और इसे कहा जाता है "कोई दूसरा साधना मार्ग नहीं।"
जिस पध्दति के बारे में हम यहाँ बात कर रहे हैं वह वास्तव में शक्ति रूपांतरण की पूरी प्रणाली से संबंधित है, और इसमें अपनी साधना अभ्यास की पध्दति का अनुसरण किया जाता है। तब, आप क्या कहेंगे कि आप कहां जाना चाहते हैं? यदि आप एक ही समय में दो नावों पर सवार होते हैं, तो आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। न केवल चीगोंग पध्दति को मठों की बुध्दमत पध्दतियों से मिलाया जा सकता है, बल्कि साधना पध्दतियां, चीगोंग पध्दतियां या धर्मों के बीच भी वस्तुओं को नहीं मिलाया जा सकता। साधना में, यहां तक कि एक धर्म में भी, अनेकों उपवर्गों को नहीं मिलाया जा सकता। व्यक्ति को केवल एक ही साधना मार्ग अपनाना चाहिए। यदि आप पवित्र भूमि बुध्दमत में साधना करते हैं, तो आपको केवल पवित्र भूमि बुध्दमत की साधना करनी चाहिए। यदि आप तंत्रविद्या में साधना करते हैं, तो आपको केवल तंत्र की साधना करनी चाहिए। यदि आप जेन बुध्दमत में साधना करते हैं तो आप को केवल जेन बुध्दमत की साधना करनी चाहिए। यदि आप एक ही समय में दो नावों पर सवार होते हैं और यहाँ-वहाँ सब का अभ्यास करते हैं, तो आप कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। कहने का अर्थ है, बुध्दमत में भी यह आवश्यक है कि आप दूसरी पध्दति का अभ्यास न करें, और आपको साधना पध्दतियों को मिलाने की अनुमति नहीं है। बुध्दमत में भी गोंग और साधना दोनों का अभ्यास होता है। व्यक्ति के गोंग के रूपांतरण की प्रक्रिया उस साधना मार्ग में साधना अभ्यास और रूपांतरण की प्रक्रिया के अनुसार होती है। इसके साथ ही दूसरे आयामों में गोंग के उत्पन्न होने की एक प्रक्रिया होती है, और यह एक अत्यन्त जटिल और पेचीदा प्रक्रिया है जिसे साधना में सहज ही दूसरी वस्तुओं के साथ नहीं मिलाया जा सकता।
यह जान कर कि हम बुध्द विचारधारा के चीगोंग का अभ्यास करते हैं, कुछ बुध्दमत के अनुयायी हमारे अभ्यासियों को मठों में दीक्षा के लिए ले जाते हैं। मैं यहां बैठे आप सब लोगों को बताना चाहूँगा कि किसी को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए। आप हमारे दाफा और बुध्दमत की शिक्षाओं दोनों का अनादर कर रहे हैं। उसी समय, आप अभ्यासियों के मार्ग में बाधा डाल रहे हैं, जिससे वे कुछ प्राप्त करने लायक नहीं रह जायेंगे। इसकी अनुमति नहीं है। साधना अभ्यास एक गंभीर विषय है। व्यक्ति को एक ही अभ्यास में एकाग्र होना चाहिए। हालांकि यह भाग जो हम साधारण लोगों के बीच सिखाते हैं धर्म नहीं है, साधना अभ्यास में इसका लक्ष्य वही है। दोनों ही गोंग के खुलने की अवस्था को प्राप्त करने, ज्ञानप्राप्ति, और साधना के पूर्ण होने का प्रयास करते हैं।
शाक्यमुनि ने कहा था कि धर्म-विनाश के समय मठों के भिक्षुओं के लिए भी स्वयं को बचाना कठिन होगा, उन घरों में रहने वाले बुध्दमत उपासकों की बात छोड़ दींजिये जिनकी देखरेख कोई नहीं करता। हालांकि आपके एक "गुरु" हैं, किन्तु वह तथाकथित गुरु भी एक अभ्यासी है। यदि गुरु वास्तव में साधना अभ्यास नहीं करता तो यह व्यर्थ होगा। हृदय के संवर्धन के बिना कोई भी इसमें सफल नहीं हो सकता। दीक्षा साधारण लोगों की औपचारिकता मात्र है। क्या दीक्षा के बाद आप बुध्द विचारधारा के शिष्य बन जाते हैं? तब क्या बुध्द आपकी देखरेख करेंगे? ऐसा कुछ नहीं है। यदि आप रोज इतना दण्डवत् प्रणाम करें कि आपके माथे से रक्त निकलने लगे, या आप ढेरों अगरबत्तियां भी जलायें, तो भी यह व्यर्थ है। इसमें सफल होने के लिए आपको सच्चे रूप से अपने हृदय का संवर्धन करना आवश्यक है। धर्म-विनाश के समय तक, ब्रह्माण्ड महान बदलावों से गुजर चुका है। यहाँ तक की धार्मिक उपासना स्थल भी पवित्र नहीं रह गये हैं। दिव्य सिध्दियों वाले लोग भी (जिनमें भिक्षु भी शामिल हैं) इस स्थिति को जान चुके हैं। वर्तमान में, जगत में मैं अकेला व्यक्ति हूँ जो जनसाधारण में एक उचित मार्ग सिखा रहा है। मैंने जो किया है वह पहले कभी नहीं हुआ। धर्म-विनाश के समय में मैंने इसका द्वार अधिकाधिक खोल दिया है। वास्तव में, इस प्रकार का अवसर एक हजार वर्ष या दस हजार वर्षों में भी नहीं आता। किन्तु यह कि किसी को बचाया जा सकता है- दूसरे शब्दों में, कि कोई साधना अभ्यास कर सकता है- पूरी तरह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है। जो मैं आपको बता रहा हूँ वह विशाल ब्रह्माण्ड का एक नियम है।
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आपको मेरा फालुन दाफा सीखना चाहिए। जो मैंने कहा वह एक नियम है। यदि आप साधना अभ्यास करना चाहते हैं, यह आवश्यक है कि आप केवल एक साधना मार्ग का अभ्यास करें। अन्यथा, आप साधना अभ्यास कर ही नहीं सकते। निश्चित ही, यदि आप साधना अभ्यास नहीं करना चाहते, हम आपको अकेला छोड़ देंगे। यह फा केवल उन सच्चे अभ्यासियों को ही सिखाया जाता है। इसलिए आपको केवल एक पध्दति में एकाग्रचित होना आवश्यक है, और दूसरी पध्दतियों की धारणाओं को भी नहीं मिलाना चाहिए। मैं यहां मानसिक क्रियाऐं नहीं सिखाता; हमारे फालुन दाफा में कोई मानसिक क्रियायें नहीं होतीं। इस प्रकार, किसी को इसमें कोई विचार नहीं मिलाना चाहिए। इसे मन में अवश्य रखें : यहां कोई मानसिक क्रिया नहीं होती। बुध्द विचारधारा में शून्यता की आवश्यकता होती है, और ताओ विचारधारा में रिक्तता की।
एक अवसर पर मैंने अपने मन को चार या पाँच अत्यन्त उच्च स्तरों के ज्ञानप्राप्त व्यक्तियों और महान ताओ के साथ जोड़ा। उनके स्तरों की बात की जाये, उनके स्तर इतने ऊँचे थे कि साधारण लोग उसे बिल्कुल अविश्वसनीय मानेंगे। वे जानना चाहते थे कि मेरे मन में क्या है। मैंने इतने वर्षों तक साधना का अभ्यास किया है। दूसरे लोगों के लिए यह बिल्कुल असंभव है कि वे मेरा मन पढ़ सकें, और दूसरे लोगों की दिव्य सिध्दियां मुझ तक बिल्कुल नहीं पहुंच सकतीं। कोई भी मुझे समझ या जान नहीं सकता कि मेरे मन में क्या है। वे जानना चाहते थे कि मैं क्या सोच रहा हूँ। इसलिए, मेरी अनुमति से उन्होंने मेरे मन को उनके साथ कुछ समय के लिए जोड़ा। जुड़ने के बाद, मेरे लिए यह कुछ असहनीय था क्योंकि चाहे मेरा स्तर कितना ही ऊँचा या निम्न है, मैं साधारण लोगों के बीच में और कुछ उद्देश्यपूर्ण कर रहा हूँ- यानि, लोगों को बचाना-और मेरा हृदय लोगों को बचाने के लिए समर्पित है। किन्तु उनके मन कितने शांत थे? उनके मन इतने शांत थे कि यह भयावह के बिंदु तक था। एक व्यक्ति के लिए इतनी शांत अवस्था तक पहुंचना संभव है। किन्तु चार या पाँच लोगों का उतनी शांत अवस्था में वहाँ बैठना, यह एक शांत पानी के तलाब जैसा था जिसमें कुछ नहीं था। मैं व्यर्थ में उन्हें अनुभव करने का प्रयास करता रहा। उन कुछ दिनों में, मुझे मानसिक तौर पर बहुत असुविधाजनक लगा और एक अनूठा अनुभव लगा। साधारण लोग इसे किसी भी प्रकार सोच या अनुभव नहीं कर सकते; यह पूरी तरह मोह से मुक्त और रिक्त था।
साधना के बहुत उच्च स्तरों पर किसी भी प्रकार की मानसिक क्रिया का प्रयोग नहीं किया जाता। यह इसलिए कि जब आप साधारण लोगों के आधार बनने के स्तर पर थे, वह आधारभूत प्रणाली पहले से ही बना ली गई थी। उच्च स्तर साधना में पहुँचने के बाद, हमारी साधना प्रणाली स्वचालित कार्य करती है, और साधना अभ्यास पूर्णत: स्वचालित होता है। जब तक आप अपने नैतिकगुण में विकास करते रहते हैं, आपका गोंग बढ़ता रहता है। आपको व्यायाम करने की भी आवश्यकता नहीं होती। हमारे व्यायाम स्वचालित प्रणालियों को सुदृढ़ करने के लिए हैं। ध्यान में शांत बैठना क्यों आवश्यक होता है? व्यक्ति पूरी तरह वूवेइ अवस्था में होता है। आप जानते होंगे कि ताओ विचारधारा में कई प्रकार के व्यायाम, मानसिक क्रियायें, या मन द्वारा संचालन सिखाया जाता है। मैं आपको बताना चाहूँगा कि जैसे ही ताओ विचारधारा ची स्तर से आगे पहुंचती है, इसमें कुछ नहीं होता और वह किसी प्रकार की मानसिक क्रिया का प्रयोग नहीं करती। इसलिए, कुछ लोग जो दूसरे चीगोंग का अभ्यास कर चुके हैं श्वास पध्दतियों, मानसिक क्रियाओं, आदि को नहीं छोड़ पाते। मैं उन्हें कॉलेज की वस्तुएँ सिखा रहा हूँ, और वे मुझसे हमेशा प्राथमिक स्कूल के शिष्यों की वस्तुऐं पूछते हैं, जैसे- मानसिक क्रियाओं का किस प्रकार प्रयोग और संचालन किया जाये। वे पहले से ही उस प्रकार से अभ्यस्त हैं। वे सोचते हैं कि चीगोंग उसी तरह है, जबकि वास्तव में, यह नहीं है।
दिव्य सिध्दियाँ और गोंग सामर्थ्य
आप में से कई चीगोंग की नामवली से स्पष्ट नहीं है, और कुछ लोग हमेशा ही इससे उलझन में रहते हैं। वे दिव्य सिध्दियों को गोंग सामर्थ्य मानते हैं, और इसके विपरीत भी। जो गोंग हमें नैतिकगुण की साधना और ब्रह्माण्ड की प्रकृति से आत्मसात होने से प्राप्त होता है हमारे सद्गुण से उत्पन्न होता है। यह व्यक्ति के स्तर की ऊँचाई, गोंग सामर्थ्य के बल, और साधना की फल पदवी को निर्धारित करता है। यह सबसे निर्णायक गोंग होता है। साधना के क्रम के दौरान, एक व्यक्ति के लिए किस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होगी। व्यक्ति में कुछ असाधारण और अलौकिक सिध्दियाँ, जिन्हें संक्षेप में हम दिव्य सिध्दियाँ कहते हैं, विकसित हो सकती हैं। वह गोंग जो व्यक्ति के स्तर में सुधार लाता है, जैसा मैंने अभी कहा, उसे गोंग सामर्थ्य कहते हैं। जितना ऊँचा व्यक्ति का स्तर होता है, उतना ही अधिक उसका गोंग सामर्थ्य होता है और उतनी ही प्रबल उसकी दिव्य सिध्दियाँ होती हैं।
दिव्य सिध्दियाँ व्यक्ति के साधना क्रम में केवल अतिरिक्त-उत्पाद होती हैं; वे न तो व्यक्ति के स्तर और न ही उसके स्तर की ऊँचाई, और न ही उसके गोंग सामर्थ्य की शक्ति को दर्शाती हैं। कुछ लोगों में ये अधिक विकसित होती हैं तो कुछ लोगों में कम। इसके अतिरिक्त, दिव्य सिध्दियाँ कुछ ऐसी वस्तुएं नहीं हैं जिनकी साधना के मुख्य उद्देश्य की तरह इच्छा रखी जाये। केवल जब व्यक्ति वास्तव में साधना अभ्यास के लिए संकल्पित होता है तभी वह उन्हें विकसित कर सकता है; हालांकि, उन्हें साधना का मुख्य उद्देश्य नहीं माना जा सकता। आप उन्हें किसलिए विकसित करते हैं? क्या आप उन्हें साधारण लोगों के बीच प्रयोग करना चाहते हैं? आपके लिए उनका जानबूझ कर साधारण लोगों के बीच प्रयोग की सख्त मनाही है। इस प्रकार, जितनी अधिक आप उनकी इच्छा रखते हैं, उतना ही कम आप उन्हें प्राप्त करेंगे। यह इसलिए क्योंकि आप में इच्छाभाव है। इच्छा स्वयं में एक मोहभाव है। साधना अभ्यास में, मोहभावों को ही हटाने की आवश्यकता होती है।
कई लोग, दिव्य सिध्दियों के बिना ही साधना के बहुत उँचे स्तर पर पहुंच जाते हैं। गुरु ने उन्हें बंधित कर दिया होता है क्योंकि ऐसी स्थिति न हो कि वे स्वयं को ठीक से नहीं संभाल पायें और बुरा कार्य कर बैठें। इसलिए, उन्हें अपनी अलौकिक सिध्दियों के प्रयोग की अनुमति नहीं होती। इस प्रकार के बहुत से लोग हैं। दिव्य सिध्दियाँ व्यक्ति के मन द्वारा निर्देशित होती हैं। हो सकता है व्यक्ति सोते समय स्वयं पर नियंत्रण न रख पाये। स्वप्न में हो सकता है कि वह अगली सुबह तक धरती और आकाश को उलट-पलट कर दे, और इसकी अनुमति नहीं है। क्योंकि साधना अभ्यास साधारण लोगों के बीच किया जाता हैं, जिनकी महान दिव्य सिध्दियाँ होती है उन्हें अक्सर उनके प्रयोग की अनुमति नहीं होती। उनमें से अधिकतर बंधित रहती हैं, किन्तु यह आवश्यक नहीं है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो साधना अभ्यास बहुत अच्छी तरह कर पाते हैं और स्वयं को अच्छी तरह संचालित कर पाते हैं। उन्हें कुछ दिव्य सिध्दियों को रखने की अनुमति होती है। जहां तक इन लोगों की बात है, यदि आप उन्हें दिव्य सिध्दियों के प्रदर्शन के लिए कहें, वे निश्चित ही ऐसा नहीं करेंगे; वे स्वयं पर नियंत्रण रख पाते हैं।
विपरीत साधना और गोंग ऋण
कुछ लोगों ने चीगोंग का कभी अभ्यास नहीं किया, या हो सकता है उन्होंने कुछ वस्तुऐं किसी चीगोंग कक्षा में सीखी हों। किन्तु वे रोग निवारण और स्वस्थ रहने के लिए हैं, और वे साधना अभ्यास के लिए नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, इन लोगों ने कभी भी सच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं की, किन्तु अचानक एक रात उन्हें गोंग प्राप्त हो जाता है। हम चर्चा करेंगे कि यह गोंग कहां से आता है। इसके कई प्रकार हैं।
इनमें से एक विपरीत साधना से संबंधित है। विपरीत साधना क्या होती है? कुछ लोग अपेक्षाकृत वृध्द होते हैं और वे साधना का अभ्यास करना चाहते हैं। उनके लिए आरंभ से साधना करने के लिए बहुत देरी हो चुकी है। जब चीगोंग अपने प्रसिध्दि के शिखर पर था, वे भी साधना का अभ्यास करना चाहते थे। वे जानते थे कि चीगोंग अभ्यास दूसरे लोगों के लिए लाभप्रद हो सकता है, और साथ ही साथ वे स्वयं में भी सुधार ला सकते थे। उनकी यह इच्छा थी और वे स्वयं में सुधार लाना और साधना का अभ्यास करना चाहते थे। हालांकि, कुछ वर्ष पहले जब चीगोंग प्रसिध्द था, सभी चीगोंग गुरु चीगोंग को बढ़ावा दे रहे थे, और किसी ने भी वास्तव में उच्च स्तरों की वस्तुएँ नहीं सिखायीं। आज तक भी जहाँ तक चीगोंग को वास्तव में सार्वजनिक रूप से उच्च स्तरों पर सिखाने का प्रश्न है, मैं अकेला व्यक्ति हूँ जो ऐसा कर रहा है। कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा नहीं कर रहा है। विपरीत साधना में सभी लोग पचास वर्ष से अधिक के थे, जो अपेक्षाकृत वृध्द उम्र है। उनके जन्मजात गुण बहुत अच्छे थे और उनके शरीरों में बहुत अच्छी वस्तुऐं थीं। उनमें से अधिकतर उन गुरुओं के शिष्य अथवा उत्तराधिकारी बनने योग्य थे। किन्तु ये लोग वृध्दावस्था में थे। यदि वे साधना अभ्यास करना चाहते थे, तो इसे कहना सरल है किन्तु करना कठिन। उन्हें एक गुरु कहां से मिलता? किन्तु जैसे ही वे साधना का अभ्यास करना चाहते थे और उनके हृदय में यह विचार आते ही, यह सोने की भांति प्रकाशवान होता और दस दिशाओं वाले जगत को हिला देता। लोग अक्सर बुध्द-स्वभाव की बात करते हैं, और यह बुध्द-स्वभाव था जिसका उद्भव हो गया था।
ऊँचे स्तर के दृष्टिकोण से, व्यक्ति का जीवन मानव बने रहने के लिए नहीं है। क्योंकि व्यक्ति के जीवन की रचना ब्रह्माण्ड के अंतरिक्ष में हुई है, यह ब्रह्माण्ड की प्रकृति सत्य-करूणा-सहनशीलता से आत्मसात होता है। इसकी प्रकृति करूणामयी और परोपकारी होती है। तत्पश्चात, जब जीवों की संख्या बढ़ जाती है, एक सामाजिक संबंध स्थापित हो जाता है। परिणामस्वरूप, कुछ लोग स्वार्थी या बुरे हो जाते हैं और बहुत ऊँचे स्तरों पर नहीं रह सकते। उनके लिए एक निम्न स्तर पर गिरना आवश्यक हो जाता है जहां वे फिर से बुरे बन जाते हैं, तब उन्हें और नीचे अगले स्तर पर गिरना होता है। यह इस प्रकार चलता रहता है जब तक अंत में वे इस साधारण मानव स्तर पर नहीं आ जाते। इस स्तर में गिरने पर, उनका पूर्ण विनाश हो जाना चाहिए। किन्तु, अपने परोपकारी और करुणा स्वभाववश, उन महान ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों ने मानव जाति को इस सर्वाधिक दु:खदायी वातावरण में एक और अवसर दिया; उन्होंने इस प्रकार एक ऐसे आयाम की रचना की।
दूसरे आयामों में, लोगों के इस प्रकार के शरीर नहीं होते। वे उड़ सकते हैं और बड़े या छोटे हो सकते हैं। किन्तु इस आयाम में लोगों को इस प्रकार का शरीर दिया गया है, हमारा भौतिक शरीर। इस शरीर से, व्यक्ति को सर्दी, गर्मी, थकान, या भूख से सामना करना कठिन हो जाता है। किसी भी प्रकार से, यह पीड़ा भोगना है। जब आप बीमार होते हैं, आप पीड़ा भोगते हैं। व्यक्ति को जन्म, वृध्दावस्था, रोग, और मृत्यु से गुजरना पड़ता है जिससे वह पीड़ा द्वारा अपने कर्म ऋण का भुगतान कर सके। आपको एक और अवसर यह देखने के लिए प्रदान किया गया है कि आप अपने मूल की ओर लौट पाते हैं या नहीं। इसलिए, मनुष्य एक भ्रमजाल में गिर गये हैं। आपके यहां नीचे गिरने के बाद, आपके लिए इन दो आंखों की रचना की गयी है जिससे आप दूसरे आयामों और पदार्थ के सत्य को नहीं देख सकते। यदि आप मूल स्थान पर लौट सकें, तो सबसे कड़वी पीड़ा भी सर्वाधिक मूल्यवान होगी। भ्रमजाल के बीच साधना के अभ्यास और वस्तुओं के प्रति ज्ञानोदय द्वारा अपने मूल स्थान की ओर लौटने में, यहाँ अनेकों कठिनाइयाँ हैं; इसलिए व्यक्ति शीघ्रता से इसे कर सकता है। यदि आप और बुरे हो जाते हैं, आपका जीवन समाप्त कर दिया जायेगा। इसलिए, दूसरे जीवों के दृष्टिकोण से, व्यक्ति का जीवन मनुष्य बने रहने के लिए नहीं है। यह व्यक्ति की मूल, सच्ची प्रकृति की ओर लौटने के लिए है। एक साधारण व्यक्ति इसे नहीं समझ सकता। एक साधारण व्यक्ति साधारण मानव समाज में केवल एक साधारण व्यक्ति है, एक ऐसा व्यक्ति जो स्वयं को आगे बढ़ाने और अच्छे रहन-सहन के बारे में सोचता है। वह जितने सुख से रहता है, उतना ही स्वार्थी बन जाता है; जितना अधिक वह पाना चाहता है, उतना ही वह ब्रह्माण्ड की प्रकृति से दूर हो जाता है। फिर वह विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है।
एक ऊँचे स्तर से देखने पर, जबकि आप सोचते हैं कि आप आगे की ओर बढ़ रहे हैं, आप वास्तव में पीछे की ओर लौट रहे हैं। मनुष्यजाति सोचती है कि यह विज्ञान में विकास कर रही है और आगे बढ़ रही है; वास्तव में, यह केवल ब्रह्माण्ड के सिध्दांत का अनुसरण कर रही है। ज़ांग गुओलाओ जो ताओ के आठ देवों में से एक थे, अपने गधे पर विपरीत दिशा में सवारी करते थे। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि वे अपने गधे पर विपरीत दिशा में सवारी क्यों करते थे? उन्होंने जाना कि आगे की ओर बढ़ने का अर्थ है पीछे की ओर लौटना, इसलिए वे गधे पर विपरीत दिशा में सवार होते थे। इसलिए, जैसे ही लोग साधना अभ्यास करना चाहते हैं, महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति इस हृदय को बहुत मूल्यवान समझते हैं और बिना शर्त मदद देते हैं। यह इसी प्रकार है जैसे आज यहां अभ्यासी बैठे हैं। यदि आप साधना अभ्यास करना चाहते हैं, मैं आपकी बिना शर्त मदद कर सकता हूँ। किन्तु यह तब नहीं किया जा सकता यदि आप रोगों का निवारण करना चाहते हैं और साधारण लोगों की तरह यहाँ-वहाँ कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, तब मैं आपकी मदद करने में असमर्थ रहूँगा। ऐसा क्यों है? यह इसलिए क्योंकि आप एक साधारण व्यक्ति बने रहना चाहते हैं, और साधारण व्यक्ति को जन्म, वृध्दावस्था, रोग, और मृत्यु से गुजरना पड़ता है-यह इसी प्रकार होता है। सभी वस्तुओं का कर्म संबंध होता है जिसमें व्यावधान नहीं डाला जा सकता। आपके जीवन में आरंभ में साधना अभ्यास सम्मिलित नहीं था, किन्तु अब आप साधना अभ्यास करना चाहते हैं। इस प्रकार, आपका भविष्य जीवन पुन:व्यवस्थित करना आवश्यक है, और इसलिए आपके लिए आपके शरीर को व्यवस्थित करने की अनुमति है।
जैसे ही व्यक्ति साधना अभ्यास करना चाहता है और यह इच्छा उत्पन्न होती है, महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति इसे देख लेते हैं और बहुत मूल्यवान मानते हैं। किन्तु वे उसकी मदद किस प्रकार कर सकते हैं? इस जगत में वह एक गुरु को कहां खोजेगा? इसके अतिरिक्त, उसकी उम्र पचास से अधिक है। महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति इस व्यक्ति को नहीं सिखा सकते। यह इसलिए क्योंकि यदि वे स्वयं को प्रकट करते हैं और उसे फा और व्यायाम सिखाते हैं, यह दिव्य रहस्यों को उजागर करना होगा; उन्हें स्वयं भी नीचे गिरना होगा। लोग इस भ्रमजाल में गिरते हैं क्योंकि उन्होंने बुरे कार्य किये हैं, और इसलिए उनके लिए साधना अभ्यास करना और लगातार भ्रमजाल में ज्ञानोदय करते जाना आवश्यक है। इसलिए, महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति उसे नहीं सिखा सकते। यदि वास्तविक जीवन में लोगों की ऑंखों के सामने एक बुध्द प्रकट हो जाये और उन्हें फा और व्यायाम दोनों सिखाये, तो वे लोग भी जिनके पाप क्षमा योग्य नहीं हैं सीखने आ जायेंगे। हर कोई इस पर विश्वास कर लेगा। तब, लोगों के लिए ज्ञानोदय के लिए क्या रह जायेगा? तब ज्ञानोदय का विषय ही नहीं रहेगा। क्योंकि लोग भ्रमजाल में अपने ही कारण गिरे हैं, उनका विनाश हो जाना चाहिए। आपको भ्रमजाल से अपने मूल स्थान की ओर लौटने का एक और अवसर प्रदान किया जा रहा है। यदि आप अपने मूल स्थान पर लौट सके, आप इसे पूर्ण कर लेंगे। यदि आप इसे नहीं कर सके, आप संसार के चक्र में चलते रहेंगे और या विनाश को प्राप्त होंगे।
व्यक्ति अपना मार्ग स्वयं बनाता है। क्या होता है यदि कोई व्यक्ति साधना का अभ्यास करना चाहता है? उन्होंने एक मार्ग निकाला। उस समय चीगोंग बहुत प्रचलित था, और यह विश्व के वातावरण में बदलाव भी था। इस विश्व के वातावरण के साथ सहयोग के लिए, ज्ञानप्राप्त व्यक्ति इस व्यक्ति को उसके नैतिकगुण स्तर के अनुसार एक लचीली वाहिका द्वारा गोंग की पूर्ति करते थे। एक पानी के नल की तरह यदि इसे चला दिया जाता था तो शक्ति प्रवाहित होने लगती थी। यदि वह गोंग निष्कासित करना चाहता था, तो गोंग आने लगता था। वह स्वयं गोंग नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि उसके पास अपना कोई गोंग नहीं था। यह इसी प्रकार था। इसे "विपरीत साधना" कहा जाता है और इसमें व्यक्ति ऊँचे स्तर से निम्न स्तर की ओर वापस साधना पूर्ण करता है।
हम साधारणत: साधना अभ्यास निम्न स्तर से ऊँचे स्तर की ओर करते हैं जब तक गोंग खुल न जाये या साधना पूर्ण न हो जाये। यह विपरीत साधना उन वृध्द लोगों के लिए थी जिनके पास निम्न स्तर से ऊँचे स्तर की ओर साधना अभ्यास के लिए समुचित समय नहीं था। इसलिए, यह शीघ्र होता यदि वे ऊँचे स्तर से निम्न स्तर की ओर अभ्यास करते। इस परिस्थिति को उस समय प्रचलन में लाया गया। इस प्रकार के व्यक्ति का बहुत ऊँचे स्तर का नैतिकगुण होना आवश्यक था, और उसे शक्ति उसके नैतिकगुण स्तर के अनुसार दी जाती थी। इसके क्या प्रयोजन थे? एक था उस समय के विश्व के वातावरण के साथ सहयोग करना। जब यह व्यक्ति अच्छे कार्य कर रहा था, तो वह उसी समय कठिनाईयां सहन कर सकता था। यह इसलिए क्योंकि साधारण लोगों के बीच, साधारण लोगों के विभिन्न मोहभाव उसके साथ व्यावधान ला सकते थे। जब वह किसी रोगी का रोग ठीक कर देता था, तो रोगी कई बार कृतज्ञ नहीं होता था। जब उसने रोगी का उपचार किया, हो सकता है उसने रोगी के शरीर से बहुत सी बुरी वस्तुऐं हटा दी हों। हालांकि उसने रोगी को उस अवस्था तक ठीक कर दिया था, किन्तु उस समय हो सकता है कोई स्पष्ट बदलाव न हुए हों। रोगी, हालांकि, अपने मन में प्रसन्न नहीं हुआ। कृतज्ञ होने के स्थान पर, हो सकता है उसने उस पर धोखे का आरोप लगाया हो। इन समस्याओं के साथ, इस वातावरण में वह मानसिक कठिनाइयों से गुजर रहा था। उसको शक्ति देने का प्रयोजन उसे साधना अभ्यास करने में समर्थ बनाना और उसमें सुधार लाना था। अच्छे कार्य करने के साथ, वह अपनी दिव्य सिध्दियाँ भी विकसित कर सकता था और अपना गोंग बना सकता था; हालांकि, कुछ लोग इस नियम को नहीं जानते थे। क्या मैंने नहीं बताया कि कोई भी इस व्यक्ति को फा नहीं सिखा सकता था? यदि वह इसे समझ सकता, तो वह इसे प्राप्त कर सकता था। यह एक ज्ञानोदय का विषय था। यदि वह इसे नहीं समझ सकता था, तो कुछ नहीं किया जा सकता था।
जब कुछ लोगों ने शक्ति प्राप्त की, तब एक रात सोते समय अचानक उन्हें बहुत गरमाहट अनुभव हुई और वे चादर भी नहीं ओढ़ सके। जब वे अगली सुबह उठे, उन्होंने जहां कहीं हाथ रखा उन्हें एक बिजली का झटका सा लगा। वे जान गये थे कि उन्हें शक्ति प्राप्त हुई है। यदि किसी को शरीर में दर्द था, तो वे अपने हाथों से उस समस्या को ठीक कर सकते थे, और इसके बहुत अच्छे परिणाम मिलते थे। तब वे जान गये थे कि उनके पास शक्ति है। वे चीगोंग गुरु बन गये और उन्होंने नाम पट्टियाँ भी लगवा दीं। वे स्वयं को चीगोंग गुरु कहलवाने लगे और उन्होंने अपने अभ्यास स्थापित कर दिये। आरम्भ में ये लोग बहुत अच्छे थे। जब वह दूसरे लोगों के रोगों का निवारण करता, वे उसे धन या कुछ उपहार भेंट करते थे-जिन सब को वह अस्वीकार कर देता था और लेने से मना करता था। किन्तु वह साधारण लोगों के भ्रष्ट वातावरण से स्वयं को दूर नहीं रख सका। क्योंकि ये विपरीत साधना के लोग कभी सच्ची नैतिकगुण साधना से नहीं गुजरे थे, उनके लिए अपने नैतिकगुण को संभाल पाना बहुत कठिन था। धीरे-धीरे, वह छोटे उपहार स्वीकारने लगा। बाद में, वह बड़े उपहार भी स्वीकारने लगा। उसके बाद, यदि उपहार कम होते थे वह नाराज भी हो जाता। अन्त में, वह कहता, "आप मुझे इतनी वस्तुएँ क्यों देते हैं? मुझे धन दीजिए!" यदि उसे कम धन दिया जाता तो वह प्रसन्न नहीं होता था। दूसरे लोगों द्वारा झूठी प्रशंसा सुनकर कि वह कितना सामर्थ्यवान है, वह उचित विचारधारा के चीगोंग गुरुओं का भी आदर नहीं करता था। यदि कोई उसे कुछ बुरा कह देता, तो वह नाराज हो जाता था। इस व्यक्ति के प्रसिध्दि और निजी-लाभ के मोहभाव पूरी तरह विकसित हो चुके थे। वह स्वयं को औरों से अच्छा और असाधारण समझता था। वह गलती से यह सोचता था कि उसे शक्ति चीगोंग गुरु बनने और बहुत सा धन एकत्रित करने के लिए दी गई है, जबकि वास्तव में यह उसे साधना अभ्यास के लिए दी गई थी। एक बार प्रसिध्दि और लाभ के लिए मोहभाव उत्पन्न हो जाने पर, उस व्यक्ति का नैतिकगुण स्तर वास्तव में गिर चुका था।
मैं बता चुका हूँ कि व्यक्ति का गोंग स्तर उसके नैतिकगुण स्तर के बराबर ऊँचा होता है। जब उसका नैतिकगुण स्तर गिर जाता है, तब उसे उतना गोंग उपलब्ध नहीं कराया जायेगा क्योंकि यह उसके नैतिकगुण स्तर के अनुसार दिया जाना चाहिए। जितना अधिक व्यक्ति में प्रसिध्दि और निजी-लाभ के लिए मोहभाव होगा, उतना ही वह साधारण लोगों के बीच निम्न स्तर पर गिर जायेगा। उसका गोंग भी उसी के अनुसार कम हो जायेगा। अन्त में, जब वह पूरी तरह धरातल पर गिर चुका होता है, तब उसे कोई गोंग नहीं दिया जायेगा। इस व्यक्ति के पास कोई गोंग नहीं होगा। कुछ वर्ष पूर्व इस प्रकार के कई लोग थे, जिनमें से अधिकांश पचास वर्ष से अधिक उम्र की महिलायें थीं। यद्यपि आपने किसी वृध्द महिला को चीगोंग का अभ्यास करते हुए देखा होगा, उसने कभी सच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। हो सकता है उसने किसी चीगोंग कक्षा में स्वस्थ रहने और रोग निवारण के लिए कुछ व्यायाम सीखे हों। एक दिन, उसे अचानक गोंग प्राप्त हो जाता है। एक बार उसका नैतिकगुण कम हो जाने पर या उसके प्रसिध्दि और निजी-लाभ के प्रति मोहभाव उत्पन्न हो जाने पर, उसका स्तर गिर जायेगा। तब उसके लिए कुछ शेष नहीं बचेगा, और उसका गोंग भी लुप्त हो जायेगा। आजकल ऐसे बहुत से विपरीत साधना वाले लोग हैं जिनके स्तर गिर चुके हैं। उनमें से केवल कुछ ही अभी सक्रिय हैं। ऐसा क्यों? वह महिला यह नहीं जानती थी कि वह उसे साधना अभ्यास के लिए दिया गया है, और उसने गलती से सोचा कि यह उसे धन अर्जित करने, प्रसिध्दि पाने, और एक चीगोंग गुरु बनने के लिए दिया गया है। वास्तव में, यह उसके साधना अभ्यास के लिए था।
"गोंग ऋण पर लेना" क्या है? इसमें किसी उम्र की सीमा नहीं होती, किन्तु केवल एक आवश्यकता है : व्यक्ति का नैतिकगुण बहुत अच्छा होना चाहिए। यह व्यक्ति जानता है कि चीगोंग द्वारा साधना अभ्यास किया जा सकता है, और वह भी साधना अभ्यास करना चाहता है। उसका भी साधना अभ्यास के लिए हृदय है, किन्तु वह एक गुरु कहां से पायेगा? कुछ वर्ष पूर्व, वास्तव में कुछ सच्चे चीगोंग गुरु थे जो चीगोंग सिखाते थे। हालांकि, जो उन्होंने सिखाया वह पूरी तरह रोग निवारण और स्वस्थ रहने के लिए था। किसी ने भी ऊँचे स्तर का चीगोंग नहीं सिखाया, और न ही उन्होंने ऐसा किया।
गोंग ऋण लेने के बारे में कहा जाये, तो मैं एक और विषय बताना चाहूँगा। मुख्य आत्मा (ज़ू युआनशन) के अलावा, व्यक्ति की सह आत्मा (फु युआनशन) भी होती है। कुछ लोगों की एक, दो, तीन, चार, या पाँच सह आत्माएँ भी होती हैं। यह आवश्यक नहीं कि व्यक्ति की सह आत्मा का लिंग भी वही हो जो उस व्यक्ति का है। कुछ नर हैं और कुछ मादा। वे सभी भिन्न होते हैं। वास्तव में, यह आवश्यक नहीं कि मुख्य आत्मा का लिंग भी वही हो जो भौतिक शरीर का है, क्योंकि हमने पाया है वर्तमान में कई पुरुषों की मादा मूल-आत्मा होती है, जबकि कई महिलाओं की नर मूल-आत्मा होती है। यह पूरी तरह विश्व के वातावरण से मेल खाता है जैसा ताओ विचारधारा ने इसका वर्णन किया है, कि जैसे यिन और येंग विपरीत कर दिये जायें, यिन बढ़ाव में और येंग गिरावट में।
व्यक्ति की सह आत्मा साधारणत: उसकी मुख्य आत्मा से ऊँचे स्तर से आती है। विशेषकर कुछ लोगों के लिए, उनकी सह आत्मा बहुत ऊँचे स्तर से आई है। सह आत्मा ग्रसित करने वाली आत्मा नहीं होती, क्योंकि इसका जन्म आपके साथ ही आपकी माता के गर्भ से हुआ है। इसका भी वही नाम होता है जो आपका है, क्योंकि यह आपके ही शरीर का भाग है। साधारणत:, जब लोग कुछ सोचते हैं या कुछ करते हैं, तो निर्णय लेना मुख्य आत्मा पर निर्भर करता है। सह आत्मा मुख्य रूप से अपना भरसक प्रयत्न करती है कि व्यक्ति की मुख्य आत्मा बुरे कार्य न करे। हालांकि, जब मुख्य आत्मा बहुत हठी होती है, तब सह आत्मा मदद करने में असमर्थ होती है। सह आत्मा साधारण मानव समाज में मूर्ख नहीं बनती जबकि मुख्य आत्मा सरलता से धोखा खा जाती है।
कुछ सह आत्मायें बहुत ऊँचे स्तरों से आती हैं और साधना में उचित फल की प्राप्ति की सीमा पर होती हैं। सह आत्मा साधना का अभ्यास करना चाहती है, किन्तु यह इसके बारे में कुछ नहीं कर सकती यदि मुख्य आत्मा इसे नहीं करना चाहती। जब चीगोंग बहुत प्रचलित था, एक दिन मुख्य आत्मा भी चीगोंग का अभ्यास करना चाहती थी। ऊँचे स्तरों की ओर साधना का विचार निश्चित ही बहुत पवित्र और सरल था; उसमें प्रसिध्दि और निजी-लाभ जैसी वस्तुओं की कामना नहीं थी। सह आत्मा, हालांकि, बहुत प्रसन्न थी, "मैं साधना अभ्यास करना चाहती हूँ, किन्तु मैं निर्णय नहीं लेती। अब तुम साधना अभ्यास करना चाहती हो, और यही तो मैं चाहती हूँ।" किन्तु उस व्यक्ति को गुरु कहाँ से मिलेगा? सह आत्मा बहुत समर्थ थी और वह शरीर को छोड़ कर उस ज्ञानप्राप्त व्यक्ति को खोजने निकल पड़ी जिसे वह अपने पिछले जीवन में जानती थी। क्योंकि कुछ सह आत्माऐं बहुत ऊँचे स्तरों से आती हैं, वे शरीर छोड़ सकती हैं। वहाँ ऊपर पहुँचने पर, उसने साधना करने और गोंग का ऋण लेने के लिए अपनी इच्छायें व्यक्त कीं। महान ज्ञानप्राप्ति व्यक्तियों को यह बहुत अच्छा लगता, और निश्चित ही उसकी साधना में मदद करते। इस प्रकार, सह आत्मा कुछ गोंग ऋण पर ले आई। साधारणत:, यह गोंग एक चमकती हुई शक्ति है जो एक प्रवाहिका के द्वारा दिया जाता था। कुछ ऋण पर ली हुई शक्ति कुछ रूपों में भी आती है, और साधारणत: इसमें दिव्य सिध्दियाँ भी रहती हैं।
इस प्रकार, इस व्यक्ति के पास दिव्य सिध्दियाँ भी हो सकती थीं। यह व्यक्ति भी जैसा अभी मैंने वर्णन किया, एक रात सोते समय बहुत गरमाहट अनुभव करता। जब वह अगली सुबह उठता तो उसके पास शक्ति होती। जहाँ कहीं वह अपना हाथ रखता उसे बिजली का झटका लगता। वह दूसरों के रोगों का निवारण कर पाता, और वह जान गया था कि उसे शक्ति प्राप्त हुई है। यह शक्ति कहां से आई? वह इसके बारे में अस्पष्ट था। उसे केवल एक धुंधला सा विचार था यह ब्रह्माण्ड के अंतरिक्ष से आई है। किन्तु वह निश्चित रूप से नहीं जानता था कि यह कहाँ से आई है। सह आत्मा उसे यह नहीं बताती थी, क्योंकि यह सह आत्मा थी जो साधना का अभ्यास करती थी। वह केवल यह जानता था कि उसे शक्ति प्राप्त हुई है।
जिन लोगों को शक्ति ऋण पर प्राप्त हुई उनकी अक्सर उम्र की सीमा नहीं थी, और उनमें से अधिकतर अपेक्षाकृत युवा लोग थे। इसलिए कुछ वर्ष पूर्व बीस, तीस या चालीस साल के कुछ युवा लोग भी थे जो जनता में आये। उनमें से कुछ वृध्द लोग भी थे। एक युवा व्यक्ति के लिए अपने आप को अच्छी तरह संभालना अधिक कठिन था। हो सकता है कि आपने पाया हो कि यह व्यक्ति अक्सर बहुत अच्छा था, और जब साधारण मानव समाज में उसके पास बहुत सी सिध्दियाँ नहीं थी, तब उसे प्रसिध्दि और निजी-लाभ की तनिक भी इच्छा नहीं थी। एक बार सुप्रसिध्द हो जाने पर, प्रसिध्दि और लाभ सरलता से व्यावधान डालने लगे। वह सोचता था कि जीवन में उसे और भी आगे जाना है, और वह अभी भी साधारण लोगों के कुछ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयत्न करता। इसलिए एक बार उसे दिव्य सिध्दियाँ और कुछ योग्यताएँ विकसित हो जाने पर, उनका प्रयोग साधारण मानव समाज में उसके निजी लक्ष्यों को पाने के लिए किया जा सकता था। तब ये कार्य नहीं करतीं और उनके इस प्रकार प्रयोग की मनाही थी। जितना अधिक वह उनका प्रयोग करता, उतनी ही उसकी शक्ति कम होती जाती। अन्त में उसके पास कुछ शेष नहीं बचता। ऐसे और भी अधिक लोग हैं जिनके स्तर इस प्रकार गिरे। मैंने पाया है कि अब उनमें से कोई नहीं बचा है।
जिन दो स्थितियों की अभी मैंने ऊपर चर्चा की दोनों में शक्ति का प्रयोग होता था जो अपेक्षाकृत अच्छे नैतिकगुण के लोगों द्वारा प्राप्त की गई थी। ये शक्ति उनके अपने साधना अभ्यास द्वारा उत्पन्न नहीं हुई थी। यह महान ज्ञानप्राप्त व्यक्तियों से आई थी, और इस प्रकार शक्ति स्वयं में अच्छी थी।
प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित होना
आप में से कई लोगों ने साधक समाज में भेड़िये, नेवले, प्रेत, और सांपों जैसे पशुओं से ग्रसित होने की बातें सुनी होंगी। यह सब क्या है? कुछ लोग चींगोंग के अभ्यास द्वारा दिव्य सिध्दियाँ विकसित करने की बात करते हैं। वास्तव में दिव्य सिध्दियाँ विकसित नहीं की जातीं; बल्कि, वे मनुष्य की जन्मजात योग्यताएँ होती हैं। केवल यह है कि मानव समुदाय के विकास के साथ-साथ, लोग भौतिक जगत की दृश्यमान वस्तुओं पर अधिक केन्द्रित होते हैं, जिससे वे हमारे आधुनिक औजारों पर अधिक निर्भर हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, हमारी मानवीय जन्मजात योग्यताएँ और क्षीण हो जाती हैं। अन्त में, वे पूरी तरह लुप्त हो जाती हैं।
दिव्य सिध्दियाँ प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को उन्हें साधना अभ्यास द्वारा विकसित करना चाहिए और अपनी मूल, सच्ची प्रकृति की ओर लौटना चाहिए। किन्तु एक पशु का मन इतना परिष्कृत नहीं होता, इसलिए वह अपनी मूल प्रवृत्ति द्वारा ब्रह्माण्ड की प्रकृति के साथ जुड़ जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि पशु साधना अभ्यास कर सकते हैं, या भेड़िये जानते हैं कि शक्तिपुंज कैसे विकसित किया जाये, या यह कि सांप जानते हैं कैसे साधना अभ्यास किया जाये, इत्यादि। ऐसा नहीं है कि वे पशु जानते हैं कि साधना अभ्यास कैसे किया जाये। आरम्भ में वे बिल्कुल नहीं जानते कि साधना क्या होती है। उनके पास केवल मूल प्रवृत्ति होती है। तब, कुछ विशेष अवस्थाओं और परिस्थितियों में, कुछ समय बीतने पर इसका कुछ प्रभाव हो सकता है। वे कुछ शक्ति प्राप्त कर सकते हैं और कुछ दिव्य सिध्दियाँ विकसित कर सकते हैं।
इस प्रकार, किसी पशु के पास कुछ सिध्दियाँ हो सकती हैं। विगत में, हम कहते कि वह पशु कुछ सिध्दियों के साथ बहुत विवेकमान हो गया था। साधारण लोगों की दृष्टि में, पशु इतने प्रबल होते हैं कि वे सरलता से लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं। वास्तव में मैं कहता हूँ कि वे प्रबल नहीं होते और वे एक सच्चे अभ्यासी के सामने कुछ नहीं हैं। हालांकि आपको एक ऐसा मिल सकता है जिसने करीब एक हजार वर्ष तक साधना अभ्यास किया हो, उसे कुचलने के लिए एक छोटी अंगुली भी बहुत होगी। हमने कहा था कि पशुओं में यह मूल प्रवृत्ति होती है, और उनके पास कुछ सिध्दियाँ हो सकती है। किन्तु हमारे ब्रह्माण्ड का एक नियम है : पशुओं को साधना में सफल होने की अनुमति नहीं है। इसलिए, आप सभी प्राचीन पुस्तकों में पढ़ सकते हैं कि सैकड़ों वर्षों में एक बार, पशु किसी बड़ी दुर्घटना या छोटे प्रलय में मर जाते हैं। कुछ समयावधि में, पशु कुछ शक्ति विकसित कर लेते हैं और उनका मरना या उन पर बिजली गिरना, आदि आवश्यक होता है। उन्हें साधना अभ्यास की मनाही होती है क्योंकि उनके पास मानव जन्मजात प्रकृति नहीं होती; वे मनुष्यों की तरह साधना अभ्यास नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास मनुष्य गुण नहीं होते। यदि वे साधना में सफल होते हैं, तो वे अवश्य ही असुर बन जायेंगे। उन्हें इस प्रकार साधना में सफल होने की अनुमति नहीं होती। अन्यथा, वे देवलोक द्वारा मार दिये जायेंगे। वे भी यह जानते हैं। किन्तु जैसा मैंने कहा, मानव समुदाय आज एक बड़े गिरावट की ओर अग्रसर हैं और कुछ लोग सभी प्रकार के पाप कर रहे हैं। इस अवस्था में, क्या मानव समुदाय खतरे में नहीं हैं?
वस्तुओं का सीमा तक पहुँचने के बाद लौटना आवश्यक है! हमने पाया है कि पूर्व-ऐतिहासिक समय में जब कभी मानव समुदाय क्रमवार विनाश से गुजरा, यह हमेशा तभी हुआ जब मनुष्य जाति नैतिक रूप से अत्यन्त भ्रष्ट हो गई थी। अब, मनुष्यों के वास का आयाम और साथ ही कई और आयाम एक बहुत खतरनाक स्थिति में हैं। ऐसा ही इस स्तर पर कई और आयामों के लिए सत्य है; ग्रसित करने वाले प्रेत या पशु भी शीघ्रता से बच निकलाना चाहते हैं और ऊँचे स्तरों की ओर बढ़ना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि ऊँचे स्तरों की ओर चढ़ने से वे बच सकते हैं। किन्तु यह इतना सरल कैसे हो सकता है? साधना का अभ्यास करने के लिए, मानव शरीर होना आवश्यक है। इस प्रकार, यह एक कारण है कि कुछ चीगोंग अभ्यासी क्यों प्रेत या पशु से ग्रसित हो गये हैं।
कुछ लोग आश्चर्य करते हैं, "जब यहाँ इतने महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति हैं या उच्च स्तर के गुरु हैं, तो वे इसकी देख-रेख क्यों नहीं करते?" हमारे ब्रह्माण्ड का एक और नियम है : यदि आप किसी की इच्छा या चाह रखते हैं, तो दूसरे इसमें व्यावधान नहीं डालना चाहेंगे। यहाँ, हम सभी को उचित मार्ग का अनुसरण करना सिखाते हैं, और उसी समय फा को पूरी तरह समझाते हैं जिससे आप स्वयं ज्ञानप्राप्त कर सकें। यदि आप इसे सीखना चाहते हैं तो यह आपका अपना सरोकार है। गुरु आपको प्रवेश मार्ग में ले जाते हैं, और साधना करना आपके अपने ऊपर निर्भर करता है। कोई भी आपको साधना अभ्यास के लिए बाध्य नहीं करेगा। यदि आप साधना अभ्यास करते हैं तो यह आपका अपना सरोकार है। दूसरे शब्दों में, आपके साथ कोई व्यावधान नहीं डालेगा कि आप कौन सा मार्ग चुनते हैं, आप क्या चाहते हैं, आप क्या पाना चाहते हैं। हम केवल लोगों को सलाह दे सकते हैं कि वे अच्छे बनें।
हालांकि आप पाते हैं कि कुछ लोग चीगोंग का अभ्यास करते हैं, उनकी शक्ति वास्तव में ग्रसित प्रेत या पशु से प्राप्त की गई होती है। कोई व्यक्ति प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित कैसे होता है? पूरे देश में कितने चीगोंग अभ्यासियों के शरीर के पीछे ग्रसित प्रेत या पशु हैं। यदि मैं संख्या बता दूं, तो कई लोग चीगोंग का अभ्यास करने से डर जायेंगे। यह संख्या भयावह रूप से बड़ी है! तो, ऐसी स्थिति क्यों है? ये वस्तुऐं साधारण मानव समुदाय के लिए कठिनाइयां पैदा कर रही हैं। यह इतनी गंभीर घटना क्यों बनती जा रही है? यह लोगों के अपने द्वारा पैदा की गई है क्योंकि मनुष्य जाति का पतन हो रहा है और असुर हर ओर हैं। विशेष रूप से, वे सभी पाखण्डी गुरु अपने शरीरों पर प्रेतों या पशुओं द्वारा ग्रसित हैं, और यही वे अपनी शिक्षा में प्रवाहित करते हैं। पूरे मानव इतिहास काल में, पशुओं द्वारा मनुष्यों को ग्रसित करने की मनाही थी। जब उन्होंने यह किया, उन्हें मार दिया गया! जिस किसी ने यह देखा उसने ऐसा नहीं होने दिया। हालांकि, हमारे आज के समाज में कुछ लोग उनकी मदद के लिए पूजा करते हैं, उन्हें चाहते हैं, और उनकी उपासना करते हैं। कुछ लोग सोचते होंगे, "मैने विशिष्ट रूप से तो इसे नहीं मांगा था!" आपने इसे मांगा तो नहीं, किन्तु आप दिव्य सिध्दियाँ खोज रहे थे। क्या एक उचित साधना अभ्यास से संबंधित एक महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति उन्हें आपको देगा? इच्छा प्रयास एक साधारण लोगों का मोहभाव है, और इस मोहभाव को छोड़ना आवश्यक है। तो उन्हें आपको कौन देगा? केवल दूसरे आयामों के असुर और विभिन्न पशु ही उन्हें आपको दे सकते हैं। क्या यह आपके द्वारा प्रेत या पशु को निमंत्रण देने जैसा नहीं है? तब वे आ जायेंगे।
कितने लोग चीगोंग का अभ्यास एक पवित्र मन के साथ करते हैं? चीगोंग अभ्यास में आवश्यक है कि व्यक्ति नैतिकता को मान दे, अच्छे कार्य करे, और दयालु बने। उसे इस प्रकार का बर्ताव सभी कार्यों में और सभी परिस्थितियों में करना चाहिए। चीगोंग का उद्यान या घर में अभ्यास करते समय, कितने लोग इस प्रकार सोचते हैं? कोई नहीं जानता कि कुछ लोग किस प्रकार के चीगोंग का अभ्यास करते हैं। अभ्यास करते समय और शरीर को झुमाते हुए, कोई बड़बड़ाता है, "ओह, मेरी पुत्रवधु मेरा सम्मान नहीं करती। मेरी सास इतनी बुरी है!" कुछ लोग सभी वस्तुओं पर टिप्पणी करते हैं- अपने कार्यस्थल से लेकर देश की स्थिति तक ऐसा कुछ नहीं है जिसके बारे में वे बात नहीं करेंगे, और यदि कुछ उनके विचारों के साथ मेल नहीं खाता तो वे बहुत नाराज हो जायेंगे। क्या आप उसे चीगोंग अभ्यास कहेंगे? इसके अतिरिक्त, यह व्यक्ति जब खड़े हो कर व्यायाम करता है तब उसकी टांगें थकान से कांप रही होती हैं। किन्तु उसका मन शांत नहीं होता : "आजकल वस्तुऐं इतनी मंहगी हैं और दाम बढ़ते जा रहे हैं। कार्यस्थल मेरा वेतन नहीं दे सकता। मैं चीगोंग के अभ्यास द्वारा कुछ दिव्य सिध्दियाँ विकसित क्यों नहीं कर लेता? यदि मैं दिव्य सिध्दियां विकसित कर लेता हूँ तो मैं भी चीगोंग गुरु बन जाऊँगा और धन अर्जित करूँगा। मैं रोगियों को देख पाऊंगा और धन कमाऊंगा।" जब वह देखता है कि और लोग दिव्य सिध्दियाँ विकसित कर चुके हैं, वह और भी चिंतित हो जाता है। वह दिव्य सिध्दियों के पीछे पड़ जाता है, और दिव्य नेत्र तथा रोग निवारण की सिध्दि की इच्छा रखता है। आप सभी यह सोचें : यह सत्य-करूणा-सहनशीलता से कितना दूर है, जो हमारे ब्रह्माण्ड की प्रकृति है! यह पूरी तरह विपरीत दिशा में जाता है। गंभीर रूप से कहा जाये तो, यह व्यक्ति दुष्ट साधना का अभ्यास कर रहा है! हालांकि, वह इसे अंजाने में कर रहा है। जितना अधिक वह इसके बारे में सोचता है, उतना ही बुरा उसका मन बनता जाता है। इस व्यक्ति को फा प्राप्त नहीं हुआ है और वह नैतिकता का मान रखना नहीं जानता। तब वह सोचता है कि वह केवल व्यायाम करके शक्ति विकसित कर सकता है और इच्छा प्रयास करने से वह सब प्राप्त कर सकता है जो वह चाहता है। यह व्यक्ति यही सोचता है।
यह व्यक्ति के दुर्भावों के कारण ही है कि वह अपने ऊपर बुरी वस्तुओं को निमंत्रण दे बैठता है। हालांकि, एक पशु इसे देख सकता है : "यह व्यक्ति चीगोंग अभ्यास द्वारा धन अर्जित करना चाहता है। दूसरा व्यक्ति प्रसिध्द होना चाहता है और दिव्य सिध्दियाँ प्राप्त करना चाहता है। उसका शरीर बुरा नहीं है और उसमें कई अच्छी वस्तुऐं भी हैं। किन्तु उसका मन बहुत बुरा है, और वह दिव्य सिध्दियों की इच्छा रखता है! उसका कोई गुरु हो सकता है, किन्तु उसका कोई गुरु है भी, मुझे कोई डर नहीं।" पशु जानता है कि एक उचित साधना अभ्यास का गुरु उसे दिव्य सिध्दियाँ नहीं देगा, यह देख कर कि वह उनके इस तरह पीछे पड़ा है। जितना अधिक वह उन्हें चाहता है, उतना ही कम उसका गुरु उसे देगा, क्योंकि यही मोह भाव है जिसे हटाना आवश्यक है। जितना अधिक वह इस प्रकार सोचता है, उतनी ही कम दिव्य सिध्दियां उसे प्राप्त होती हैं, और उतना ही कम उसे इसका ज्ञानोदय होगा। जितना वह उनके पीछे पड़ेगा, उतना ही बुरा उसका मन बन जायेगा। अन्त में, यह देख कर कि यह व्यक्ति निराशाजनक है, उसका गुरु दु:ख के साथ उसे छोड़ देगा और उसके बाद उसकी देख-रेख नहीं करेगा। कुछ लोगों के गुरु नहीं होते और हो सकता है कोई गुजरता हुआ गुरु उनकी देख-रेख करता हो, क्योंकि विभिन्न आयामों में अनेकों महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति हैं। एक महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति उस व्यक्ति को देख कर एक दिन के लिए उस पर दृष्टि रख सकता है। तब यह जानने के बाद कि वह उतना अच्छा नहीं है वह ज्ञानप्राप्त व्यक्ति उसे छोड़ देगा। अगले दिन दूसरा महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति जो वहां से गुजर रहा हो, जब वह जानेगा कि वह उतना अच्छा नहीं है वह भी उसे छोड़ देगा।
पशु यह जानता है कि यदि उसका कोई गुरु है या कोई गुजरता हुआ गुरु है, उसका गुरु उसे वह नहीं देगा जिसके वह पीछे पड़ा है। क्योंकि पशु उन आयामों को नहीं देख पाते जहां महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति रहते हैं, वे डरते नहीं हैं, और वे इस त्रुटि का लाभ उठाते हैं। हमारे ब्रह्माण्ड का एक नियम है कि साधारणत: जिस किसी के लिए कोई इच्छा प्रयास रखता है या अपने लिए चाहता है उसमें दूसरे लोग व्यावधान नहीं डालते। पशु इस त्रुटि का लाभ उठाते हैं, "यदि वह कुछ चाहता है, मैं उसे दूंगा। मेरे लिए उसकी मदद करना अनुचित नहीं है, क्या यह है?" पशु यह दे देगा। आरम्भ में, पशु उसे ग्रसित करने का साहस नहीं कर पाता, और वह उसे कुछ शक्ति परखने के लिए देता है। इसे सफल होते हुए देख कर पशु इसे संगीत की झलकी दिखाने की तरह प्रयोग करता है, "क्योंकि वह इसे चाहता है, मैं उसके शरीर पर ही आ जाता हूँ। इस प्रकार मैं उसे और वस्तुएं दे पाऊँगा और यह सरलता से कर पाऊँगा। क्या वह दिव्य नेत्र नहीं चाहता? मैं उसे सब कुछ दूंगा।" यह उसे तब ग्रसित कर लेता है।
जबकि इस व्यक्ति का इच्छाओं भरा मन उन वस्तुओं के बारे में सोच रहा होता है, उसका दिव्य नेत्र खुल जाता है और वह कुछ छोटी दिव्य सिध्दियों के साथ शक्ति भी निष्कासित करने लग जाता है। वह बहुत उत्साहित हो जाता है और सोचता है कि उसे अंतत: वह मिल ही गया जो वह अभ्यास द्वारा खोज रहा था। वास्तव में उसे अभ्यास द्वारा कुछ प्राप्त नहीं हुआ है। वह सोचता है कि वह मानव शरीर के आर-पार देख सकता है और पता लगा सकता है कि किसी के शरीर में रोग कहां पर है। वास्तव में, उसका दिव्य नेत्र बिल्कुल भी नहीं खुला है; यह वह पशु है जो उसके मन को नियंत्रित कर रहा है। पशु अपनी आंखें उसके मस्तिष्क से जोड़ कर वह दिखाता है जो वह स्वयं देखता है, इस प्रकार उसे लगता है कि उसका दिव्य नेत्र खुल गया है। "गोंग को निष्कासित करना है? आगे बढ़ो।" जब वह शक्ति छोड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाता है, वह पशु भी उसके पीछे से अपना पंजा बढ़ा देता है। जैसे वह शक्ति छोड़ता है, उस सर्प के मुख से निकली दो नोकों वाली जीभ रोगी के बीमार या सूजन वाले भाग को चाट लेती है। ऐसी बहुत सी घटनायें हैं, और वे सब लोग अपनी ही इच्छा प्रयास की प्रवृत्ति से प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित हुए।
क्योंकि यह व्यक्ति किसी वस्तु के पीछे पड़ा है- जैसे धन और प्रसिध्दि- उसे इस प्रकार दिव्य सिध्दियाँ प्राप्त हो गई हैं। वह रोगों का निवारण कर सकता है, और उसका दिव्य नेत्र दृश्यों को देख भी सकता है। इससे वह बहुत प्रसन्न हो जाता है। पशु यह देख पाता है, "क्या तुम धन नहीं प्राप्त करना चाहते? बहुत अच्छा, मैं तुम्हें धन दिलवाऊँगा।" किसी साधारण व्यक्ति के मन को नियंत्रित करना बहुत सरल है। पशु कई लोगों को, बहुत से लोगों को, उपचार के लिए आने देता है। जबकि वह यहां रोग उपचार कर रहा है, पशु वहां समाचार पत्रों के संवाददाताओं द्वारा उसका प्रचार होने देता है। यह इन वस्तुओं को करने के लिए साधारण लोगों को नियंत्रित करता है। यदि कोई रोगी उसे समुचित धन नहीं देता, तो यह नहीं चलेगा; पशु रोगी के लिए सिर दर्द उत्पन्न कर देगा। जैसे भी हो, उसे बहुत सा धन देना आवश्यक है। उसने प्रसिध्दि और धन दोनों प्राप्त कर लिये हैं, क्योंकि धन अर्जित हो गया है और प्रसिध्दि प्राप्त हो गई है। वह एक चीगोंग गुरु भी बन गया है। साधारणत:, इस प्रकार का व्यक्ति नैतिकगुण को मान नहीं देता और कुछ भी कहने का साहस करता है। वह स्वयं को देवों के समकक्ष मानता है, और यह घोषणा करने का भी साहस कर देता है कि वह देवी माता7 या महान त्रिलोकापति8 का अवतार है। वह स्वयं को एक बुध्द कहने से भी नहीं चूकता क्योंकि वह वास्तव में नैतिकगुण साधना से नहीं गुजरा है, वह अपने अभ्यास में दिव्य सिध्दियों की चाह रखता है। परिणामस्वरूप, वह स्वयं प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित हो जाता है।
कुछ लोग सोचते हैं, "इसमें क्या बुराई है? जब तक इसमें धन और समृध्दि आते रहते हैं यह अच्छा ही है, और इसमें प्रसिध्दि भी प्राप्त होती है।" कई लोग इस प्रकार सोचते हैं। मैं सब को बताना चाहूँगा कि पशु का वास्तव में अपना उददेश्य है, और यह आपको कुछ भी अकारण ही नहीं देगा। इस ब्रह्माण्ड का एक नियम है : "कुछ त्याग नहीं किया तो कुछ प्राप्त भी नहीं होगा।" इससे क्या प्राप्त होता है? क्या मैंने अभी इस विषय पर प्रकाश नहीं डाला? यह आपके शरीर का सत्व पाना चाहता है जिससे यह एक मानव रूप धारण कर सके, और यह मानव सत्व किसी व्यक्ति के शरीर से एकत्रित करता है। एक मानव शरीर के पास केवल यही एक भाग सत्व है। यदि व्यक्ति साधना अभ्यास करना चाहता है, तो उसके पास केवल यही एक भाग है। यदि वह इसे भी पशु को ले लेने देगा, तो आपको साधना अभ्यास के बारे में भूल जाना चाहिए। आप साधना अभ्यास कैसे करेंगे? आपके पास कुछ शेष नहीं बचेगा और आप बिल्कुल भी साधना अभ्यास नहीं कर सकते। कुछ लोग कह सकते हैं : "मैं साधना अभ्यास भी नहीं करना चाहता, और मैं केवल धन अर्जित करना चाहता हूँ। जब तक मेरे पास धन है, तब तक सब ठीक है। किसे परवाह है?" मैं आपको बताना चाहूँगा कि आप धन अर्जित करना चाहते हैं, किन्तु आप इस प्रकार नहीं सोचेंगे यदि इसका कारण बता दूं। क्यों? यदि यह आपके शरीर को जल्दी ही छोड़ देता है, आपके हाथ-पैर बहुत दुर्बल अनुभव होंगे। इसके बाद, आप अपने शेष जीवन में इसी प्रकार रहेंगे क्योंकि इसने आपका बहुत सा सत्व ले लिया है। यदि यह आपके शरीर को देरी से छोड़ता है, तो आप निर्जीव हो जायेंगे और आपको अपना शेष जीवन बिस्तर में पड़े हुए एक-एक सांस गिनते हुए गुजारना पड़ेगा। हालांकि आपके पास धन है, क्या आप इसे खर्च कर सकते हैं? हालांकि आपके पास प्रसिध्दि है, क्या आप इसका सुख उठा सकते हैं? क्या यह भयावह नहीं है?
इस प्रकार की घटनाएं आज के अभ्यासियों में विशेष रूप से प्रकाश में आती हैं, और वे बहुतायात में हैं। एक पशु न केवल किसी व्यक्ति को ग्रसित कर सकता है, बल्कि उसकी मूल-आत्मा को मार कर उसके नीवान महल में रह सकता है। हालांकि यह व्यक्ति मनुष्य जैसा दिखाई देता है, किन्तु वह है नहीं। आजकल ऐसी घटनाएं भी हो सकती हैं। यह इसलिए क्योंकि मानव नैतिक आदर्श बदल गये हैं। जब कोई कुछ बुरा कार्य करता है, यदि आप उसे बताएं कि वह एक बुरा कार्य कर रहा है तो वह विश्वास नहीं करेगा। वह सोचता है कि धन अर्जित करना, धन की चाह रखना, या समृध्द होना सही और उचित है। इसलिए, वह दूसरों को हानि या परेशानी पहुंचायेगा। धन अर्जित करने के लिए, वह कुछ भी पाप करेगा और कुछ भी करने का साहस करेगा। बिना कुछ त्याग किये, पशु को कुछ प्राप्ति नहीं होगी। यह किस प्रकार आपको कुछ बिना शर्त दे देगा? यह आपके शरीर की वस्तुओं को पाना चाहता है। निश्चित ही, हम कह चुके हैं कि व्यक्ति इस कठिनाई में तभी पड़ता है जब उसके अपने आदर्श और मन उचित या पवित्र नहीं हैं।
हम फालुन दाफा सिखा रहे हैं। हमारी पध्दति में साधना के अभ्यास के लिए, आपको तब तक कोई परेशानी नहीं होगी जब तक आप अपने नैतिकगुण को ठीक से संभालते हैं, क्योंकि एक पवित्र मन सौ बुराईयों को दबा सकता है। यदि आप अपने नैतिकगुण को ठीक से नहीं रख पाते और इस या उस वस्तु के पीछे जाते रहते हैं, तब आप अपने को परेशानी में फंसा ही लेंगे। कुछ लोग वह छोड़ ही नहीं सकते जो वे पहले अभ्यास करते थे। हम लोगों को केवल एक ही साधना मार्ग का अभ्यास करने की सलाह देते हैं क्योंकि व्यक्ति को सच्चे साधना अभ्यास में एकाग्रचित होना चाहिए। हालांकि कुछ चीगोंग गुरुओं ने पुस्तकें भी लिखी हैं, मैं आपको बता रहा हूँ कि उन पुस्तकों में सभी प्रकार की वस्तुएं समाहित हैं और वे वही हैं जिसका वे अभ्यास करते हैं : वे हैं सर्प, भेड़िये, और नेवले। जब आप उन पुस्तकों को पढ़ते हैं, तो ये वस्तुएं शब्दों से बाहर आती हैं। मैं कह चुका हूँ कि पाखण्डी चीगोंग गुरु सच्चे गुरुओं से कई गुणा अधिक हैं, और आप उनमें भेद करने में असमर्थ हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि आप स्वयं को ठीक से संभाले। मैं यहां यह नहीं कह रहा हूँ कि आपको फालुन दाफा का ही अभ्यास करना चाहिए; आप जिसे चाहें उस पध्दति का अभ्यास कर सकते हैं। किन्तु अतीत में एक कहावत थी : "व्यक्ति को एक पवित्र मार्ग एक हजार वर्ष में भी प्राप्त नहीं होगा जबकि किसी जंगली भेड़िये का अभ्यास किसी भी दिन मिल जायेगा।" इस प्रकार, यह आवश्यक है कि व्यक्ति स्वयं को ठीक से संभाले और एक पवित्र मार्ग में वास्तव में साधना अभ्यास करे। इसे साधना में किसी भी और वस्तु के साथ नहीं मिलाये, किसी मनोभाव के साथ भी नहीं। कुछ लोगों के फालुन विकृत हो जाते हैं। वे विकृत क्यों हो जाते हैं? वे कहते हैं कि उन्होंने दूसरे चीगोंग का अभ्यास नहीं किया है। हालांकि, जब कभी वे अभ्यास कर रहे होते हैं, मन ही मन वे अपने पिछले अभ्यासों से वस्तुऐं मिलाते रहते हैं। क्या उन वस्तुओं को अभ्यास में नहीं लाया जा रहा है? प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित करने के विषय पर, हमें इतना ही कहना है।
विश्वक भाषा
"विश्वक भाषा" क्या है? इसका संदर्भ उससे है जब एक व्यक्ति अचानक ही कोई अंजान भाषा बोलने लगता है। वह कुछ बड़बड़ाता है जिसे वह स्वयं भी नहीं समझ सकता। टेलीपैथी की सिध्दि वाला व्यक्ति इसका साधारण विचार पकड़ सकता है किन्तु निश्चित रूप से नहीं बता सकता कि यह व्यक्ति किस बारे में बात कर रहा है। कुछ लोग कई विभिन्न भाषाऐं भी बोल पाते हैं। कुछ लोग इसे बहुत विलक्षण मानते हैं और इसे योग्यता या दिव्य सिध्दि का दर्जा देते हैं। न तो यह कोई दिव्य सिध्दि है और न ही किसी अभ्यासी की योग्यता; और न ही यह किसी का स्तर दर्शा सकती है। तब, यह सब क्या है? इसका अर्थ है कि आप का मन किसी बाहरी आत्मा द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। किन्तु आप अब भी इसे बहुत अच्छा मानते हैं और इसे चाहते हैं, क्योंकि आप इससे प्रसन्न हैं। आप जितने अधिक प्रसन्न होते हैं, उतना ही अच्छी तरह यह आपको नियंत्रित करती है। एक सच्चे अभ्यासी की भांति, आप कैसे इसे स्वयं को नियंत्रित करने दे सकते हैं? इसके अतिरिक्त, यह एक बहुत निम्न स्तर से आती है। सच्चे अभ्यासी होने के कारण, हमें इन परेशानियों को निमंत्रण नहीं देना चाहिए।
समस्त पदार्थ की आत्मा होने के कारण, मनुष्य सबसे अधिक मूल्यवान है। आप कैसे इन वस्तुओं द्वारा नियंत्रित हो सकते हैं? कितने दु:ख की बात है कि आप अपने शरीर को भी छोड़ देते हैं! इनमें से कुछ वस्तुऐं मानव शरीरों से जुड़ जाती हैं। कुछ जुड़ती नहीं हैं, किन्तु लोगों से कुछ दूरी पर रहती हैं। किन्तु वे आपको नियंत्रित कर रही होती हैं। जब आप बात करना चाहते हैं, वे आपको बात करने और बड़बड़ाने देंगी। यह भाषा किसी और व्यक्ति को भी हस्तांतरित की जा सकती है यदि वह व्यक्ति भी इसे सीखना चाहे। यदि वह व्यक्ति इसे परखने का साहस दिखाता है, तो वह भी इसे बोल सकता है। वास्तव में, वे वस्तुऐं समूहों में भी आती हैं। यदि आप इसे बोलना चाहते हैं, तो एक आप के ऊपर आ जायेगी और आपको इसे बोलने देगी।
ऐसी स्थिति क्यों हो पाती है? जैसा मैंने कहा है वे अपने स्तरों को सुधारना चाहती हैं। किन्तु वहाँ पर कोई कठिनाइयां नहीं हैं, इसलिए वे साधना अभ्यास नहीं कर सकतीं और स्वयं में सुधार नहीं ला सकतीं। उन्होंने एक युक्ति निकाली। वे अच्छे कार्य करके लोगों की मदद करना चाहती हैं, किन्तु वे नहीं जानतीं कि कैसे करें। किन्तु वे जानती हैं कि वे जो शक्ति छोड़ती हैं उससे समय भर के लिए किसी रोगी की बीमारी में कुछ आराम हो सकता है या उसकी पीड़ा कुछ कम हो सकती है, हालांकि यह रोग को ठीक नहीं कर सकती। इस प्रकार वे जानती हैं कि यह किसी व्यक्ति के मुंह से शक्ति छोड़ कर किया जा सकता है। यही है जो होता है। कुछ लोग इसे स्वर्गलोक की भाषा कहते हैं, और कुछ ऐसे हैं जो इसे बुध्द की भाषा कहते हैं। यह बुध्द का निरादर करना है। मैं इसे व्यर्थ मानता हूँ!
जैसे ज्ञातव्य है कि एक बुध्द अकारण ही अपना मुख खोल कर बात नहीं करते। यदि वे अपना मुख खोलें और हमारे आयाम में बात करें, तो इससे मानव समुदाय के लिए भूकंप भी उत्पन्न हो सकता है। इतनी ऊँची ध्वनि के साथ, इसकी अनुमति कैसे हो सकती है? कुछ लोग कहते हैं, "मेरे दिव्य नेत्र ने एक बुध्द को मुझसे बात करते हुए देखा।" वे आप से बात नहीं कर रहे थे। कुछ लोगों ने मेरे फा-शरीर को भी ऐसा ही करते हुए देखा। वे भी आपसे बात नहीं कर रहे थे। जो संदेश उन्होंने दिया स्टीरियो ध्वनि में था। जब आपने इसे सुना, ऐसा लगा जैसे वे बात कर रहे थे। वे अक्सर अपने आयाम में बात करते हैं। इसके यहां प्रसारित होने के बाद, हालांकि, आप स्पष्ट रूप से नहीं सुन सकते कि वे क्या कहते हैं क्योंकि दोनों आयामों के बीच काल और अवकाश की धारणायें भिन्न हैं। हमारे आयाम का एक शचन 9 दो घंटे के बराबर होता है। वहां उस बड़े आयाम में, हमारा एक शचन एक वर्ष के बराबर है, और वहां के समय की तुलना में हमारा धीमा है।
अतीत में एक कहावत थी : "स्वर्गलोक में यह केवल एक दिन है, किन्तु पथ्वी पर एक हजार वर्ष बीत चुके हैं।" इसका संदर्भ एकल दिव्यलोकों से है जहां काल और अवकाश की धारणाएं नहीं होतीं। कहा जाये तो, ये वे दिव्यलोक हैं जिनमें महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति वास करते हैं, परमानंद का दिव्यलोक, आभावान दिव्यलोक, फालुन दिव्यलोक, और कमल दिव्यलोक। इसका संदर्भ उन स्थानों से है। उस बड़े आयाम में, हालांकि, समय हमारे यहां से तीव्र होता है। यदि आप इसे प्राप्त कर सकते हैं, तो आप किसी को बात करते हुए सुन सकते हैं। कुछ लोगों के पास दूरश्रव्यता की दिव्य सिध्दि होती है और उनके कान खुले होते हैं। वे किसी को बात करते हुए सुन सकते हैं, किन्तु स्पष्ट रूप से नहीं। जो कुछ भी आप सुनते हैं चिड़ियों के चहचहाने जैसा या तेजी से चलते हुए रिकार्ड प्लेयर जैसा प्रतीत होगा; आप नहीं बता सकते कि यह क्या है। निश्चित ही, कुछ लोग संगीत और बातें सुन सकते हैं। किन्तु समय का अन्तर एक दिव्य सिध्दि द्वारा समाप्त करना आवश्यक है जो एक संवाहक का कार्य करती है। तब ध्वनि आपके कानों तक पहँच सकती है, और तब आप इसे स्पष्ट सुन सकते हैं। यह इसी प्रकार है। कुछ लोग इसे बुध्द की भाषा कहते हैं, जबकि यह बिल्कुल नहीं है।
जब दो ज्ञानप्राप्त व्यक्ति एक दूसरे से मिलते हैं, वे सब कुछ एक मुस्कुराहट से ही समझ सकते हैं। यह ध्वनि रहित टेलीपैथी द्वारा होता है, और जो सुना जाता है वह स्टीरियो ध्वनि होती है। जब वे मुस्कुराते हैं, तो उनके विचार पहले से ही पहुंच जाते हैं। केवल यही एक तरीका नहीं है जो वे प्रयोग करते हैं, क्योंकि वे कभी-कभी दूसरे तरीके भी प्रयोग करते हैं। आप जानते हैं कि तंत्र विद्या में, तिब्बत के लामा हस्तमुद्राओं के प्रयोग के बारे में बहुत ध्यान रखते हैं। किन्तु यदि आप किसी लामा से पूछें कि हस्तमुद्राऐं क्या होती हैं, वह आपको बताएगा कि वे सर्वोच्च योग हैं। वे खासतौर पर किसलिए होती हैं? यह वह भी नहीं जानता। वास्तव में, वह महान ज्ञानप्राप्त व्यक्तियों की भाषा है। जब बहुत से लोग होते हैं, तो बड़ी हस्तमुद्राओं का प्रयोग किया जाता है; वे बहुत सुन्दर होती हैं और अनेकों बड़ी हस्तमुद्राओं से बनती हैं। जब केवल कुछ ही लोग होते हैं, तो लघु हस्तमुद्राओं का प्रयोग किया जाता है; वे भी बहुत सुन्दर होती हैं और अनेकों लघु हस्तमुद्राओं से बनी होती हैं। वे बहुत परिष्कृत और समृध्द होती हैं, क्योंकि वे एक भाषा हैं। विगत में यह एक दिव्य रहस्य था, और अब हमने इसे उजागर कर दिया है। जो तिब्बत में प्रयोग होता है वे केवल अभ्यास मात्र के लिए कुछ मुद्राएं ही हैं, और लोगों ने उन्हें वर्गीकृत और प्रणालीबध्द कर लिया है। वे अभ्यास में केवल एक भाषा की तरह प्रयोग होती हैं और अभ्यास के कुछ रूपों में से एक हैं। असली हस्तमुद्राएं बहुत परिष्कृत होती हैं।
गुरु ने अभ्यासियों को क्या दिया है?
मुझे देखने के बाद, कुछ लोग मेरा हाथ थाम लेते हैं और छोड़ते ही नहीं हैं। जब और लोग इन लोगों को मुझसे हाथ मिलाते हुए देखते हैं, वे भी मुझसे हाथ मिलाने लगते हैं। मैं जानता हूँ कि उनके मन में क्या है। कुछ लोग कुछ संदेश पाना चाहते हैं और मेरा हाथ नहीं छोड़ते। हम आपको बता चुके हैं कि सच्चा साधना अभ्यास आपके अपने ऊपर निर्भर करता है। हम यहां रोग निवारण और स्वास्थ्यलाभ, या अपने रोग ठीक करने के लिए आपको कुछ संदेश देने के लिए नहीं हैं; न ही हमारा उन वस्तुओं से कुछ संबंध है। आपके रोग सीधे मेरे द्वारा ठीक किये जायेंगे। जो अभ्यास स्थलों पर अभ्यास करते हैं उनके रोग मेरे फा-शरीर ठीक करेंगे। जो दाफा की पुस्तक पढ़ कर स्वयं सीखते हैं, उनके रोग भी मेरे फा-शरीर ठीक करेंगे। क्या आप सोचते हैं कि मेरे हाथों को छू कर आप अपना गोंग बढ़ा लेंगे? क्या यह परिहास जैसा नहीं है?
गोंग व्यक्ति के अपने नैतिकगुण की साधना पर निर्भर करता है। यदि आप सच्चे रूप से साधना अभ्यास नहीं कर रहे हैं, तो गोंग नही बढ़ेगा; यह इसलिए क्योंकि वहां एक नैतिकगुण मानक का अस्तित्व है। जब आपका गोंग बढ़ता है, ऊँचे स्तरों से यह देखा जा सकता है कि जब आपका मोहभाव, एक पदार्थ, हट जाता है, आपके सिर के ऊपर एक मानक में सुधार हो जाता है। इसके अतिरिक्त, यह मानक गोंग स्तंभ के रूप में रहता है। यह मानक उतना ही ऊँचा होता है जितना आपका गोंग स्तंभ। यह उस गोंग को दर्शाता है जो आपने साधना में पाया है। यह आपके नैतिकगुण स्तर की ऊँचाई को भी दर्शाता है। और लोग चाहे इसमें कितना भी और जोड़ें यह कार्य नहीं करेगा। इसमें तनिक भी नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि यह वहां बिल्कुल भी नहीं रहेगा और उतर जायेगा। मैं आपको तुरंत ही "सिर के ऊपर तीन पुष्प एकत्रित होने (सान्हुआ जुडिंग)" की अवस्था पर पहुंचा सकता हूँ। किन्तु, जैसे ही आप इस द्वार से बाहर निकलेंगे, यह गोंग उतर जायेगा क्योंकि यह आपका नहीं है, और यह आपकी साधना से नहीं है। क्योंकि आपका नैतिकगुण आदर्श अभी वहां नहीं पहुंचा है, यह वहां नहीं रह सकता। जो कोई भी इसे आपके साथ जोड़ना चाहता है वह ऐसा नहीं कर पायेगा, क्योंकि यह पूरी तरह व्यक्ति की अपनी साधना और अपने मन के संवर्धन से आता है। आप केवल मजबूती से गोंग विकसित करते हुए, स्वयं में निरंतर सुधार लाते हुए, और ब्रह्माण्ड की प्रकृति से आत्मसात होते हुए ही उत्थान कर सकते हैं। कुछ लोग मुझ से मेरे हस्ताक्षर मांगते हैं, किन्तु मैं उन्हें नहीं देना चाहता। कुछ लोग बढ़-चढ़ कर बोलते हैं कि उनके पास गुरु के हस्ताक्षर हैं। वे इसका दिखावा करना चाहते हैं या चाहते हैं कि गुरु का संदेश उनकी रक्षा करे। क्या यह एक और मोहभाव नहीं है? आपको स्वयं साधना अभ्यास करना चाहिए। आप किन संदेशों की बात कर रहे हैं? क्या आपको इन्हें उच्च स्तर साधना में मांगना चाहिए? वह क्या मायने रखता है? वे केवल रोग निवारण और स्वास्थ्य संबंधित बातें हैं।
एक अत्यन्त सूक्ष्म स्तर पर, जो गोंग आप विकसित करते हैं, या उस गोंग का प्रत्येक सूक्ष्म कण, बिल्कुल आपके जैसा दिखाई पड़ता है। पर-त्रिलोक-फा में पहुंचने के बाद, आप एक बुध्द शरीर की साधना का अभ्यास करेंगे। वह गोंग एक बुध्द का रूप धारण कर लेगा। यह कमल के फूल पर बैठा हुआ बहुत सुन्दर लगता है। प्रत्येक सूक्ष्म कण उसी प्रकार होता है। एक पशु का गोंग, हालांकि, छोटे भेड़ियों या सर्पों जैसा होता है। एक बहुत सूक्ष्म स्तर पर, उनके महीन कण सब वही वस्तुऐं होती हैं। ऐसा कुछ भी होता है जिसे संदेश कहा जाता है। कुछ लोग चाय घोलते हैं और आपको पीने के लिए कहते हैं क्योंकि वे इसे गोंग मानते हैं। एक साधारण व्यक्ति अपने रोग को दबा कर और विलम्बित करके केवल अस्थायी रूप से अपने दु:खों को कम करना चाहता है। अन्तत:, एक साधारण व्यक्ति एक साधारण व्यक्ति ही है। हमारा इससे कोई संबंध नहीं है कि वह अपना शरीर किस प्रकार खराब करता है। आप अभ्यासी हैं इसलिए मैं आपको ये वस्तुऐं बता रहा हूँ। आज के बाद, आपको ये वस्तुऐं नहीं करनी चाहिऐं। कभी भी उन वस्तुओं जैसे "संदेश", या ऐसी ही कुछ और, को न मांगें। एक चीगोंग गुरु कहता है, "मैं आपको संदेश देता हूँ, और आप उन्हें देश के किसी भी भाग में प्राप्त कर सकते हैं।" आप क्या प्राप्त करते हैं? मैं आपको बता रहा हूँ कि वे वस्तुऐं अधिक उपयोग की नहीं हैं। मान भी लें कि वे अच्छी हैं, तब भी वे केवल रोग निवारण और स्वास्थ्य के लिए हैं। अभ्यासियों की भांति, हालांकि, हमारा गोंग हमारी अपनी साधना से आता है। दूसरे लोगों के संदेश हमारे स्तर में सुधार नहीं कर सकते, किन्तु केवल साधारण लोगों के रोगों का उपचार कर सकते हैं। व्यक्ति को मन उचित बनाए रखना चाहिए; कोई भी किसी दूसरे के लिए साधना नहीं कर सकता। जब आप वास्तव में स्वयं साधना करते हैं तभी आप अपने स्तर को सुधार सकते हैं।
तब, मैंने आपको क्या दिया है? हर कोई जानता है कि हमारे कई अभ्यासियों ने कभी चीगोंग का अभ्यास नहीं किया है और उनके शरीर पर कई रोग हैं। यद्यपि बहुत से लोगों ने कई वर्षों तक चीगोंग का अभ्यास किया है, वे अभी भी बिना कोई गोंग प्राप्त किये हुए ची के स्तर पर ही अटके हैं। नि:संदेह, कुछ लोगों ने रोगियों का उपचार भी किया है, बिना यह जाने कि उन्होंने यह कैसे किया। जब मैंने प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित करने के विषय की बात की थी, तब मैंने पहले ही सच्चे दाफा अभ्यासियों के शरीरों से ग्रसित करने वाले प्रेतों और पशुओं को हटा दिया था- चाहे वे जो कुछ भी थे, और मैंने उन वस्तुओं को उनके शरीरों के अंदर और बाहर दोनों से निकाल दिया था। जब वे लोग जो इस दाफा को स्वयं पढ़ कर वास्तव में साधना अभ्यास करते हैं, मैं उनके शरीरों का भी शोधन करूंगा। इसके अलावा, आपके घर के वातावरण को भी शुध्द करना आवश्यक है। जितना जल्दी हो सके, आपको वह आत्मा प्रतिमा फेंक देनी चाहिए जिसमें किसी भेड़िये या नेवले का आपने पहले से निवास करा रखा हो। उन सब को हटा दिया गया है और अब वे वहां नहीं हैं। क्योंकि आप साधना अभ्यास करना चाहते हैं, हम आपके लिए सबसे सुविधाजनक द्वार खोल सकते हैं, और इसलिए ये वस्तुऐं आपके लिए की जा सकती हैं। किन्तु ये केवल सच्चे अभ्यासियों के लिए की जाती हैं। नि:संदेह, कुछ लोग साधना अभ्यास नहीं करना चाहते और इस पल तक भी इसे नहीं समझ सके हैं। इसलिए, हम उनकी देख-रेख नहीं कर सकते। हम केवल सच्चे अभ्यासियों की देख-रेख करते हैं।
एक और प्रकार का व्यक्ति होता है। किसी व्यक्ति को पहले बताया गया था कि वह प्रेत या पशु द्वारा ग्रसित है। उसे भी ऐसा ही लगता था। हालांकि, उसके लिए यह हटा दिये जाने के बाद, उसका मन अब भी उसकी चिंता करता है। वह हमेशा सोचता है कि वह अवस्था अभी भी है। वह अभी भी सोचता है कि यह वहां है, और यह पहले से ही एक मोहभाव है जिसे शंका कहते हैं। जैसे समय बीतता है, हो सकता है कि यह व्यक्ति उसे अपने शरीर पर वापस ले आये। उसे यह मोहभाव त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह ग्रसित प्रेत या पशु अब वहां नहीं हैं। कुछ लोगों को इन वस्तुओं से हमारी पिछली कक्षाओं में ही छुटकारा दिला दिया गया था। मैं पहले ही उनके लिए उन वस्तुओं को कर चुका हूँ और सभी ग्रसित किये हुए प्रेत या पशु को हटा चुका हूँ।
ताओ विचारधारा में निम्न-स्तर अभ्यास में एक आधार बनाना आवश्यक होता है। दिव्य परिधि, तानत्येन 10, और कुछ अन्य वस्तुऐं भी विकसित करनी आवश्यक होती हैं। यहां हम आपको फालुन, शक्ति-यंत्र (चीजी), और साधना अभ्यास के लिए सभी यंत्र इत्यादि-जो दस हजार से भी अधिक हैं, उपलब्ध करेंगे। ये सभी आपको इस प्रकार दिये जायेंगे जैसे आपके शरीर में बीज रोपित किये जा रहे हों। आपके रोग हटाने के बाद, मैं वह सब करूंगा जिसकी आवश्यकता है और आपको सब दूंगा जो दिया जाना चाहिए। तब आप वास्तव में हमारी पध्दति में अन्त तक साधना अभ्यास करने में समर्थ होंगे। अन्यथा, आपको बिना कुछ दिये हुए, यह केवल रोग निवारण और स्वास्थ्य लाभ के लिए ही रह जाता है। स्पष्ट रूप से, कुछ लोग नैतिकता का मान नहीं रखते, और उनके लिए अच्छा होगा कि वे केवल शारीरिक व्यायाम करें।
यदि आप वास्तव में साधना का अभ्यास कर रहे हैं, तो हम आपकी अवश्य ही देख-रेख करेंगे। जो स्वयं सीखने वाले अभ्यासी हैं उन्हें भी वही वस्तुऐं प्राप्त होंगी, किन्तु यह आवश्यक है कि वे सच्चे अभ्यासी हों। हम ये सब वस्तुऐं सच्चे अभ्यासियों को देते हैं। मैं कह चुका हूँ कि मैं निश्चित ही आपको अपना शिष्य मानूंगा। इसके अतिरिक्त, यह आवश्यक है कि आप उच्च स्तर का फा पूरी तरह पढ़ें और यह जानें कि साधना अभ्यास कैसे किया जाता है। व्यायामों के पांच संग्रह आपको एक साथ सिखाये जायेंगे, और आप उन सब को सीखेंगे। आने वाले समय में, आप एक बहुत ऊँचे स्तर पर पहुंच पायेंगे- इतना ऊँचा जो आपकी कल्पना से भी परे है। जब तक आप साधना अभ्यास करते रहेंगे, आपके लिए साधना में उचित फल प्राप्त करना कोई समस्या नहीं होगी। इस फा को सिखाने में, मैंने विभिन्न स्तरों का समावेश किया है। अपने भविष्य के साधना अभ्यास में विभिन्न स्तरों पर, आप सदैव इसे आपके लिए पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाते हुए पायेंगे।
एक अभ्यासी की भांति, अब से आपके जीवन का मार्ग बदल दिया जायेगा। मेरे फा-शरीर आपके लिए इसे पुनर्व्यवस्थित करेंगे। इसे कैसे पुनर्व्यवस्थित किया जाता है? एक व्यक्ति के जीवन में कितने वर्ष शेष बचे हैं? वह स्वयं यह नहीं जानता। किसी व्यक्ति को आधे या एक साल के बाद कोई गंभीर रोग हो सकता है, या वह कई वर्षों के लिए बीमार पड़ सकता है। कुछ लोग मस्तिष्क की नस अवरुध्द होने से पीड़ित हो सकते हैं या कोई और रोग हो सकता है, और वे हिल भी नहीं सकते। आप किस प्रकार अपने बाकी जीवन में साधना अभ्यास कर सकते हैं? हम आपके लिए उन सब को ठीक करेंगे और इन वस्तुओं को होने से रोकेंगे। हालांकि, हम यहां समय से पहले ही स्पष्ट करना चाहेंगे कि हम ये वस्तुऐं केवल सच्चे अभ्यासियों के लिए कर सकते हैं। उनके सहज ही साधारण लोगों के लिए किए जाने की मनाही है। अन्यथा, यह ऐसा ही होगा जैसे कोई बुरा कार्य करना। साधारण लोगों के लिए जन्म, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु जैसी सभी वस्तुओं के कार्मिक संबंध होते हैं, और उनका जानबूझ कर अनादर नहीं किया जा सकता।
हम अभ्यासियों को सर्वाधिक मूल्यवान लोग मानते हैं। इस प्रकार, हम ये वस्तुऐं केवल अभ्यासियों के लिए कर सकते हैं। हम इन्हें कैसे करते हैं? यदि किसी गुरु के पास महान नैतिक गुण हैं-यानि, यदि कोई गुरु महान गोंग सामर्थ्य का स्वामी है- यह गुरु आपका कर्म हटा सकता है। यदि किसी गुरु का शक्ति स्तर ऊँचा है, वह आपका बहुत सा कर्म हटा सकता है। यदि गुरु का शक्ति स्तर कम है, वह आपका केवल थोड़ा सा कर्म हटा सकता है। आइये एक उदाहरण का प्रयोग करें। हम आपके भविष्य जीवन के विभिन्न कर्म एक साथ जमा कर देते हैं, और उसका एक भाग या उसका आधा हटा देते हैं। बचा हुआ आधा अभी भी किसी पर्वत से ऊँचा है, और आप इसे पार नहीं कर सकते। क्या किया जाना चाहिए? जब आपको ताओ की प्राप्ति होगी, भविष्य में बहुत से लोग लाभान्वित होंगे। इस प्रकार, बहुत से लोग आपके लिए एक भाग वहन कर लेंगे। नि:संदेह, यह उनके लिए कुछ नहीं है। अभ्यास द्वारा आप अपने शरीर में कई जीवों को भी विकसित करेंगे। आपकी मुख्य आत्मा और सहायक आत्मा के अलावा, कई और आपके लिए एक भाग वहन करेंगे। जिस समय तक आप कठिनाइयों से गुजरेंगे तब तक आपके लिए बहुत कम ही शेष बचेगा। हालांकि आपके लिए बहुत कम ही बचा है, यह अब भी बहुत है, और आप अभी भी इसे सहन नहीं कर सकते। तब, क्या होता है? इसे आपके साधना अभ्यास के विभिन्न चरणों के लिए अनेकों भागों में बांट दिया जाता है। उनका उपयोग आपके नैतिकगुण में सुधार करने, आपके कर्म का रूपातंरण करने, और आपका गोंग बढ़ाने के लिए किया जाता है।
इसके अलावा, यदि कोई साधना अभ्यास करना चाहता है तो यह कोई सरल कार्य नहीं है। मैं कह चुका हूँ कि यह एक बहुत गंभीर विषय है। यह साधारण लोगों से कहीं आगे का विषय है और साधारण लोगों के किसी भी कार्य से अधिक कठिन है। क्या यह दिव्य नहीं है? इसलिए, आपके लिए आवश्यकता साधारण लोगों के किसी भी विषय से ऊँची है। मानव होने के कारण, हमारे पास मूल-आत्मा है, और मूल-आत्मा नष्ट नहीं होती। यदि मूल-आत्मा नष्ट नहीं होती, तो आप सब सोचें : क्या आपकी मूल-आत्मा ने आपके पिछले जन्म में सामाजिक क्रियाकलापों के दौरान बुरे कार्य नहीं किये थे? ऐसा बहुत संभव है। आपने ऐसे कार्य किये होंगे जैसे जीवों की हत्या करना, किसी का कुछ उधार लेना, किसी को धमकाना, या किसी को हानि पहुंचाना। यदि यह सच है, जब आप यहां साधना अभ्यास करेंगे, वे आपको वहां स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यदि आप रोग निवारण और स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं तो वे परवाह नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि आप केवल अपना ऋण विलम्बित कर रहे हैं। यदि आप इसका भुगतान अभी नहीं करते, आप इसका भुगतान बाद में करेंगे, और भविष्य में आपको इसका और अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसलिए वे परवाह नहीं करते यदि आप इसका भुगतान अभी नहीं करते।
जब आप कहते हैं कि आप साधना अभ्यास करने जा रहे हैं, वे आपको यह नहीं करने देंगे, "तुम साधना अभ्यास करना और छूट जाना चाहते हो। जब तुम गोंग विकसित कर लोगे, हम तुम तक पहुंच या तुम्हें छू नहीं पायेंगे।" वे इसे नहीं होने देंगे, और वे आपका साधना अभ्यास रोकने के लिए सभी प्रयत्न करेंगे। इस प्रकार, आपके साथ व्यावधान डालने के लिए सभी प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जायेगा। यहां तक कि वे आपको वास्तव में मारने के लिए भी आ जायेंगे। निश्चित ही, जब आप ध्यानावस्था में बैठे होंगे तो आपका सिर नहीं काट दिया जायेगा। यह असंभव है क्योंकि यह साधारण मानव समाज की अवस्था के अनुरूप होना चाहिए। हो सकता है द्वार से बाहर निकलते ही आप किसी कार से टकरा जायें, या आप किसी भवन से गिर जायें या किसी और खतरे का सामना करें। ऐसी घटनाऐं हो सकती हैं और बहुत खतरनाक हो सकती हैं। सच्चा साधना अभ्यास उतना सरल नहीं है जितना आप सोचते हैं। क्या आप सोचते हैं यदि आप साधना अभ्यास करना चाहते हैं तो आप इसमें सफल हो जायेंगे? जैसे ही आप वास्तव में साधना अभ्यास करना चाहते हैं, उसी समय आपका जीवन खतरे में आ जायेगा और तुरंत ही इस विषय का आप से संबंध हो जायेगा। कई चीगोंग गुरु शिष्यों को ऊँचे स्तरों की ओर सिखाने का साहस नहीं कर पाते। क्यों? वे इस विषय को बिल्कुल नहीं संभाल सकते, और वे आपकी रक्षा नहीं कर सकते।
विगत में कई लोग थे जो ताओ सिखाते थे। वे केवल एक शिष्य को सिखा पाते थे, और जो कुछ वे कर सकते थे उससे एक शिष्य की देख-रेख कर सकते थे। हालांकि, जहां तक इतने बड़े पैमाने पर यह करने की बात है, एक साधारण व्यक्ति यह साहस नहीं कर सकता। किन्तु हम आपको यहां बता चुके हैं कि मैं कर सकता हूँ, क्योंकि मेरे पास अनेकों फा-शरीर हैं जो महान दिव्य शक्तियों के स्वामी हैं। वे महान दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन कर सकते हैं- जो फा की बहुत महान शक्तियां हैं। इसके अलावा जो हम आज कर रहे हैं इतना सरल नहीं है जितना ऊपर से दिखाई पड़ता है। मैं कोई गर्म-दिमाग नहीं था जब मैं जनता में आया। मैं आपको बता सकता हूँ कि अनेकों महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति इस घटना को देख रहे हैं। यह अंतिम समय है जब धर्मविनाश काल में हम ऐसा पवित्र मार्ग सिखायेंगे। ऐसा करने में हम इसे भटकने भी नहीं देंगे। यदि आप साधना अभ्यास में वास्तव में उचित मार्ग का अनुसरण करें, तो कोई भी जानबूझ कर आपके साथ कुछ करने का साहस नहीं करेगा। इसके अलावा, आपको मेरे फा-शरीरों का संरक्षण रहेगा, और आप किसी भी खतरे में नहीं रहेंगे।
जो उधार बाकी है उसका भुगतान करना आवश्यक है। इसलिए, साधना अभ्यास के दौरान कुछ खतरनाक घटनायें घट सकती हैं। जब ये घटनाऐं घटती है, हालांकि, आप डरेंगे नहीं, और न ही आपको कोई असली खतरा होने दिया जायेगा। मैं आपको कुछ उदाहरण दे सकता हूँ। जब मैंने बीजिंग में एक कक्षा को पढ़ाया, एक अभ्यासी अपनी साइकिल पर सड़क पार कर रही थी। सड़क के घुमाव पर, एक बड़ी कार आई और उस अभ्यासी से टकरा गई, जो पचास वर्ष से अधिक उम्र की एक महिला थी। यह उससे अचानक ही टकराई और उसे बहुत जोर से ठोकर लगी। "बैंग" की आवाज के साथ, यह उसके सिर पर टकराई, और उसका सिर कार की छत से सीधा टकराया। उस समय, उस अभ्यासी के पैर साइकिल के पैडल पर ही थे। हालांकि उसका सिर टकराया था, उसे कोई दर्द अनुभव नहीं हुआ। न केवल उसे कोई दर्द नहीं हुआ बल्कि उसके सिर में रक्त भी नहीं निकला; न ही कोई सूजन आई। चालक बहुत अधिक डर गया था और कार से बाहर कूदा। उसने जल्दी से उसे अस्पताल चलने की सलाह दी। उसने जवाब दिया कि वह ठीक है। नि:संदेह, इस अभ्यासी का नैतिकगुण स्तर बहुत ऊँचा था और वह चालक को परेशानी में नहीं डालना चाहती थी। उसने कहा कि सब कुछ ठीक है, किन्तु टकराने से कार पर एक बड़ा निशान पड़ गया था।
उस प्रकार की सभी घटनायें व्यक्ति का जीवन लेने आती हैं। किन्तु व्यक्ति को कोई खतरा नहीं होगा। पिछली बार हमने जिलिन विश्वविद्यालय में कक्षा ली, एक अभ्यासी अपनी साइकिल पर जिलिन विश्वविद्यालय के मुख्य प्रवेश द्वार से बाहर जा रहा था। जैसे ही वह सड़क के बीच में पहुंचा, अचानक ही वह दो कारों के बीच घिर गया। कारें उससे लगभग टकरा ही गई थीं, किन्तु वह बिल्कुल भी नहीं डरा। साधारणत: जब हम इस प्रकार की घटनाओं से गुजरते हैं तब हमें जरा भी डर नहीं लगता। ठीक उसी पल, कारें रूक गईं और कुछ नहीं हुआ।
बीजिंग में इस प्रकार की एक घटना घटी। सर्दियों में जल्दी ही अंधेरा छा जाता है, और लोग जल्दी ही सोने चले जाते हैं। सड़कें बहुत सुनसान थीं और कोई लोग नहीं थे। एक अभ्यासी अपनी साइकिल पर शीघ्रता से घर की ओर जा रहा था और उसके आगे केवल एक जीप चल रही थी। अचानक, उस जीप ने अपने ब्रेक लगाए। वह इससे अन्जान था और अपना सिर नीचे झुकाए हुए अपनी साइकिल को आगे चलाता रहा। किन्तु यह जीप अचानक ही पीछे की ओर चलने लगी, और वह बहुत तेजी से पीछे की ओर घूमी। यदि दो शक्तियां टकराई होतीं, तो उसका जीवन समाप्त हो गया होता। ठीक जब वे टकराने वाले थे, एक शक्ति ने अचानक ही उसकी साइकिल को आधे मीटर से अधिक पीछे खींच लिया, और जीप तुरंत ही उसकी साइकिल के पहिये पर आकर रूक गई। शायद जीप चालक को पता लग गया था कि उसके पीछे कोई है। इस अभ्यासी को उस पल कोई भय नहीं लगा। वे सभी जो इन घटनाओं के सम्मुख हुए हैं जरा भी भयभीत नहीं हुए, हो सकता है कि वे बाद में हुए हों। उसके मन में पहली बात आई, "मुझे किसने पीछे खींचा? मुझे उसका धन्यवाद करना चाहिए।" जब वह पीछे मुड़ा और अपना आभार व्यक्त करने वाला था, उसने पाया कि सड़क खाली थी और वहां कोई नहीं था। वह तभी समझ गया, "यह गुरु थे जिन्होंने मुझे बचाया!"
दूसरी घटना चांगचुन11 में घटी। एक अभ्यासी के घर के पास एक इमारत का निर्माण चल रहा था। आजकल, इमारतें बहुत ऊँची बनाई जाती हैं, और मचान लोहे के पाइपों की बनी होती हैं जिनका व्यास दो इंच और लम्बाई चार मीटर होती है। जब यह अभ्यासी अपने घर से कुछ दूर निकला, एक लोहे का पाइप उस ऊँची इमारत से लम्बवत सीधे उसके सिर पर गिरा। सड़क पर सभी लोग अचंभित रह गये। उसने कहा, "मुझे किसने चपत मारी?" उसने सोचा कि किसी ने उसके सिर पर चपत मारी है। उसी पल उसने अपना सिर मोड़ा और देखा कि एक बड़ा फालुन उसके सिर के उपर घूम रहा था। वह लोहे का पाइप उसके सिर से फिसल कर जमीन में धंस गया। यदि यह वास्तव में किसी व्यक्ति के सिर पर गिर गया होता- तो आप सब सोचें- यह शरीर को इस प्रकार छेद गया होता जैसे कोई चाकू किसी फल को, क्योंकि यह इतना भारी था। यह बहुत खतरनाक था!
इस प्रकार की बहुत सी घटनाऐं हैं जिसे गिना नहीं जा सकता। किन्तु इनसे कोई खतरा नहीं हुआ। हर कोई इन घटनाओं के सम्मुख नहीं होगा, किन्तु वे कुछ लोगों के सामने आऐंगी। वे आपके सामने आऐंगी या नहीं, किन्तु मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि आपको किसी प्रकार का खतरा नहीं होगा- मैं इसकी गारंटी दे सकता हूँ। कुछ अभ्यासी नैतिकगुण की आवश्यकताओं को नहीं मानते, क्योंकि वे केवल व्यायामों का अभ्यास करते हैं और अपने नैतिकगुण का संवर्धन नहीं करते। उन्हें अभ्यासी नहीं माना जा सकता।
जहां तक यह प्रश्न है कि गुरु ने क्या दिया है, यही हैं जिन्हें मैंने आपको दिया है। मेरे फा-शरीर आपकी रक्षा करेंगे जब तक आप अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो जाते। उस समय, आप पर-त्रिलोक-फा में साधना अभ्यास कर रहे होंगे और आपने पहले ही ताओ प्राप्त कर लिया होगा। किन्तु यह आवश्यक है कि आप स्वयं को एक सच्चा अभ्यासी माने, और तब आप इसमें सफल हो सकते हैं। एक व्यक्ति था जो सड़क पर मेरी पुस्तक अपने हाथ में लेकर चल रहा था, और चिल्ला रहा था, "मेरे पास गुरु ली की रक्षा है, इसलिए मुझे कार से टकराने का कोई डर नहीं है।" वह दाफा का अनादर करना हुआ। इस प्रकार के व्यक्ति की रक्षा नहीं की जायेगी। वास्तव में, एक सच्चा अभ्यासी इस प्रकार का कार्य नहीं करेगा।
शक्ति क्षेत्र
जब हम अभ्यास करते हैं, हमारे चारों ओर एक प्रभाव क्षेत्र होता है। यह प्रभाव क्षेत्र क्या है? कुछ लोग इसे ची का क्षेत्र, चुम्बकीय क्षेत्र या विद्युत का क्षेत्र कहते हैं, चाहे इसे जो भी क्षेत्र कहें यह अनुचित ही होगा क्योंकि इस क्षेत्र में समाहित पदार्थ अत्यन्त समृध्द होता है। लगभग समस्त पदार्थ जो हमारे ब्रह्माण्ड के प्रत्येक अंतरिक्ष में होता है इस गोंग में पाया जा सकता है। हमारे लिए इसे एक शक्ति क्षेत्र कहना अधिक उपयुक्त होगा, और इसलिए हम साधारणत: इसे एक शक्ति क्षेत्र कहते हैं।
तो यह क्षेत्र क्या कर सकता है? जैसे आप सब जानते हैं, इस उचित मार्ग के हमारे अभ्यासियों को यह अनुभव होता है : क्योंकि यह एक उचित मार्ग की साधना से आया है, यह परोपकारी है और ब्रह्माण्ड की प्रकृति सत्य-करूणा-सहनशीलता से आत्मसात है। इसलिए, हमारे सभी अभ्यासी यहां इस क्षेत्र में बैठे हुए इसका अनुभव कर सकते हैं, उनके मन बुरे विचारों से मुक्त हैं। इसके अतिरिक्त, यहां बैठे हुए कई अभ्यासी धूम्रपान के लिए भी नहीं सोचते। वे एक निर्मल और शांत वातावरण का अनुभव करते हैं, जो बहुत आरामदेह है। यह एक उचित मार्ग के अभ्यासी द्वारा धारण शक्ति है, और इस क्षेत्र के प्रभाव में यही होता है। बाद में, इस कक्षा के पश्चात, हमारे अधिकतर अभ्यासियों के पास गोंग होगा- जो वास्तव में विकसित शक्ति है। क्योंकि जो मैं आपको सिखा रहा हूँ वह एक उचित मार्ग की साधना से संबंधित है, आपको भी इस नैतिकगुण आदर्श को स्वयं अपनाना चाहिए। जैसे आप साधना में निरंतर अभ्यास करते जायेंगे और हमारी नैतिकगुण आवश्यकताओं को मानेंगे, आपकी शक्ति धीरे-धीरे और प्रबल होती जायेगी।
हम अपने और दूसरे दोनों के, और साथ ही समस्त प्राणियों के उध्दार के बारे में सिखाते हैं। इस प्रकार, फालुन जब अंदर की ओर घूमता है तो स्वयं को बचा सकता है और जब बाहर की ओर घूमता है तो औरों को बचा सकता है। बाहर की ओर घूमते हुए, यह शक्ति निष्कासित करता है और दूसरों को लाभ प्रदान करता है। इस प्रकार, आपके शक्ति प्रभाव क्षेत्र में दूसरे लोग लाभान्वित होंगे, और उन्हें बहुत आरामदेह लगेगा। भले ही आप सड़क पर चल रहे हों, कार्यस्थल में हों, या घर में हों, आपका औरों पर यह प्रभाव हो सकता है। लोगों के आपके क्षेत्र के अंदर अन्जाने ही रोग ठीक हो सकते हैं क्योंकि यह क्षेत्र सभी असाधारण अवस्थाओं को ठीक कर सकता है। एक मानव शरीर को रोग नहीं होना चाहिए, और रोग होना एक असाधारण अवस्था है। यह इस असाधारण अवस्था को ठीक कर सकता है। जब एक दुष्ट-मन का व्यक्ति कुछ बुरा सोच रहा होता है, हो सकता है वह आपके क्षेत्र के प्रबल प्रभाव से अपना मन बदल ले; और तब वह बुरा कार्य न करना चाहे। हो सकता है कोई व्यक्ति किसी पर नाराज होना चाहता हो। अचानक ही, वह अपना मन बदल ले और नाराज न होना चाहे। केवल एक उचित मार्ग के साधना अभ्यास के शक्ति क्षेत्र द्वारा ही ऐसा प्रभाव उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, विगत में बुध्दमत में एक कहावत थी : "बुध्द-प्रकाश सब ओर प्रकाशवान होता है और सभी अनियमितताओं को ठीक करता है।" इसका यह अर्थ है।
फालुन दाफा अभ्यासियों को अभ्यास किस प्रकार फैलाना चाहिए?
इस कक्षा के बाद, हमारे कई अभ्यासी सोचते हैं यह अभ्यास बहुत अच्छा है, और वे अपने संबंधियों और मित्रों में इसे सिखाना चाहते हैं। हां, आप सभी इसे फैला सकते हैं और किसी को भी सिखा सकते हैं। किन्तु एक बात है जो हम सभी को अवश्य बतायेंगे। हमने सभी को इतनी वस्तुऐं दी हैं जिन्हें मापा या धन में नहीं आंका जा सकता। मैं उन्हें सभी को क्यों देता हूँ? वे आपके साधना अभ्यास के लिए हैं। यदि आप साधना अभ्यास करते हैं, केवल तभी आपको ये वस्तुऐं दी जा सकती हैं। दूसरे शब्दों में, जब भविष्य में आप अभ्यास को फैलायेंगे, आप इन वस्तुओं को प्रसिध्दि और निजी-लाभ पाने के लिए उपयोग नहीं कर सकते। इस प्रकार, आप एक कक्षा आयोजित नहीं कर सकते और शुल्क एकत्र नहीं कर सकते जैसा मैं करता हूँ। क्योंकि हमें पुस्तकें और सामग्री छापनी होती हैं और अभ्यास को सिखाने के लिए सब ओर घूमना होता है, हमें खर्चों की पूर्ति करनी होती है। हमारे शुल्क पूरे देश में पहले से ही न्यूनतम हैं, किन्तु जो वस्तुऐं दी जाती हैं वे संख्या में अधिकतम हैं। हम वास्तव में लोगों को ऊँचे स्तर की ओर ला रहे हैं; हर कोई स्वयं इस बारे में जानता है। एक फालुन दाफा अभ्यासी के लिए, जब आप भविष्य में अभ्यास को फैलाते हैं, हमारी आपसे दो आवश्यकताएँ हैं।
पहली यह कि आप कोई शुल्क एकत्रित नहीं कर सकते। हमने आपको इतनी वस्तुऐं दी हैं, किन्तु वे आपके लिए धन और प्रसिध्दि अर्जित करने के लिए नहीं हैं। बल्कि यह आपको बचाने के लिए है और आपको साधना का अभ्यास करने योग्य बनाने के लिए है। यदि आप शुल्क एकत्रित करते हैं, मेरा फा-शरीर आपको दी हुई सभी वस्तुऐं वापस ले लेगा, और आप हमारे फालुन दाफा के अभ्यासी नहीं रहेंगे। जो आप फैलाते हैं यह हमारा फालुन दाफा नहीं होगा। जब आप इसे फैलाते हैं आपको प्रसिध्दि और निजी-लाभ की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, बल्कि औरों को स्वेच्छापूर्वक सिखाना चाहिए। सभी अभ्यासी देश भर में इसी प्रकार कर रहे हैं, और विभिन्न प्रांतों के सहायकों ने भी अपने लिए यही उदाहरण प्रस्तुत किया है। यदि आप हमारा अभ्यास सीखना चाहते हैं, आप तब तक आते रह सकते हैं जब तक आप सीखना चाहते हैं। हम आपके लिए उत्तरदायी रह सकते हैं और आपसे एक पैसा भी नहीं लेंगे।
दूसरी आवश्यकता है कि आप दाफा में व्यक्तिगत वस्तुऐं नहीं मिलाऐंगे। दूसरे शब्दों में, व्यायामों को सिखाने के दौरान, भले ही आपका दिव्य नेत्र खुला हो या नहीं, या आपने कोई दिव्य सिध्दि विकसित की हो, जो आपने देखा है आप उसका उपयोग हमारे फालुन दाफा को समझाने के लिए नहीं कर सकते। जो थोड़ा बहुत आपने अपने स्तर पर देखा है वह कुछ नहीं है और फा के वास्तविक अर्थ से कहीं दूर है जो हम सिखाते हैं। इसलिए जब आप भविष्य में अभ्यास को फैलाते हैं, आपको इस विषय पर बहुत सावधान रहना होगा। केवल इसी प्रकार से हम निश्चित कर सकते हैं कि हमारे फालुन दाफा की मूल वस्तुऐं अपरिवर्तनीय रहें।
इसके अतिरिक्त, किसी को भी अभ्यास को उस प्रकार सिखाने की अनुमति नहीं है जैसा मैं करता हूँ, और न ही किसी को बड़े पैमाने पर व्याख्यान देकर फा को सिखाने की अनुमति है, जैसा मैं करता हूँ। आप फा को सिखाने में असमर्थ हैं। वह इसलिए क्योंकि जो मैं सिखा रहा हूँ उसके बहुत प्रगाढ़ अर्थ हैं, और इसमें बहुत कुछ उच्च स्तरों से समाहित है। आप साधना का विभिन्न स्तरों पर अभ्यास कर रहे हैं। भविष्य में आपके द्वारा विकास करने पर, आप जब दोबारा इस रिकार्डिंग को सुनेंगे आप निरंतर स्वयं में सुधार लाते रहेंगे। जैसे आप निरंतर इसे सुनेंगे, आपको हमेशा नई समझ और नये परिणाम प्राप्त होंगे। इस पुस्तक को पढ़ने से और भी ऐसा होगा। मेरी यह शिक्षा ऊँचे स्तरों की बहुत कुछ प्रगाढ़ वस्तुओं को समाहित करके सिखाई जाती है। इसलिए, आप यह फा सिखाने में असमर्थ हैं। आपको मेरे मूल शब्दों को अपना बना कर कहने की अनुमति नहीं है, अन्यथा यह शिक्षा को चुराने जैसा है। आप इसे बताने के लिए केवल मेरे मूल शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं, यह बताते हुए कि गुरु ने इस प्रकार कहा है या इस प्रकार पुस्तक में लिखा है। आप इसे केवल इसी प्रकार कह सकते हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि जब आप इस प्रकार कहेंगे, यह दाफा की शक्ति को धारण करेगा। आप उन वस्तुओं को नहीं फैला सकते जिन्हें आप फालुन दाफा की तरह समझते हैं। अन्यथा, जो आप सिखाते हैं फालुन दाफा नहीं है, और जो आप करते हैं वह हमारे फालुन दाफा का अपमान करने जैसा होगा। यदि आप कुछ अपने विचारों और अपने मन के अनुसार कहते हैं, तो यह फा नहीं है और लोगों को नहीं बचा सकता; और न ही इसका कोई प्रभाव होगा। इसलिए, इस फा को कोई और नहीं सिखा सकता।
जिस प्रकार आपको इस अभ्यास को सिखाना चाहिए वह है कि आप अभ्यासियों के लिए व्यायाम स्थलों और शिक्षा स्थलों पर विडियो-टेप और ऑडियो-टेप चलायें, और इसके बाद सहायक उन्हें व्यायाम सिखा सकते हैं। आप सभागार का प्रयोग एक-दूसरे से बातचीत करने के लिए कर सकते हैं, और आप एक-दूसरे के साथ वस्तुओं पर चर्चा और आदान-प्रदान कर सकते हैं। हम चाहते हैं कि आप इस प्रकार करें। इसके साथ ही, आप एक अभ्यासी (एक शिष्य) जो फालुन दाफा सिखाता है, को "शिक्षक" या "गुरु" नहीं कह सकते, क्योंकि दाफा में केवल एक गुरु है। सभी अभ्यासी शिष्य हैं, भले ही उन्होंने कभी भी अभ्यास आरम्भ किया हो।
जब आप अभ्यास को फैलाते हैं, कुछ लोग सोच सकते हैं, "गुरु फालुन स्थापित कर सकते हैं और किसी का शरीर व्यवस्थित कर सकते हैं, किन्तु हम ऐसा नहीं कर सकते।" इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि प्रत्येक अभ्यासी के पीछे मेरा फा-शरीर है, और वह केवल एक नहीं है। इस प्रकार, मेरे फा-शरीर इन वस्तुओं की देख-रेख करेंगे। जब आप किसी व्यक्ति को अभ्यास सिखाते हैं, यदि उसका पूर्र्वनिर्धारित संबंध है तो उसे फालुन तभी प्राप्त हो जायेगा। यदि उसका एक अच्छा पूर्वनिर्धारित संबंध नहीं है, तो वह धीरे-धीरे कुछ समय के अभ्यास के बाद और उसके शरीर को व्यवस्थित किये जाने के बाद प्राप्त कर सकता है। मेरे फा-शरीर उसके शरीर को व्यवस्थित करने में सहयोग करेंगे। इन वस्तुओं के अलावा, मैं बता रहा हूँ यदि कोई व्यक्ति मेरी पुस्तक को पढ़ कर, मेरे विडियो टेप को देख कर, या मेरी रिकार्डिंग को सुन कर, फा और अभ्यास सीखता है, और यदि वह स्वयं को वास्तव में एक अभ्यासी मानता है, तो वह भी वे वस्तुऐं प्राप्त कर सकता है जिनके वह योग्य हैं।
हम अभ्यासियों को रोगियों को देखने की अनुमति नहीं देते, क्योंकि फालुन दाफा अभ्यासियों को दूसरे लोगों का रोग उपचार करने की सख्त मनाही है। हम आपको साधना में ऊपर उठने की शिक्षा दे रहे हैं, न कि आपको कोई मोहभाव उत्पन्न होने दें या अपने शरीर को बर्बाद करने दें। हमारे अभ्यास स्थल किसी भी दूसरे चीगोंग अभ्यास स्थलों से अच्छे हैं। जब तक आप हमारे अभ्यास स्थलों पर अभ्यास के लिए जाते रहते हैं, यह आपके द्वारा अपने रोग का स्वयं उपचार करने से कहीं अच्छा है। मेरे फा-शरीर एक घेरे में बैठते हैं, और अभ्यास स्थल के ऊपर एक ढाल होती है जिस पर एक बड़ा फालुन होता है। एक बड़ा फा-शरीर ढाल के ऊपर स्थल की रक्षा करता है। यह स्थल कोई साधारण स्थल नहीं है, और न ही यह किसी साधारण चीगोंग अभ्यास का स्थल है : यह साधना अभ्यास के लिए स्थल है। हमारे कई दिव्य सिध्दियों वाले अभ्यासियों ने देखा है कि यह फालुन दाफा स्थल लाल प्रकाश से घिरा होता है, और वहां सब ओर लाल होता है।
मेरा फा-शरीर किसी अभ्यासी के लिए फालुन को सीधे भी स्थापित कर सकता है, किन्तु हम किसी के मोहभाव को बढ़ावा नहीं देते। जब आप किसी व्यक्ति को व्यायाम सिखाते हैं, वह कह सकता है, "अब मेरे पास फालुन आ गया।" आप गलत सोचते हैं कि यह आपके द्वारा स्थापित किया गया है, जबकि यह नहीं है। मैं आपको यह बता रहा हूँ जिससे आप यह मोहभाव पैदा न करें। यह सब मेरे फा-शरीर द्वारा किया जाता है। इस प्रकार हमारे फालुन दाफा अभ्यासियों को अभ्यास फैलाना चाहिए।
जो कोई भी फालुन दाफा व्यायामों को बदलने का प्रयत्न करता है वह दाफा और इस अभ्यास पध्दति का अनादर कर रहा है। कुछ लोगों ने व्यायाम निर्देशों को कविताओं में बदल लिया है, और इसकी बिल्कुल अनुमति नहीं है। एक सच्चा साधना मार्ग सदैव पूर्व ऐतिहासिक समय से हस्तांतरित होता आ रहा होता है। इसे एक सुदूर समय से संरक्षित रखा जाता है और यह सफलतापूर्वक अनेकों महान ज्ञानप्राप्त व्यक्तियों को साधना में सफलता प्रदान कर चुका होता है। कोई भी इसमें तनिक भी बदलाव करने का साहस नहीं करता। ऐसा कुछ पूरे इतिहासकाल में कभी नहीं हुआ। प्रत्येक को इस विषय के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए।
1 मूल शरीर — व्यक्ति का भौतिक शरीर और दूसरे आयामों में शरीर।
2 निर्वाण — मानव जगत से भौतिक शरीर का त्याग, बुध्द शाक्यमुनि की विचारधारा में साधना पूर्ण करने की पध्दति।
3 शिनज्यांग — उत्तर पश्चिम चीन का एक राज्य।
4 तांग राजवंश — चीनी इतिहास के सबसे समृद्ध काल में से एक।
5 शक्तिपात — व्यक्ति के सिर के ऊपर शक्ति उड़ेलना।
6 ग्वानयिन पंथ — बौध्दिसत्व अवलोकितेश्वर के नाम पर बना एक पंथ।
7 देवी माता — चीनी साहित्य में तीन लोकों में सबसे उच्च स्तर की देवी।
8 त्रिलोकापति — चीनी साहित्य में तीन लोकों का संरक्षक देवता।
9 शचन — दो घण्टे के समय के लिए चीनी मानक।
10 तानत्येन — तान का शक्ति क्षेत्र, यह उदर के निचले भाग में होता है।
11 चांगचुन — जिलिन राज्य की राजधानी।