लोगों का उच्च स्तरों की ओर सच्चा मार्गदर्शन
मेरे फा और साधना अभ्यास की शिक्षाओं के पूरे क्रम के दौरान, मैं समाज और साधकों की ओर उत्तरदायी रहा हूँ। जो नतीजे हमें मिले हैं वे अच्छे रहे हैं, और उनका पूरे समाज पर प्रभाव भी बहुत अच्छा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व कई चीगोंग 1 गुरु थे जो चीगोंग सिखाते थे। उन्होंने जो कुछ सिखाया वह केवल आरोग्य व स्वस्थ बनने से संबंधित था। निश्चित ही, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि उनके अभ्यास के तरीके अनुचित थे। मैं केवल यह स्पष्ट कर रहा हूँ कि उन्होंने उच्च स्तर पर कुछ नहीं सिखाया। मैं पूरे देश में चीगोंग की स्थिति को भी जानता हूँ। वर्तमान में, मैं अकेला व्यक्ति हूँ जो यहाँ तथा विदेश में चीगोंग को वास्तव में उच्च स्तरों की ओर सिखा रहा है। अभी तक किसी ने ऐसा क्यों नहीं किया यानि चीगोंग को उच्च स्तरों की ओर सिखाना? क्योंकि इसका संबंध बहुत महत्वपूर्ण प्रश्नों, महान ऐतिहासिक कारणों, बहुत से पहलुओं तथा बहुत गंभीर विषयों से है। यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे कोई साधारण व्यक्ति सिखा सके, क्योंकि इसमें कई चीगोंग विचारधाराओं की पध्दतियाँ सम्मिलित हैं। विशेषरूप से, हमारे कई अभ्यासी जो आज एक पध्दति का अभ्यास करते हैं तो कल किसी और का, उन्होंने अपने शरीरों को पहले ही खराब कर लिया है। उनकी साधना असफल होनी निश्चित है। जबकि कुछ लोग साधना के मुख्य मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं, ये लोग बगल के मार्ग पर हैं। यदि वे एक पध्दति से अभ्यास करते हैं, तो दूसरी बाधा उत्पन्न करती है। यदि वे दूसरी पध्दति अपनाते हैं, तो पहली पध्दति बाधा उत्पन्न करती है। उनके साथ सभी कुछ दखल कर रहा है, और वे साधना अभ्यास में सफल नहीं हो सकते।
हम इन सभी समस्याओं को सुलझाएंगे और अच्छे अंश को रखते हुए तथा बुरे अंश को हटा कर, सुनिश्चित करेंगे कि आप इसके पश्चात साधना अभ्यास कर सकें। किन्तु, उसके लिए आपको यहाँ सच्चाई से यह दाफा2 सीखना होगा। यदि आप अनेक प्रकार के मोहभावों से प्रेरित हैं तथा दिव्य सिध्दियाँ प्राप्त करने आए हैं, रोगों का उपचार कराने, कुछ सिध्दांत सुनने या किसी दुर्भावना से आए हैं, तो यह आपके लिए कार्य नहीं करेगा। जैसा मैंने उल्लेख किया है, यह इसलिए क्योंकि मैं अकेला व्यक्ति हूँ जो ऐसा कर रहा है। इस प्रकार के बहुत से अवसर नहीं होते, और मैं इस प्रकार हमेशा नहीं सिखाऊँगा। मेरे विचार से जो व्यक्तिगत रूप से मेरे व्याख्यान सुन सकते हैं, मैं सच्चाई से कहता हूँ, आप भविष्य में समझेंगे कि यह समयावधि अत्यंत बहुमूल्य है। निश्चित ही हम पूर्व निर्धारित संबंधों में विश्वास करते हैं। यहां सभी पूर्व निर्धारित संबंधों के कारण ही बैठे हैं।
आप सब यह सोचें : चीगोंग को उच्चस्तरों की ओर सिखाने का क्या तात्पर्य है? क्या यह मानव जाति का उध्दार करना नहीं है? मानव जाति के उध्दार से तात्पर्य है कि आप वास्तव में साधना अभ्यास करेंगे, न केवल रोग उपचार करना व स्वस्थ रहना। इसीलिए, सच्चे साधना अभ्यास में अभ्यासियों को ऊँचे नैतिकगुण 3 की आवश्यकता होती है। सभी यहाँ इस दाफा को सीखने के लिए आए हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि आप एक सच्चे अभ्यासी की भांति आचरण करें, और आपको मोहभाव त्यागने होंगे। यदि आप इस अभ्यास तथा इस दाफा को विभिन्न उद्देश्यों से प्रेरित होकर सीखने आये हैं तो आप कुछ नहीं सीखेंगे। सच कहा जाए तो, एक अभ्यासी के लिए पूरी साधना पध्दति का अर्थ ही है निरन्तर मानव मोह बधंनों का त्याग करते जाना। एक साधारण मानव समाज में, लोग थोड़े से निजी लाभ के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं, छलते हैं, और हानि पहुँचाते हैं। इन सभी मानसिकताओं को छोड़ना होगा। मुख्यत: वे लोग जो आज अभ्यास सीख रहे हैं, उन्हें ये मानसिकताऐं और अधिक त्यागनी चाहिऐं।
मैं यहाँ रोगों के उपचार के बारे में बात नहीं करूँगा, और न ही हम रोगों का उपचार करेंगे। किन्तु एक सच्चे अभ्यासी होते हुए, रोगग्रस्त शरीर के साथ आप साधना अभ्यास नहीं कर सकते। मैं आपके शरीर को शुध्द करूँगा। शरीर का शुध्दिकरण केवल उन्हीं के लिए किया जाएगा जो वास्तव में अभ्यास और फा सीखने आए हैं। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है : यदि आप रोग से मोह या चिन्ता नहीं छोड़ सकते, तो हम कुछ नहीं कर सकते तथा आपकी मदद करने में असमर्थ रहेंगे। ऐसा क्यों है? यह इसलिए क्योंकि ब्रह्माण्ड में ऐसा ही नियम है : बुध्द विचारधारा के अनुसार, साधारण मानवीय कार्यकलापों में सभी का पूर्व निर्धारित संबंध है। जन्म, बुढ़ापा, रोग तथा मृत्यु का अस्तित्व इस प्रकार केवल साधारण व्यक्तियों के लिए है। विगत में किये अनुचित कार्यों द्वारा उत्पन्न कर्म के परिणाम स्वरुप मनुष्य रोग अथवा कष्ट ग्रहण करता है। दुख भोगना कार्मिक ऋण का भुगतान करना है, और इसलिए कोई इसे सहज ही नहीं बदल सकता। इसे बदलने का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को ऋण में होते हुए भी ऋण न चुकाना पड़े, और यह मन चाहे रूप से नहीं किया जा सकता। वर्ना यह एक अनुचित कार्य करने जैसा ही है।
कुछ लोग सोचते हैं कि रोगियों का उपचार करना, उनके रोग ठीक करना व उनके स्वास्थ्य को सुधारना अच्छे कार्य हैं। मेरे विचार में, उन्होंने रोग को वास्तव में ठीक नहीं किया है। उन्हें हटाने के स्थान पर, उन्होंने रोग को या तो विलंबित कर दिया है या रुपांतरित। ऐसे कष्टों को वास्तव में दूर करने के लिए, कर्म को हटाना आवश्यक है। यदि कोई वास्तव में रोग ठीक कर सके तथा पूर्णतया इस कर्म को हटा सके, तो उसका स्तर बहुत ऊँचा होना आवश्यक है। आपने अब तक एक तथ्य देख लिया होगा : साधारण मानव समाज के नियमों का सहज ही उल्लंघन नहीं किया जा सकता। साधना अभ्यास के दौरान, एक अभ्यासी अपने करुणा भाववश, कुछ अच्छे कार्य कर सकता है जैसे लोगों के रोगों को ठीक करने में मदद करना या उन्हें स्वस्थ करना - इनकी अनुमति है। किन्तु वह लोगों को पूर्णतया रोगमुक्त नहीं कर सकता। यदि किसी साधारण व्यक्ति के रोग के कारण को वास्तव में हटा दिया जाऐ, तो वह व्यक्ति जो अभ्यासी नहीं है रोगमुक्त हो जाएगा। एक बार यहां से बाहर कदम रखने के पश्चात, वह एक साधारण व्यक्ति ही बना रहेगा। वह अभी भी साधारण व्यक्तियों की तरह अपने हित के लिए प्रतिस्पध्र्दा करेगा। उसके कर्म सहज ही कैसे हटाए जा सकते हैं। यह पूर्णतया निषेध है।
तब किसी अभ्यासी के लिए यह कैसे किया जा सकता है? यह इसलिए क्योंकि एक अभ्यासी अत्यंत बहुमूल्य है, क्यों वह साधना अभ्यास करना चाहता है। इसलिए, इस विचार का विकसित होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बुध्दमत में बुध्द-स्वभाव के बारे में कहा जाता है। जब किसी व्यक्ति का बुध्द-स्वभाव उभरता है तो ज्ञानप्राप्त व्यक्ति उसकी मदद कर पाते हैं। इसका क्या अर्थ है? यदि आप मुझसे पूछें, क्योंकि मैं उच्चस्तरों पर अभ्यास सिखा रहा हूँ, इसमें उच्च स्तरों के नियमों तथा बहुत महत्वपूर्ण विषयों का समावेश होता है। हमने देखा है इस ब्रह्माण्ड में मानवीय जीवन की उत्पत्ति साधारण मानव समाज में नहीं हुई है; वास्तविक जीवन की रचना इस ब्रह्माण्ड के अन्तरिक्ष में हुई है। क्योंकि इस ब्रह्माण्ड में विभिन्न प्रकार का पदार्थ बहुतायात में है, यह पदार्थ पारस्परिक क्रिया द्वारा, जीवन की रचना कर सकता है। दूसरे शब्दों में एक व्यक्ति का प्रारम्भिक जीवन ब्रह्माण्ड से आया है। ब्रह्माण्ड का अन्तरिक्ष प्रारम्भ से ही करुणामयी है और इसमें सत्य-करुणा-सहनशीलता की प्रकृति का समावेश है। उत्पत्ति के समय, प्राणी ब्रह्माण्ड की प्रकृति से आत्मसात् होता है। किन्तु जैसे प्राणियों की संख्या बढ़ती है, सामाजिक संबंधों का एक प्रारूप विकसित होता है जिसमें कुछ प्राणियों में स्वार्थ उत्पन्न हो सकता है और क्रमश: उनका स्तर निम्न कर दिया जाता है। यदि वे इस स्तर पर भी नहीं रह सकते तो वे और नीचे जाएंगे। उस स्तर पर भी यदि वे अच्छे नहीं रहते तो वे वहाँ भी स्थायी नहीं रह सकते। उनका उतार निरन्तर होता रहेगा, जब तक अन्त में वे इस मानवीय स्तर पर न आ जाऐं।
संपूर्ण मानवीय समाज एक ही स्तर पर है। दिव्य सिध्दियों अथवा महान ज्ञानप्राप्त प्राणियों के दृष्टिकोण से, इन प्राणियों को इस स्तर तक गिरने पर नष्ट हो जाना चाहिए था। किन्तु, महान ज्ञानप्राप्त प्राणियों ने अपने करूणामयी स्वभाव से, उन्हें एक अवसर और दिया तथा इस विशिष्ट वातावरण और अनोखे आयाम का निर्माण किया। इस आयाम के सभी प्राणी ब्रह्माण्ड के दूसरे आयामों से भिन्न हैं। इस आयाम के प्राणी न तो दूसरे आयामों के प्राणियों को देख सकते हैं और न ही ब्रह्माण्ड का सत्य जान सकते हैं। इस प्रकार, ये मानव वास्तव में एक भूलभुलैया में उलझे हैं। रोग उपचार करने या कष्टों और कर्म से मुक्ति के लिए, इन लोगों को साधना का अभ्यास करना होगा और अपनी मूल प्रकृति की ओर लौटना होगा। यही सभी विभिन्न साधना पध्दतियों का मत है। हमें अपनी मूल, सच्ची प्रकृति की ओर लौटना चाहिए, यही मानव होने का सही अभिप्राय है। इसलिए, जब कोई व्यक्ति साधना अभ्यास करना चाहता है, यह माना जाता है कि उसके बुध्द-स्वभाव का उद्भव हो गया है। इस प्रकार का विचार अत्यन्त मूल्यवान है, क्योंकि यह व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति की ओर जाना चाहता है और साधारण मानव स्तर से उठना चाहता है।
शायद सभी ने बुध्दमत का यह कथन सुना होगा : "जब किसी के बुध्द-स्वभाव का उद्भव होता है, यह "दस दिशाओं वाले जगत को हिला देगा।" 4 जो कोई भी यह देखेगा वह इस व्यक्ति की बिना शर्त मदद करेगा। मानवजाति का उध्दार करने में, बुध्द विचारधारा कोई शर्त नहीं रखती और न ही लाभ देखती है, यह बिना शर्त मदद करती है। इस प्रकार, हम अभ्यासियों के लिए कई प्रयोजन कर सकते हैं। किन्तु एक सांसारिक व्यक्ति के लिए जो केवल एक साधारण व्यक्ति बना रहना चाहता है, यह प्रभावी नहीं होगा। कुछ लोग सोचते हैं, "जब मेरा रोग ठीक हो जाएगा तब मैं साधना अभ्यास करूँगा।" साधना अभ्यास के लिए कोई शर्त नहीं होती, और यदि आप चाहते हैं तभी आपको साधना अभ्यास करना चाहिए। तो भी, कुछ लोगों के शरीर पर रोग होते हैं, और कुछ लोगों के शरीर पर अव्यवस्थित संदेश होते हैं। कुछ लोगों ने कभी चीगोंग का अभ्यास नहीं किया। ऐसे भी लोग हैं जो वर्षों से अभ्यास कर रहे हैं और अभी भी ची 5 स्तर पर ही हैं, किन्तु साधना में कोई प्रगति नहीं की है।
इसके लिए क्या करना होगा? हम उनके शरीरों को शुध्द करेंगे और उन्हें उच्च स्तरों पर साधना के योग्य बनाऐंगे। साधना के निम्नतम स्तर पर एक स्थिति परिवर्तन होता है और यह है कि आपके शरीर को पूरी तरह शुध्द किया जाए। आप के मन से सभी बुरे पदार्थ, आपके शरीर को घेरे कर्म क्षेत्र, और आपके शरीर को रोगी बनाने वाले तत्वों का शोधन किया जाएगा। यदि उनका शोधन नहीं होता है, तो आप इस अशुध्द, कलुषित शरीर और मैले मन के साथ, कैसे उच्च-स्तर की ओर साधना अभ्यास कर सकते हैं? हम यहाँ ची का अभ्यास नहीं करते। आपको इतने निम्न स्तर पर अभ्यास की आवश्यकता नहीं है, हम आपको इससे आगे बढ़ा देंगे, जिससे आपका शरीर रोग मुक्त स्तर पर पहुँच जाए। इस बीच, हम आपके शरीर में पूर्वनिर्मित यन्त्रों की एक प्रणाली की स्थापना करेंगे जो निम्न स्तर पर नींव डालने के लिए आवश्यक है। इस प्रकार, आप एक अति उच्च स्तर पर साधना अभ्यास करेंगे।
साधना अभ्यास की मान्यताओं के अनुसार यदि ची को सम्मिलित किया जाए तो इसके तीन स्तर होते हैं। सच्चे साधना अभ्यास में, हालांकि कुल मिलाकर दो मुख्य स्तर हैं (ची अभ्यास को हटाकर)। एक है त्रिलोक-फा6 (शि-ज्येन-फा) साधना अभ्यास, जबकि दूसरा है पर-त्रिलोक-फा (चू-शि-ज्येन-फा) साधना अभ्यास। त्रिलोक-फा और पर-त्रिलोक-फा साधना पध्दतियाँ, पूजा स्थलों की "लोक" और "पर-लोक" से भिन्न हैं जो केवल सैध्दांतिक शब्द हैं। हमारी पध्दति साधना अभ्यास द्वारा दो मुख्य स्तरों पर मानव शरीर के सच्चे रुपांतरण की है। क्योंकि त्रिलोक-फा साधना अभ्यास के दौरान व्यक्ति के शरीर का निरंतर शुध्दिकरण किया जाएगा, जब वह त्रिलोक-फा के उच्चतम स्तर पर पहुँचता है तो शरीर उच्च शक्ति तत्वों से पूर्णतया प्रतिस्थापित किया जा चुका होगा। पर-त्रिलोक-फा साधना अभ्यास मूलत: बुध्द शरीर की साधना है। वह शरीर उच्च शक्ति तत्वों से बना होता है, और सभी दिव्य शक्तियाँ पुन: विकसित की जाएंगी। ये दो मुख्य स्तर हैं जिनका हम उल्लेख करते हैं।
हम पूर्वनियोजित संबधों में विश्वास करते हैं। मैं ऐसा कार्य यहाँ बैठे सभी व्यक्तियों के लिए कर सकता हूँ। अभी यहाँ दो हजार से कुछ अधिक व्यक्ति हैं। मैं यह कई हजार या उससे भी अधिक व्यक्तियों के लिए, यहाँ तक कि दस हजार से भी अधिक व्यक्तियों के लिए कर सकता हूँ। कहने का तात्पर्य है, आपको निम्न स्तर पर अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं है। आपके शरीर के शुध्दिकरण और आपका उत्थान करने के साथ, मैं आपके शरीर में एक पूर्ण साधना अभ्यास प्रणाली की स्थापना करूँगा। तुरंत ही आप उच्च स्तरों पर साधना अभ्यास करेंगे। किन्तु यह केवल अभ्यासियों के लिए किया जाएगा जो सच्चाई से साधना अभ्यास के लिए आए हैं, आपके केवल यहां बैठने का अर्थ नहीं है कि आप अभ्यासी हैं। ये वस्तुऐं तभी उपलब्ध कराई जाऐंगी जब तक आप अपनी विचारधारा में मूलरुप से बदलाव नहीं लाते, और ये केवल इन्ही तक सीमित नहीं है। बाद में आप समझेंगे मैने प्रत्येक को क्या दिया है। हम यहां रोगों को ठीक करने की भी बात नहीं करते। बल्कि हम अभ्यासियों के शरीरों को पूर्ण रूप से व्यवस्थित करने की बात करते हैं जिससे आप साधना अभ्यास के लिए समर्थ हो सकें। एक अस्वस्थ शरीर के साथ आप गोंग 7 बिल्कुल विकसित नहीं कर सकते। इसलिए, आप मेरे पास रोगों के निदान के लिए न आऐं, और न ही मैं ऐसा कुछ करुंगा। मेरा जन साधारण में आने का मुख्य कारण लोगों का उच्च स्तरों की ओर मार्गदर्शन है, लोगों का उच्चस्तरों की ओर सच्चा मार्गदर्शन।
विभिन्न स्तरों का फा भिन्न है
अतीत में अनेक चीगोंग गुरुओं का मत था कि चीगोंग का तथाकथित आंरभिक स्तर, मध्यम स्तर व उच्च स्तर होता है। वह सभी ची से संबधित था और केवल ची के अभ्यास के स्तर तक सीमित था, किन्तु यह भी आंरभिक स्तर, मध्यम स्तर और उच्च स्तर चीगोंग में वर्गीकृत किया गया था। वास्तविक उच्च स्तर विषयों के संबंध में हमारे अधिकांश चीगोंग अभ्यासियों के मस्तिष्क शून्य थे, क्योंकि वे उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। अब से आगे, जो कुछ भी हम कहेंगे वह उच्च स्तरों का फा होगा। इसके साथ ही, मैं चीगोंग अभ्यास की ख्याति को पूर्वस्थिति में लाऊँगा। अपने उपदेशों में मैं साधक समुदाय में चल रही कुछ अस्वस्थ घटनाओं पर प्रकाश डालूंगा। मैं यह भी बताऊँगा कि हमे इन घटनाओं के बारे में कैसा व्यवहार व दृष्टिकोण रखना चाहिए। साथ ही, किसी साधना प्रणाली तथा उच्चस्तरीय फा को सिखाना अनेक पहलुओं और बहुत महत्वपूर्ण विषयों को सम्मिलित करता है, जिनमें से कुछ तो अत्यधिक गम्भीर हैं; मैं इन पर भी प्रकाश डालना चाहूँगा। हमारे साधारण मानव समुदाय में, विशेष रूप से साधकों के समुदाय में, कुछ विघ्न दूसरे आयामों से आते हैं। मैं इसे भी सार्वजनिक करना चाहूँगा। साथ ही, मैं अभ्यासियों के लिए इन समस्याओं का निदान करुंगा। यदि इन समस्याओं को हल नहीं किया जाता है तो आप साधना अभ्यास करने में असमर्थ रहेंगे। इन विषयों के आधारभूत निदान के लिए, हमें सभी को सच्चा अभ्यासी मानना होगा। निश्चित ही, आपकी विचारधारा में एकाएक बदलाव आना सुगम नहीं है; आने वाले व्याख्यानों के दौरान आप अपने विचार क्रमबध्द रुपांतरित करेंगे। मुझे विश्वास है कि सभी सुनते समय एकाग्रचित रहेंगे। मेरा साधना अभ्यास सिखाने का तरीका दूसरों से भिन्न है। कुछ लोग इसे सिखाने के लिए अपनी अभ्यास पध्दतियों के सिध्दातों के बारे में कुछ संक्षिप्त चर्चा करते हैं। इसके पश्चात, वे अपने संदेश आप से जोड़ते हैं और आपको व्यायामों का एक संग्रह सिखाते हैं, और केवल इतना ही। लोग अब तक इस प्रकार अभ्यास सिखाने के तरीके से अभ्यस्त रहे हैं।
सच्चे रुप से साधना प्रणाली सिखाने के लिए फा या ताओ सिखाने की आवश्यकता होती है। दस व्याख्यानों में मैं सभी उच्चस्तरीय नियमों की जानकारी दूंगा जिससे आप साधना अभ्यास कर सकें। अन्यथा, आप साधना अभ्यास कर ही नहीं सकते। जो कुछ और लोगों ने सिखाया है वह आरोग्य और स्वस्थ रहने के स्तर पर है। यदि आप उच्च स्तरों की ओर साधना अभ्यास करना चाहते हैं तो उच्चस्तरीय फा के मार्गदर्शन के बिना आप साधना में सफल नहीं हो सकते। यह स्कूल में जाने जैसा है : यदि आप कॉलेज में प्राथमिक स्कूल की पुस्तकें ले जाऐं, तो आप एक प्राथमिक स्कूल के विद्यार्थी ही रहेंगे। कुछ लोग सोचते हैं कि उन्होने कई पध्दतियां सीख ली हैं, जैसे यह पध्दति या वह पध्दति, और उनके पास प्रमाणपत्रों का पूरा ढेर है, किन्तु उनका गोंग अभी भी विकसित नहीं हुआ है। उनके विचार में यही चीगोंग के मूल तत्व हैं और चीगोंग इन्हीं तक सीमित है। नहीं, वे केवल चीगोंग के आवरण स्तर मात्र हैं और वह भी निम्नतम स्तर पर। चीगोंग इन्हीं वस्तुओं तक सीमित नहीं है, क्योंकि यह साधना अभ्यास है और साथ ही यह बहुत विशाल और महान है। इसके अलावा, विभिन्न स्तरों पर भिन्न फा का अस्तित्व है। इस प्रकार, यह ची की उन पध्दतियों से भिन्न है जिन्हें हम अभी जानते हैं; वे वही रहेंगी चाहे आप जितना भी अधिक सीख लें। उदाहरण के लिए, हालांकि आपने ब्रिटेन की प्राथमिक स्कूल पुस्तकें, अमेरिका की प्राथमिक स्कूल पुस्तकें, जापान की प्राथमिक स्कूल पुस्तकें और चीन की प्राथमिक स्कूल पुस्तकें पढ़ी हैं, आप एक प्राथमिक स्कूल के विद्यार्थी ही रहेंगे। जितनी अधिक निम्न स्तर चीगोंग की शिक्षा आप लेते हैं और जितना अधिक आप उनसे ग्रहण करते हैं, उतनी ही क्षति आप स्वयं को पहंँचाते हैं- आपका शरीर पहले से ही खराब हो चुका है।.
मैं एक और विषय को महत्व देना चाहूँगा : हमारे साधना अभ्यास में साधना पध्दति और फा दोनो को सिखाने की आवश्यकता होती है। मठों के कुछ भिक्षुओं विशेष रूप से जो ज़ेन बुध्दमत से हैं, की धारणा भिन्न हो सकती है। यदि उन्हें पता चले कि फा सिखाया जा रहा है, वे सुनने से इन्कार कर देंगे। ऐसा क्यों है? ज़ेन बुध्दमत का विश्वास है कि फा सिखाया नहीं जाना चाहिए, फा यदि सिखाया जाए तो फा नहीं है, और सिखाये जाने योग्य कोई फा नहीं है; व्यक्ति केवल हृदय और मन द्वारा ही कुछ सीख सकता है। परिणामस्वरुप, ज़ेन बुध्दमत आज तक कोई फा नहीं सिखा सका है। ज़ेन बुध्दमत के वरिष्ठ आचार्य बोधिधर्म ने इन बातों की शिक्षा शाक्यमुनी8 के एक उल्लेख के आधार पर दी जिसमें उन्होंने कहा था "कोई धर्म9 निश्चित नहीं है।" उन्होंने शाक्यमुनी के इस उल्लेख के आधार पर ज़ेन बुध्दमत की स्थापना की थी। हम इस साधना मार्ग को "बैल के सींग में खोदने"10 की संज्ञा देते हैं। इसे बैल के सींग में खोदना क्यों कहा जाता है? जब बोधिधर्म ने इसमें खुदाई आरम्भ की तो उन्होने पाया कि यह बहुत खुला है। जब धर्म आचार्य II ने खोदा तो उन्हें बहुत खुला नहीं लगा। धर्म आचार्य III के समय तक यह किसी प्रकार निकलने योग्य था, किन्तु धर्म आचार्य IV के लिए यह बहुत संकरा था। धर्म आचार्य V को आगे जाने के लिए लगभग कोई स्थान नहीं था। धर्म आचार्य VI हुइनेंग के समय तक, यह एक बंद मार्ग तक पहुँच चुका था तथा और आगे नहीं जा सकता था। यदि आज आप किसी ज़ेन आचार्य से धर्म सीखने जाऐं तो आपको कोई प्रश्न नहीं पूछने चाहियें। यदि आपने कोई प्रश्न किया तो वह पीछे घूमकर आपके सिर पर एक छड़ी मारेगा, जिसे "छड़ी चेतावनी" कहा जाता है। इसका अर्थ है कि आपको खोजबीन नहीं करनी चाहिए, और आपको स्वयं ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। आप कहेंगे, "मैं सीखने आया हूँ क्योंकि मैं कुछ नहीं जानता। मैं किस बारे में ज्ञान प्राप्त करुं? आप मुझे छड़ी से क्यों मारते हैं?" इसका अर्थ है ज़ेन बुध्दमत बैल के सींग के अन्त तक पहुँच गया है और अब और सिखाने के लिए कुछ शेष नहीं है। बोधिधर्म ने कहा था कि उनकी शिक्षा केवल छ: पीढियों तक हस्तांतरित हो सकती है, जिसके बाद इसका कोई उपयोग नहीं रहेगा। कई सौ वर्ष बीत चुके हैं। किन्तु आज भी ऐसे लोग हैं, जो ज़ेन बुध्दमत की विचारधाराओं को जकड़ कर बैठे हैं। शाक्यमुनि की घोषणा "कोई धर्म निश्चित नहीं है" का क्या अर्थ था? उनके बाद कई भिक्षु, शाक्यमुनि के स्तर तक, उनकी सोच की विचारधारा तक, उनके सिखाए धर्म के वास्तविक अर्थ तक, अथवा जो उन्होंने कहा उसके वास्तविक अर्थ तक, ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाए। इसलिए, बाद में लोगों ने इसे इस प्रकार या उस प्रकार, बहुत उलझी हुई व्याख्या के साथ भाषातंर किया। उन्होंने सोचा कि "कोई धर्म निश्चित नहीं है" का अर्थ है कि यह किसी को सिखाना नहीं चाहिए और यदि यह सिखाया गया तो यह धर्म नहीं होगा। वास्तव में, उसका यह अर्थ नहीं है। जब बोधि वृक्ष के नीचे शाक्यमुनि को ज्ञान प्राप्त हुआ था, वे सीधे ही तथागत11 स्तर पर नहीं पहुँच गये थे। वे भी, अपने उनचास वर्षों के धर्म की सिखाने के दौरान स्वयं को निरंतर उन्नत करते रहे। जब भी वे स्वयं को और अधिक ऊँचे स्तर तक उन्नत करते, वे पीछे देखते व अनुभव करते कि जो धर्म उन्होंने बताया था, वह गलत था। जब वे फिर उन्नति करते, वे पाते कि, अभी जो धर्म उन्होंने बताया वह फिर गलत था। और आगे उन्नति करने के बाद वे फिर अनुभव करते कि, अभी जो धर्म उन्होंने बताया वह फिर गलत था। उन्होंने निरंतर उनचास वर्षों तक इस प्रकार उन्नति की। जब भी वे और अधिक ऊँचे स्तर पर पहुंचते, वे पाते कि, जो धर्म उन्होंने पहले बताया था, वह अपने अर्थ में अति निम्न स्तर का था। उन्होंने यह भी पाया कि प्रत्येक स्तर का धर्म, सदैव उस स्तर के धर्म का प्रर्दशित रूप है; कि सभी स्तरों पर धर्म है, तथा उनमें से कोई भी ब्रह्माण्ड का संपूर्ण सत्य नहीं है। उच्च स्तर का धर्म, निम्न स्तर के धर्मों की तुलना में ब्रह्माण्ड की प्रकृति के अधिक पास है। इसलिए, उन्होंने कहा - "कोई धर्म निश्चित नहीं है।"
अन्त में शाक्यमुनी ने यह भी घोषणा की, "मैने अपने जीवनकाल में कोई धर्म नहीं सिखाया।" ज़ेन बुध्दमत ने इसे भी गलत समझा और अर्थ लगाया कि सिखाने के लिए कोई धर्म है ही नहीं। अपने अंतिम वर्षों में, शाक्यमुनी तथागत स्तर पर पहुँच चुके थे। उन्होंने क्यों कहा कि उन्होनें कोई धर्म नहीं सिखाया? उन्होंने वास्तव में किस विषय को उठाया? वे समझा रहे थे, "मेरे तथागत स्तर पर भी मैने न तो ब्रह्माण्ड के परम सत्य को देखा है न ही यह कि परम धर्म क्या है।" इस प्रकार, बाद के लोगों के लिए उनका कहना था कि वे उनके शब्दों को निश्चित और अपरिवर्तनीय सत्य न माने। अन्यथा इससे तथागत और उससे निम्न स्तर के व्यक्ति बाधित होंगे और वे उच्चस्तरों की ओर स्तर भेदन नहीं कर सकेंगे। बाद में, लोग उनके इस वाक्य का वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाए और सोचा कि धर्म यदि सिखाया जाए तो धर्म नहीं है- उन्होंने इसे इस प्रकार समझा। वास्तव में, शाक्यमुनी कह रहे थे कि विभिन्न स्तरों का धर्म भिन्न है, और यह कि प्रत्येक स्तर का धर्म ब्रह्माण्ड का परम सत्य नहीं है। फिर भी एक स्तर का धर्म उस स्तर के पथप्रदर्शक की भूमिका निभाता है। वास्तव में, वे इस नियम की बात कर रहे थे।
अतीत में, कई लोग, विशेषकर ज़ेन बुध्दमत से संबंधित, ऐसी अवधारणा से ग्रस्त थे और अत्यंत संकुचित दृष्टिकोण रखते थे। आप कैसे बिना शिक्षा और मार्गदर्शन के स्वयं अभ्यास और साधना कर सकते हैं? बुध्दमत में कई बौध्द कहानियां हैं। कुछ लोगों ने उस व्यक्ति के बारे में पढ़ा होगा जो स्वर्ग गया था। स्वर्ग में पहुंचने पर, उसने पाया कि वज्र सूत्र12 का प्रत्येक शब्द वहां पर यहां निम्न स्तर से भिन्न था, और उसका अर्थ संपूर्ण भिन्न था। यह वज्र सूत्र कैसे साधारण मानवीय जगत के वज्र सूत्र से भिन्न हो सकता था? ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं: परमानंद के दिव्यलोक में धर्म ग्रंथ यहां निम्न स्तर से संपूर्ण भिन्न हैं, और यह लेशमात्र भी यहाँ जैसे नहीं हैं। न केवल शब्द भिन्न हैं बल्कि आशय और भावार्थ सभी भिन्न हैं, जैसे वे बदल गए हों। वास्तव में, यह इसलिए है क्यों समान फा के विभिन्न स्तरों पर भिन्न रुपांतरण और अभिव्यक्ति के रुप हैं, और यह अभ्यासियों के लिए विभिन्न स्तरों पर विभिन्न पथप्रदर्शकों की भूमिका प्रदान कर सकता है।
जैसे ज्ञातव्य हैं कि बुध्दमत में एक पुस्तिका है जिसका नाम परमानंद के दिव्यलोक की एक यात्रा है। इसमें लिखा है कि एक बार एक भिक्षु ध्यान अवस्था में बैठा था, उसकी मूल आत्मा13 (युआनशन) परमानंद के दिव्यलोक तक पहुंची और वहां के दृश्य को देखा। उसने वहां एक दिन व्यतीत किया; जब वह मानव जगत में वापस आया, छ: वर्ष बीत चुके थे। क्या उसने वह देखा? उसने देखा, किन्तु जो उसने देखा वह उसकी वास्तविक अवस्था नहीं थी। क्यों? क्योंकि उसका स्तर पर्याप्त ऊँचा नहीं था, और जो उसे दिखाया गया वह बुध्द फा की उसके अपने स्तर पर अभिव्यक्ति थी। क्योंकि उस प्रकार का दिव्यलोक फा द्वारा रचा गया एक दर्शन होता है, वह उसकी वास्तविक स्थिति नहीं देख पाया। यही अर्थ है जब मैं "कोई धर्म निश्चित नहीं है" के बारे में बताता हूँ ।
सत्य-करुणा-सहनशीलता ही अच्छे और बुरे लोगों में भेद करने का एकमात्र मानक है
बुध्दमत में लोग वाद-विवाद करते रहे हैं कि बुध्द फा क्या है। ऐसे भी लोग हैं जो मानते हैं कि बुध्दमत में उल्लिखित धर्म ही संपूर्ण बुध्द फा है। वास्तव में, यह नहीं है। शाक्यमुनी ने जिस धर्म की दो हजार पांच सौ वर्ष पूर्व व्याख्या की थी वह एक बहुत निम्न स्तर पर केवल साधारण लोगों के लिए था; यह उन को सिखाया गया था जो अभी प्राचीन सभ्यता से विकसित हुए थे और मन से अति सरल थे। आज धर्म विनाश का काल14 है जिसका उन्होंने उल्लेख किया था। अब लोग उस धर्म से साधना अभ्यास नहीं कर सकते। धर्म विनाश काल में, मठों के भिक्षुओं के लिए भी स्वयं को बचाना कठिन है, दूसरों का उध्दार करने की बात तो छोड़ दीजिए। जो धर्म शाक्यमुनी ने उस समय सिखाया था, उसमें इस स्थिति को घ्यान में रखा था, और उन्होंने बुध्द फा जो अपने स्तर पर समझा था उसे पूर्ण रुप से व्यक्त नहीं किया था। इसे सदा के लिए अपरिवर्तनीय रखना भी असंभव है।
जैसे समुदाय प्रगति करता है, मनुष्य का मन और अधिक परिष्कृत होता जाता है, जिससे लोगों के लिए इस तरह साधना अभ्यास करना सरल नहीं रह जाता। बुध्दमत का धर्म पूर्ण बुध्द फा का वर्णन नहीं हो सकता, और यह बुध्द फा का संक्षिप्त अंश मात्र ही है। बुध्द विचारधारा में कई और महान साधना मार्ग हैं जो लोगों में क्रमदर चले आ रहे हैं। संपूर्ण इतिहासकाल में वे अकेले एक ही शिष्य को हस्तातंरित होते रहे हैं। विभिन्न स्तरों का फा भिन्न है और विभिन्न आयामों का फा भिन्न है, जो सभी बुध्द फा के विभिन्न आयामों में तथा विभिन्न स्तरों पर अनेक रूप हैं। शाक्यमुनी ने यह भी उल्लेख किया था कि बुध्दत्व प्राप्त करने के चौरासी हजार साधना मार्ग हैं। बुध्दमत में, हालांकि, केवल दस से कुछ अधिक मार्ग ही सम्मिलित हैं, जैसे ज़ेन बुध्दमत, पवित्र भूमि, त्येनताइ, हुएयान और तन्त्रविद्या; ये सब बुध्द फा का संपूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। शाक्यमुनी ने स्वयं भी अपना संपूर्ण धर्म व्यक्त नहीं किया था; उन्होंने उसका केवल एक अंश ही सिखाया था जो उस समय के लोगों की समझ के उपयुक्त था।
तो फिर बुध्द फा क्या है। इस ब्रह्माण्ड की सबसे मूल प्रकृति, सत्य-करुणा-सहनशीलता, बुध्द फा की उच्चतम अभिव्यक्ति है। यह सबसे आधारभूत बुध्द फा है। बुध्द फा विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रुपों में अभिव्यक्त होता है और विभिन्न स्तरों पर विभिन्न पथप्रदर्शकों की भूमिका धारण करता है। जितना निम्न स्तर, उतना ही अधिक जटिल। यह प्रकृति, सत्य-करुणा-सहनशीलता, वायु, पत्थर, लकड़ी, मिट्टी, लोहे व स्टील और मानव शरीर के सूक्ष्म कणों में तथा सभी पदार्थों में उपस्थित है। प्राचीन समय में यह कहा जाता था कि ब्रह्माण्ड की समस्त वस्तुऐं व पदार्थ पंचतत्वों15 से बने हैं; उनमें भी इस प्रकृति सत्य-करुणा-सहनशीलता का समावेश है। एक अभ्यासी बुध्द फा का विशिष्ट रूप केवल उस स्तर पर समझ सकता है जहां तक उसकी साधना पहुँची है, जो उसकी साधना फल पदवी16 और स्तर है। पूर्ण रुप से कहें तो फा अत्यधिक अथाह है। अति उच्चतम स्तर के दृष्टिकोण से यह अति सरल है, क्योंकि फा स्वरुप में एक पिरामिड की तरह है। उच्चतम बिंदु पर, इसका सार तीन शब्दों में कहा जा सकता है : सत्य-करुणा-सहनशीलता। जब यह विभिन्न स्तरों पर अभिव्यक्त होता है तो अत्यधिक जटिल होता है। एक मनुष्य का उदाहरण लेते हैं। ताओ विचारधारा में मानव शरीर को एक लघु ब्रह्माण्ड माना जाता है। व्यक्ति का एक भौतिक शरीर होता है, किन्तु व्यक्ति केवल भौतिक शरीर से पूर्ण नहीं हो जाता। उसके पास मानव स्वभाव, व्यक्तित्व, चरित्र और मूल आत्मा भी होने चाहिए जिससे एक पूर्ण और स्वतन्त्र मनुष्य अपनी विशिष्टता सहित बना है। ऐसा ही हमारे ब्रह्माण्ड के साथ भी है, जिसमें आकाश गंगा, अन्य आकाश गंगाऐं, साथ ही जीवन और जल हैं। इस ब्रह्माण्ड में सभी वस्तुऐं और पदार्थ भौतिक अस्तित्व के रुप हैं। यद्यपि साथ ही साथ यह प्रकृति सत्य-करुणा-सहनशीलता का भी समावेश किये हुए है। पदार्थ के सभी सूक्ष्म कणों में इस प्रकृति का समावेश है - अत्यन्त सूक्ष्म कणों में भी यह गुण है।
यह प्रकृति, सत्य-करुणा-सहनशीलता, ब्रह्माण्ड में अच्छाई और बुराई को मापने के लिए मानक है। क्या अच्छा है या बुरा? इसकी तुलना इससे की जाती है। द 17 जिसका हम अतीत में उल्लेख करते थे वही है। निश्चित ही, आज के समाज के नैतिक आदर्श बदल चुके हैं और विकृत हो गये हैं। आज, यदि कोई लेयफंग18 से सीखता है, तो उसे मानसिक रुप से दीवालिया समझा जाता है। किन्तु 1950 या 1960 के दशक में कौन यह कह सकता था कि यह व्यक्ति मानसिक दीवालिया है? मानवीय नैतिक आदर्श का तेजी से पतन हो रहा है, और मानवीय नैतिक मूल्यों का प्रतिदिन हृास हो रहा है। लोग केवल स्वार्थ की पूर्ति में लगे हैं और अपने तुच्छ से लाभ के लिए दूसरों का अहित करने से भी नहीं चूकते। वे सभी प्रकार के साधन अपना कर एक दूसरे से प्रतिस्पध्र्दा और संघर्ष करते हैं। आप सब यह सोचें : क्या यह जारी रखना स्वीकार्य होगा? जब कोई व्यक्ति अनुचित कार्य कर रहा होता है, वह विश्वास नहीं करेगा यदि आप उसे बताऐं भी कि वह एक अनुचित कार्य कर रहा है। वह व्यक्ति वास्तव में विश्वास नहीं करेगा कि वह कुछ अनुचित कार्य कर रहा है। कुछ लोग अपनी तुलना पतित नैतिक आदर्श से करते हैं। क्योंकि आंकने के मानक बदल गए हैं, वे स्वयं को औरों से श्रेष्ठ समझते हैं। मानवीय नैतिक आदर्श चाहे जिस प्रकार बदलें, ब्रह्माण्ड की यह प्रकृति अपरिवर्तनीय रहती है, और यह एकमात्र मानक है जो अच्छे लोगों को बुरे लोगों से भिन्न करती है। एक अभ्यासी के लिए, उसका व्यवहार ब्रह्माण्ड की इस प्रकृति के अनुसार होना चाहिए न कि साधारण मानवीय मानक के अनुसार। यदि आप मूल, सच्ची प्रकृति की ओर लौटना चाहते हैं और साधना अभ्यास में प्रगति करना चाहते हैं, तो आपको इस मानक के अनुसार ही व्यवहार करना होगा। एक मनुष्य होते हुए आप तभी एक अच्छे व्यक्ति हैं यदि आप ब्रह्माण्ड की प्रकृति सत्य-करुणा-सहनशीलता का अनुसरण कर सकें। जो व्यक्ति इस प्रकृति से विचलित होता है वह वास्तव में बुरा व्यक्ति है। कार्यस्थल में या समाज में, कुछ लोग कह सकते हैं कि आप बुरे हैं, किन्तु आवश्यक नहीं कि आप बुरे हों। कुछ कह सकते हैं कि आप अच्छे हैं, किन्तु हो सकता है आप वास्तव में अच्छे न हों। एक अभ्यासी होते हुए, यदि आप स्वयं को इस प्रकृति के साथ आत्मसात करते हैं तो आप वह हैं जिसे ताओ की प्राप्ति हो चुकी है - यह केवल इतना सरल नियम है।
सत्य-करुणा-सहनशीलता के अभ्यास में, ताओ विचारधारा सत्य की साधना पर बल देती है। इसलिए ताओ विचारधारा अपनी प्रकृति के विकास के लिए सत्य की साधना में विश्वास करती है; व्यक्ति को सत्य बोलना चाहिए, कार्य सच्चाई से करने चाहिए, सत्यवान बनना चाहिए, अपनी मूल प्रकृति की ओर लौटना चाहिए और अन्त में साधना के द्वारा एक सच्चा व्यक्ति बनना चाहिए। हालांकि यह करुणा और सहनशीलता को भी सम्मिलित करती है। किन्तु बल सत्य की साधना पर होता है। बुध्द विचारधारा सत्य-करुणा-सहनशीलता में से करुणा की साधना पर बल देती है। क्योंकि करुणा की साधना महान, परोपकारी करुणा उत्पन्न कर सकती है, और जब करुणा उत्पन्न होती है तो व्यक्ति सभी प्राणियों को दुख भोगते हुए पाता है, बुध्द विचारधारा इस कारण सभी प्राणियों के उध्दार की इच्छा विकसित करती है। इसमें सत्य और सहनशीलता भी हैं किन्तु बल करुणा की साधना पर है। हमारा फालुन दाफा ब्रह्माण्ड के उच्चतम आदर्श सत्य, करुणा और सहनशीलता पर आधारित है, जिन सभी की हम एक साथ साधना करते हैं। यह प्रणाली जिसकी हम साधना करते हैं अथाह है।
चीगोंग एक पूर्व ऐतिहासिक संस्कृति है
चीगोंग क्या है? कई चीगोंग गुरु इस बारे में बात करते हैं। जो मैं कह रहा हूँ उससे भिन्न है जो वे कहते हैं। कई चीगोंग गुरु इसके बारे में अपने स्तर पर कहते हैं, जबकि मैं चीगोंग की समझ पर उच्च स्तर से बात कर रहा हूँ। यह उनकी समझ से पूर्णतया भिन्न है। कुछ चीगोंग गुरु दावा करते हैं कि चीगोंग का हमारे देश में दो हजार वर्ष का इतिहास है। ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं कि चीगोंग का इतिहास तीन हजार वर्ष है। कुछ लोग उल्लेख करते हैं कि चीगोंग का इतिहास पांच हजार वर्ष है, जो लगभग हमारी चीनी सभ्यता के समकालीन है। जबकि कुछ और लोगों का पुरातत्व उत्खनन के आधार पर कहना है कि इसका इतिहास सात हजार वर्ष है, और इस प्रकार हमारी चीनी सभ्यता से भी अधिक प्राचीन है। किन्तु वे इसे कैसे भी समझें चीगोंग का अस्तित्व मानव सभ्यता के इतिहास से अधिक प्राचीन नहीं हो सकता। डार्विन के क्रम विकास के नियम के अनुसार, मनुष्य का विकास जलीय पौधों से होकर जलीय जीवों के द्वारा हुआ। इसके पश्चात, वे भूमि पर रहने आ गये और अन्तत: पेड़ों पर। फिर से भूमि पर, वे कपि बन गऐ और अन्त में उनका विकास संस्कृति और विचार सहित आधुनिक मानव के रुप में हुआ। उस गणना के अनुसार, मानवीय सभ्यता का वास्तविक उद्भव दस हजार वर्ष के अधिक प्राचीन नहीं है। उससे भी पीछे जाऐं तो किसी प्रकार का लिखित अवशेष यहां तक की गांठे बांध कर याद रखना तक प्रचलित नहीं था। वे लोग पेड़ की छाल पहनते थे और कच्चा मांस खाते थे। उससे भी पीछे देखें तो वे पूरी तरह असभ्य और आदिमानव थे। वे अग्नि के प्रयोग से भी अनभिज्ञ थे।
किन्तु हमारे सामने एक समस्या है। संसार में अनेक स्थानों में ऐसे कई सांस्कृतिक अवशेष मिले हैं जो हमारी मानव सभ्यता से कहीं पहले के हैं। ये प्राचीन अवशेष अति उन्नत स्तर की शिल्पकारी संजोये हैं। कलात्मक दृष्टि से, वे अति उन्नत श्रेणी के हैं। आधुनिक मानव समुदाय तो केवल प्राचीन मनुष्यों की कला की नकल कर रहा है, और उनकी कला उत्कृष्ट कलात्मक श्रेणी की है। वे, हालांकि, एक लाख से भी अधिक वर्ष, कई लाख वर्ष, करोड़ों वर्ष या फिर दस करोड़ वर्ष से भी अधिक प्राचीन अवशेष हैं। इसके बारे में आप सब सोचें : क्या वे आज के इतिहास का उपहास नहीं उड़ा रहे? यह वास्तव में, कोई उपहास नहीं है, क्योंकि मनुष्य जाति निरन्तर अपनी उन्नति व पुर्न-खोज करती रही है। समुदाय इसी प्रकार प्रगति करता है। आंरभिक समझ संभव है कि पूर्णतया सत्य न हो।
कई लोगों ने "पूर्व ऐतिहासिक संस्कृति" के बारे में सुना होगा जिसे "पूर्व ऐतिहासिक सभ्यता" भी कहते हैं। हम पूर्व ऐतिहासिक सभ्यता के बारे में बात करेंगे। इस पृथ्वी पर एशिया, यूरोप, दक्षिणी अमरीका, उत्तरी अमरीका, ओशोनिया, अफरीका, और अंर्टाकटिका के महाद्वीप हैं। भूगर्भविद इन्हें महाद्वीपीय परतें कहते हैं। महाद्वीपीय परतों की संरचना से लेकर आज तक करोड़ों वर्ष बीत चुके हैं। अर्थात, कई महाद्वीपों का समुंद्र तल में से उदभव हुआ है, और कई महाद्वीप जलमग्न भी हुए हैं। कुछ एक करोड़ से अधिक वर्षों से ही वे वर्तमान अवस्था में स्थिर हुए हैं। कई महासागरों की तलहटी में, यद्यपि, कुछ ऊँचे और विशाल प्राचीन वास्तुशिल्प की खोज हुई है। इन भवनो को बहुत सुंदरता के साथ बनाया गया था और वे आधुनिक मुनष्य की सांस्कृतिक धरोहर नहीं हैं। उनका निर्माण सागरतल में डूबने से पहले हुआ होगा। इन सभ्यताओं को लाखों वर्ष पूर्व किसने बनाया होगा? उस समय, हमारी मानव प्रजाति वानर तक नहीं थी। कैसे हम इतनी महान सूझ बूझ की वस्तुऐं बना सके? विश्वभर के पुरातत्वविदों ने एक जीव ट्राइलोबाइट की खोज की है जिनका 26 से 60 करोड़ वर्ष पूर्व अस्तित्व था। इस प्रकार के जीव 26 करोड़ वर्ष पूर्व लुप्त हो गए थे। एक अमरीकी वैज्ञानिक ने ट्राइलोबाइट का एक जीवाश्म खोजा है जिस पर एक मनुष्य का पदचिन्ह है; पदचिन्ह स्पष्ट रुप से जीवाश्म पर एक जूते पहने व्यक्ति से छपा है। क्या इससे इतिहासकारों का उपहास नहीं होता? डार्विन के क्रम विकास के नियम के अनुसार, 26 करोड़ वर्ष पूर्व मनुष्य का अस्तित्व कैसे हो सकता था?
पेरु के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के संग्रहालय में, एक शिला है जिस पर एक मानव आकृति खुदी है। जांच पड़ताल के बाद यह निर्धारित हुआ कि मानव आकृति की नक्काशी तीस हजार वर्ष पूर्व की गई थी। यह मानव आकृति कपड़े, टोपी और जूते पहने हुए है, हाथ में एक दूरबीन लिए है, और वह खगोल पिंड का निरीक्षण कर रहा है। कैसे तीस हजार वर्ष पूर्व लोग कपड़े बुन और पहन सकते थे? और भी आश्चर्यजनक यह है, कि वह खगोल का एक दूरबीन से निरीक्षण कर रहा था और उसे खगोलशास्त्र का कुछ ज्ञान अवश्य था। हम हमेशा सोचते हैं कि गैलिलियो, एक यूरोपीय, ने दूरबीन का अविष्कार किया था, जिसका इतिहास केवल तीन सौ वर्ष से कुछ अधिक था। किन्तु तीस हजार वर्ष पूर्व किसने दूरबीन का आविष्कार किया होगा? ऐसे कई और अनसुलझे रहस्य हैं। उदाहरण के लिए, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका और एल्प की कई गुफाओं में भित्तिचित्रों की नक्काशी है जो बिल्कुल सजीव और वास्तविक लगते हैं। उनमें जो आकृतियां उभारी गई हैं वे अत्यन्त उच्च श्रेणी की दिखाई पड़ती हैं तथा इन्हें किसी खनिज रंग से रंगा गया है। ये लोग, हालांकि, समकालीन वस्त्र पहने हैं जो कुछ पश्चिमी सूट जैसे लगते हैं, और वे कसी पतलून पहने हैं। कुछ लोग धूम्रपान की नली जैसे कुछ पकड़ें हैं, तो कुछ चलने के लिए छड़ी पकड़े हैं, और टोपी पहने हैं। कई लाख वर्ष पूर्व के वानर कैसे इतने उन्नत कलात्मक स्तर पर पहुँच सकते थे?
इससे भी सुदूर प्राचीन काल का उदाहरण देखते हैं, अफ्रीका के गैबन प्रजातन्त्र में यूरेनियम खनिज पाया जाता है। यह देश अपेक्षाकृत अविकसित है। यह स्वयं यूरेनियम नहीं बना सकता और खनिज का उन्नत देशों को निर्यात करता है। 1972 में, एक फ्रांसिसी निर्माता ने यहां से खनिज यूरेनियम आयात किया। प्रयोगशाला में परीक्षण के उपरान्त, पता लगा कि खनिज से यूरेनियम निकाला हुआ था तथा उपयोग किया हुआ था। उन्हें यह बहुत असाधारण लगा और वैज्ञानिकों को तथ्य जानने के लिए भेजा। कई अन्य देशों के वैज्ञानिक भी वहां जांच पड़ताल के लिए गये। अन्त में, इस यूरेनियम की खान को समझ बूझ कर बनाया गया एक बहुत बड़ा नाभिकीय रियेक्टर प्रमाणित किया गया। यहाँ तक कि हमारे आधुनिक मनुष्य भी शायद उसे न बना सकें, तो इसका निर्माण कब हुआ? इसका निर्माण 2 अरब वर्ष पूर्व हुआ और 5 लाख वर्ष तक यह क्रियाशील रहा। ये बिल्कुल अविश्वस्नीय संख्याऐं हैं, और इन्हें किसी भी प्रकार डार्विन के क्रम विकास के नियम से नहीं समझाया जा सकता। ऐसे कई उदाहरण हैं। आज के वैज्ञानिक और तकनीकि समुदाय ने जो खोज की हैं वे हमारी पाठयपुस्तकों को बदल डालने के लिए बहुत हैं। एक बार मानव जाति की परंपरागत धारणाऐं कार्य करने और सोचने की क्रमबध्द शैली अपना लेती हैं, तो नये विचारों को स्वीकारना बहुत दुष्कर हो जाता है। जब सत्य उजागर होता है, तो लोग उसे स्वीकारने का साहस नहीं जुटा पाते और स्वभाववश उसे अस्वीकार कर देते हैं। परंपरागत धारणाओं के प्रभाव के कारण आज किसी ने भी इन खोजों को क्रमबध्द संकलित नहीं किया है। इस प्रकार, मानवीय विचारधाराऐं सदैव खोजों से पीछे ही रहती हैं। जैसे ही आप इसके बारे में बात करते हैं, ऐसे लोग मिलेंगे जो इन्हें अंध-विश्वास कहेंगे और अस्वीकार करेंगे - हालांकि इनकी खोज पहले ही हो चुकी है। केवल वे अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई हैं।
विदेशों में कई साहसी वैज्ञानिकों ने सार्वजनिक रुप से इसे पूर्व ऐतिहासिक संस्कृति और हमारे मानव समाज से पहले की सभ्यता बता कर मान्यता दी है। दूसरे शब्दों में, हमारी सभ्यता से पहले एक से अधिक अवधियों में सभ्यताऐं रही हैं। खुदाई में निकले अवशेषों से, हमें ऐसी वस्तुऐं मिली हैं जो केवल एक ही सभ्यता काल की नहीं हैं। इस प्रकार यह विश्वास किया जाता है कि अनेक बार जब मानव सभ्यता का विनाश हुआ उसके प्रत्येक के पश्चात, अल्पसंख्या मे कुछ लोग बच जाते थे और आदिमकालीन जीवन यापन करते थे। उसके बाद, उनकी संख्या में धीरे धीरे वृध्दि होती थी जिससे एक नया मानव वंश बनता और एक नई सभ्यता आरंभ होती। बाद में, उनका पुन: विनाश होता और उसके बाद एक और मानव वंश की उत्पत्ति होती। यह परिवर्तन का क्रम इसी प्रकार चलता रहता। भौतिकविदों का मत है कि पदार्थ की गति विशिष्ट नियमों के अनुसार होती है। हमारे संपूर्ण ब्रह्माण्ड के बदलाव का क्रम भी नियमानुसार ही होता है।
यह असंभव है कि हमारा पृथ्वी ग्रह, इस अथाह ब्रह्माण्ड और आकाशगंगा में सदैव निर्विध्न परिक्रमा करता रहा होगा। संभव है कि यह किसी ग्रह से टकराया हो या कुछ और कठिनाई आई हो, जिससे घोर प्रलय उत्पन्न हुआ हो। हमारी दिव्य सिध्दियों के दृष्टिकोण से, यह इसी प्रकार व्यवस्थित था। मैने एक बार ध्यानपूर्वक जांच-पड़ताल की और पाया कि मानव जाति का इक्यासी बार संपूर्ण विनाश हुआ था। पिछली सभ्यता से शेष, केवल कुछ ही लोग बचते और नये युग में प्रवेश करते और फिर से आदिमकालीन जीवन व्यतीत करते। जैसे मानव जनसंख्या में वृध्दि होती, सभ्यता का अन्तत: फिर उदभव होता। मानवजाति इस प्रकार के आवधिक परिवर्तन इक्यासी बार अनुभव कर चुकी है, और जबकि मैने इसका अन्त तक पता नहीं लगाया। चीन के निवासी नक्षत्रीय काल स्थिति, अनुकूल पृथ्वी दशाऐं और मानवीय समन्वय के बारे में बात करते हैं। विभिन्न नक्षत्रीय परिवर्तन और विभिन्न नक्षत्रीय समय स्थितियां साधारण मानव समुदाय में विभिन्न परिस्थितियों की उत्पत्ति कर सकते हैं। भौतिकी के अनुसार, पदार्थ की गति विशिष्ट नियमों के अनुसार होती है - यह ब्रह्माण्ड की गति के लिए भी मान्य है।
पूर्व ऐतिहासिक संस्कृति का उपरोक्त संदर्भ मूल रुप से आपको बताता है कि चीगोंग का अविष्कार भी हमारी इस मानवजाति ने नहीं किया था। यह एक अत्यन्त सुदूर युग से एक से दूसरे को हस्तांतरित होता चला आ रहा है और यह भी एक प्रकार की पूर्व-ऐतिहासिक संस्कृति थी। बुध्दमत के शास्त्रों से हम कुछ संबंधित उल्लेख भी पा सकते हैं। शाक्यमुनि ने एक बार कहा था कि वे साधना अभ्यास में कई लाख कल्प 19 पूर्व सफल हुए थे। एक कल्प में कितने वर्ष होते हैं? एक कल्प करोड़ों वर्ष की एक संख्या है। इतनी विशाल संख्या बिल्कुल अविश्वस्नीय लगती है। यदि सत्य है, तो क्या यह मानवजाति के इतिहास और संपूर्ण पृथ्वी के परिवर्तनों से एकमत नहीं होता? इसके अलावा शाक्यमुनि ने यह भी उल्लेख किया था कि उनसे पहले छ: मूल बुध्द थे, यह कि उनके गुरु थे, इत्यादि, जो सभी साधना अभ्यास में कई करोड़ कल्प पूर्व सफल हुए थे। यदि यह सब वास्तविक है, क्या वे साधना मार्ग आज हमारे समुदाय में सिखाये जा रहे उन सच्चे, पांरपरिक अभ्यासों और सच्ची शिक्षाओं में उपलब्ध हैं? यदि आप मुझसे पूछें, तो अवश्य ऐसा है, किन्तु वे शायद ही दिखाई देते हैं। आजकल पांखडी चीगोंग, नकली चीगोंग, और वे लोग जो प्रेतग्रस्त हैं सभी ने अपने मन मुताबिक लोगों को धोखा देने के लिए कुछ भी बना लिया है, तथा इनकी संख्या सच्ची चीगोंग अभ्यास पध्दतियों से कई गुणा अधिक है। सच्चे और पांखडी में भेद करना कठिन है। एक सच्ची चीगोंग अभ्यास पध्दति का भेद करना सरल नहीं है, और न ही यह सरलता से उपलब्ध है।
वास्तव में न केवल चीगोंग सुदूर युग से हस्तांतरित होता चला आ रहा है, ताइची20, हतु, लुओ-श्यु21, परिवर्तनों की पुस्तक22, आठ त्रिआकृतियां23, आदि, सभी पूर्व इतिहास से चलती आ रही हैं। इसलिए यदि हम आज साधारण व्यक्ति के दृष्टिकोण से उनका अध्ययन करें और समझें, हम उन्हें किसी भी प्रकार नहीं समझ पाऐंगे। साधारण व्यक्ति के स्तर, दृष्टिकोण और मनस्थिति से, सच्ची वस्तुऐं नहीं समझी जा सकतीं।
चीगोंग साधना अभ्यास है
क्योंकि चीगोंग का इतना प्राचीन इतिहास रहा है, यह किस उद्देश्य के लिए है? मैं सभी को बताना चाहूँगा, क्योंकि हम बुध्द विचारधारा के एक महान साधना मार्ग से संबंधित हैं, नि:संदेह हम बुध्दत्व की साधना करते हैं। ताओ विचारधारा में ताओ की प्राप्ति के लिए ताओ की साधना की जाती है। मैं सभी को बताना चाहूँगा कि "बुध्द" कोई अंधविश्वास नहीं है। यह एक संस्कृत का शब्द है, जो एक प्राचीन भारतीय भाषा है। जब इसे चीन में प्रचलित किया गया, इसे "फो तुओ"24 कहा जाता था। कुछ लोगों ने इसका अनुवाद "फु तु"25 किया। जैसे जैसे यह शब्द प्रचलित हुआ, हमारे चीनी लोगों ने एक अक्षर छोड़ दिया और इसे ''फो'' कहने लगे। चीनी भाषा में इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है "एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति"। ऐसा व्यक्ति जिसे साधना अभ्यास के द्वारा ज्ञान प्राप्त हो चुका है। इसमे क्या अंधविश्वास है?
इसके बारे में आप सब सोचें : साधना अभ्यास के द्वारा दिव्य सिध्दियां प्राप्त की जा सकती हैं। आज विश्व में छ: आलौकिक सिध्दियां मानी जाती हैं, किन्तु वे इन्हीं तक सीमित नहीं हैं। मैं कहूँगा कि दस हजार से भी अधिक शुध्द दिव्य सिध्दियों का अस्तित्व है। जैसे एक व्यक्ति यहां बैठा है, अपने हाथ और पैर हिलाऐ बिना वह वो करने में समर्थ है जो और लोग हाथ और पैरों से भी नहीं कर सकते और वह ब्रह्माण्ड के प्रत्येक आयाम का वास्तविक सत्य देख सकता है। यह व्यक्ति ब्रह्माण्ड का सत्य देख सकता है और वे वस्तुऐं जो साधारण मनुष्य नहीं देख सकते। क्या वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसने साधना अभ्यास द्वारा ताओ प्राप्त कर लिया है? क्या वह एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति नहीं है? उसे एक साधारण व्यक्ति के समान कैसे माना जा सकता है? क्या वह साधना अभ्यास द्वारा ज्ञानप्राप्त व्यक्ति नहीं है? क्या उसे ज्ञानप्राप्त व्यक्ति कहना उचित नहीं होगा? प्राचीन भारतीय भाषा में उसे बुध्द कहा जाता है। वास्तव में, वह यही है। यही चीगोंग का उद्देश्य है।
चीगोंग का उल्लेख किया जाए तो कुछ लोग कहेंगें, "बिना बीमारी के, कौन चींगोंग का अभ्यास करेगा?" यह दर्शाता है कि चीगोंग का प्रयाय रोग दूर करने के लिए है। यह एक अत्यधिक अपूर्ण धारणा है। यह आपका दोष नहीं है, क्योंकि कई चीगोंग गुरु वास्तव में ऐसे कार्य जैसे रोग दूर करना और स्वस्थ रहना, करते हैं। वे सब आरोग्य और स्वास्थ्य के बारे में बात करते हैं। कोई भी उच्च स्तरों की ओर कुछ नहीं सिखाता। इसका यह अर्थ नहीं है कि उनकी अभ्यास पध्दतियां अच्छी नहीं है। उनका उद्देश्य आरोग्य और स्वास्थ्य के स्तर की वस्तुऐं सिखाना है, और चीगोंग का जन-प्रचार करना है। ऐसे कई लोग हैं जो उच्च स्तरों की ओर साधना अभ्यास करना चाहते हैं। उनके ऐसे विचार और इच्छाऐं हैं, किन्तु उन्हें साधना के लिए उचित प्रणालियां नहीं प्राप्त हुई हैं, जिससे बहुत सी कठिनाइयां और समस्याऐं उत्पन्न होती हैं। नि:संदेह, एक अभ्यास पध्दति को वास्तविक रुप से उच्च स्तरों पर सिखाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलुओं का समावेश होता है। इसलिए, हम लोगों और समाज के प्रति उत्तारदायी रहे हैं, और अभ्यास सिखाने का कुल मिला कर परिणाम अच्छा रहा है। कुछ विषय वास्तव में बहुत प्रगाढ़ हैं और, यदि चर्चा की जाए, तो अंधविश्वास की तरह लग सकते हैं। तो भी, हम उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से समझाने में अपना सर्वोतम प्रयास करेंगे।
जब हम कुछ विशिष्ट विषयों के बारें में चर्चा करते हैं, कुछ लोग उन्हें अधंविश्वास कहने लगते हैं। ऐसा क्यों है? ऐसे व्यक्ति का यह मानक है कि वह जिसे विज्ञान ने मान्यता नहीं दी है, जो उसने अभी तक अनुभव नहीं किया है, या जो उसे लगता है कि संभव नहीं है, उन सभी को अंधविश्वासी और काल्पनिक मानता है- यही उसकी मानसिकता है। क्या यह मानसिकता उचित है? क्या वह जिसे विज्ञान ने मान्यता नहीं दी है या जो इसकी प्रगति के बाहर है उसे अंधविश्वास और काल्पनिक करार देना चाहिए? तब, क्या यह व्यक्ति स्वयं अंधविश्वासी और काल्पनिक नहीं हो रहा है? इस मानसिकता से, विज्ञान कैसे प्रगति कर सकता है तथा आगे बढ़ सकता है? और न ही मानव समुदाय आगे प्रगति कर सकता है। वह सब जिसका हमारे वैज्ञानिक और तकनीकि समुदाय ने अविष्कार किया है पुराने समय के लोगों के लिए अज्ञात था। यदि इन वस्तुओं को अंधविश्वासी कह दिया जाता, तो नि:संदेह प्रगति की आवश्यकता ही नहीं होती। चीगोंग कोई काल्पनिक विचारधारा नहीं है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो चीगोंग को नहीं समझते और, इस प्रकार, हमेशा चीगोंग को काल्पनिक मानते हैं। वर्तमान में, वैज्ञानिक उपकरणों से हमने चीगोंग गुरु के शरीर में इन्फ्रासोनिक तरंगे, सुपरसोनिक तरंगे, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे, इन्फ्रारेड, अल्ट्रावायोलेट, गामा तरंगे, न्युट्रोन, परमाणु, विरल धातु तत्व, इत्यादि पाऐ हैं। क्या ये भौतिक अस्तित्व की वस्तुऐ नहीं हैं? चीगोंग को कैसे अंधविश्वास करार दिया जा सकता है? वे सभी पदार्थ से बनी हैं। क्या सभी कुछ पदार्थ से नहीं बना है? क्या और काल-अवकाश भी पदार्थ से नहीं बने हैं? चूंकि इसका प्रयोग बुध्दत्व की साधना के लिए होता है, इसमें अनेक प्रगाढ़ पहलुओं का समावेश होना अवश्यंभावी है, और हम उन सभी पर चर्चा करेंगे।
यदि चीगोंग ऐसे उद्देश्य के लिए है, हम इसे चीगोंग क्यों कहते हैं? यह वास्तव में, "चीगोंग" नहीं कहलाता। यह क्या कहलाता है? यह "साधना अभ्यास" कहलाता है, और यह केवल साधना अभ्यास है। नि:संदेह इसके कई और विशिष्ट नाम है, किन्तु साधारणत: इसे साधना अभ्यास कहा जाता है। तो, इसे चीगोंग क्यों कहा जाता है? जैसे ज्ञात है कि चीगोंग का प्रचलन समाज में पिछले बीस वर्षों में हुआ है। यह पहली बार महान सांस्कृतिक आंदोलन26 के मध्य में आंरभ हुआ था। बाद में यह अपने प्रसिध्दि के शिखर पर पहुँच गया। इसके बारे में आप सब सोचें : वामपंथी विचारधारा उस समय बहुत प्रचलित थी। हम यह उल्लेख नहीं करेंगे कि पूर्व ऐतिहासिक सभ्यताओं में चीगोंग के क्या नाम थे। अपनी प्रगति के दौरान, इस मानवीय सभ्यता को सामंतवादी काल से भी गुजरना पड़ा। इसलिए, अक्सर इसके नामों में सांमतवादी प्रभाव रहे हैं। धर्म से संबधित पध्दतियों के नाम भी अक्सर धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत रहे हैं। उदाहरण के लिए, तथाकथित, "ताओ का महान साधना पथ", "वज्र का ध्यान", "अरहत का पथ",27 "बुध्द धर्म का महान साधना पथ", "नवम आवधिक आन्तरिक प्रक्रिया", इत्यादि उनमें से कुछ हैं। यदि ये नाम महान सांस्कृतिक आंदोलन के दौरान प्रयोग किये गये होते, क्या इस पर आपत्ति नहीं होती? नि:संदेह उन चीगोंग गुरुओं की चीगोंग को प्रचलित करने की इच्छा उचित थी और उन्होने जनसाधारण में बीमारियां ठीक करने, स्वस्थ रहने और शारीरिक अवस्था में सुधार के लिए प्रयास किया - क्या ही अच्छा होता - यदि इसकी स्वीकृति ही न दी जाती। लोगों का साहस ही नहीं हुआ कि ऐसे नाम प्रयोग कर सकें। इसलिए, चीगोंग को प्रचलित करने के लिए, कई चीगोंग गुरुओं ने तान जिंग और ताओ जांग28 के ग्रथों से दो शब्द लिए और "चीगोंग" नाम दे दिया। कुछ लोग चीगोंग नामकरण पर शोध भी करते हैं। यहां शोध करने योग्य कुछ है ही नहीं। पूर्व काल में, इसे केवल साधना अभ्यास कहा जाता था। चीगोंग केवल एक नव निर्मित शब्द है जो आधुनिक लोगों की मानसिकता से मेल खाता है।
आपका गोंग आपके अभ्यास के साथ क्यों नहीं बढ़ता?
आपका गोंग आपके अभ्यास के साथ क्यों नहीं बढ़ता? बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं : "मैने सच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं की है। यदि कोई गुरु मुझे कुछ विशेष कौशल और कुछ उन्नत तरीके सिखा दे, तो मेरा गोंग बढ़ जाएगा।" आजकल, पिचानवे प्रतिशत लोग ऐसे ही सोचते हैं, और मैं इसे बिल्कुल उपहासपूर्ण पाता हूँ। यह उपहासपूर्ण क्यों है? यह इसलिए क्योंकि चीगोंग कोई साधारण लोगों की तकनीक नहीं है। यह पूर्णत: दिव्य है। इसीलिए, इसकी जांच के लिए उच्च स्तरों के नियमों का प्रयोग होना चाहिए। मैं सभी को बताना चाहूँगा कि अपना गोंग बढ़ा पाने में असफल रहने का मूल कारण यह है : "साधना" और "अभ्यास" दो शब्दों में से, लोग केवल अभ्यास पर ही ध्यान देते हैं और साधना भूल जाते हैं। यदि आप किसी वस्तु को बाह्य जगत में ढूंढते हैं, आप इसकी प्राप्ति किसी भी प्रकार नहीं कर सकते। एक साधारण व्यक्ति के शरीर, एक साधारण व्यक्ति के हाथों और एक साधारण व्यक्ति के मन से, क्या आप सोचते हैं कि आप उच्च शक्ति पदार्थ को गोंग में रुपान्तरित कर लेंगे या गोंग बढ़ा लेंगे? यह इतना सरल कैसे हो सकता है ! मेरे मत में, यह एक उपहास है। यह इसके समान है कि बाह्य जगत में आप किसी वस्तु को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं और बाह्य जगत में उसे खोज रहे हैं। आप इसे कभी प्राप्त नहीं करेंगे।
यह साधारण लोगों का कोई कौशल नहीं है, जो आप कुछ धन देकर या कुछ तरीके सीख कर प्राप्त कर सकें। यह इस प्रकार नहीं है क्योंकि यह साधारण लोगों के स्तर से बाहर की वस्तु है। इसलिए आपसे आशा की जाऐगी कि आप दिव्य नियमों का पालन करें। तो आपके लिए क्या आवश्यक है? आपको अपनी आन्तरिक प्रकृति की साधना करनी होगी न कि वस्तुओं का बाह्य जगत में पीछा करना। बहुत से लोग वस्तुओं को बाह्य जगत में तलाश रहे हैं। वे आज एक वस्तु के पीछे पड़ते हैं और कल दूसरी के। इसके अलावा, वे दिव्य सिध्दियों की खोज की लालसा से बंधे हैं और हर प्रकार के भावों से घिरे रहते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो चीगोंग गुरु बनना चाहते हैं और रोग उपचार करके धन कमाना चाहते हैं ! वास्तव में साधना अभ्यास के लिए, आपको अपने मन की साधना करनी होगी। इसे नैतिकगुण साधना कहते हैं। उदाहरण के लिए, एक दूसरे के बीच विवाद में, आपको विभिन्न निजh भावनाओं और इच्छाओं के बारे में कम परवाह करनी चाहिए। निजh लाभ के लिए प्रतिर्स्पधा करते हुए आप अपना गोंग भी बढ़ाना चाहते हैं - ऐसा कैसे संभव हो सकता है? क्या आप एक साधारण व्यक्ति के ही समान नहीं हैं? आपका गोंग कैसे बढ़ सकता है? इसलिए, केवल नैतिकगुण साधना पर ध्यान देने से आपका गोंग बढ़ सकता है और आपके स्तर की वृध्दि हो सकती है।
नैतिकगुण क्या है? इसमें सद्गुण (एक प्रकार का पदार्थ), सहनशीलता, ज्ञानप्राप्ति का गुण, बलिदान, साधारण व्यक्तियों की अनेक इच्छाओं और बंधनो का त्याग, कठिनाईयां सहने की योग्यता इत्यादि सम्मिलित हैं। यह अनेक वस्तुओं को सम्मिलित करता है। आपकी वास्तविक प्रगति के लिए नैतिकगुण के प्रत्येक पहलू की वास्तविक वृध्दि आवश्यक है। यह गोंग सामर्थ्य (गोंगली) की उन्नति के लिए निर्णायक पहलू है।
कुछ लोग सोचेंगे : "नैतिकगुण विषय जिसका आपने उल्लेख किया बहुत कुछ विचारधारा और व्यक्ति की सोच से संबंधित है। इसका गोंग जिसकी हम साधना करते हैं से कोई संबंध नहीं है।" यह क्यों समान विषय नहीं है? प्राचीन काल से, यह विवाद कि पदार्थ मन को निर्धारित करता है या इसके विपरीत, दर्शन जगत में निरन्तर चर्चा और बहस का विषय रहा है। वास्तव में, मैं सभी को बताना चाहूँगा कि पदार्थ और मन एक ही वस्तु हैं। मानव शरीर पर वैज्ञानिक शोध में, आज के वैज्ञानिकों का मत है कि मानवीय मस्तिष्क से उत्पन्न विचार एक पदार्थ है। यदि इसका भौतिक अस्तित्व है, तो क्या इसका मानसिक अस्तित्व नहीं है? क्या वे समान वस्तुऐं नहीं हुईं? ठीक वैसे ही जैसे मैने ब्रह्माण्ड का वर्णन किया, न केवल इसका भौतिक अस्तित्व है बल्कि इसके साथ इसकी प्रकृति भी है। एक साधारण मनुष्य, इस ब्रह्माण्ड में, इस प्रकृति सत्य-करुणा-सहनशीलता, के अस्तित्व का पता नहीं लगा सकता, क्योंकि सभी साधारण मनुष्य समान स्तर पर हैं। जब आप साधारण व्यक्ति के स्तर से ऊपर उठते हैं, तो आप इसका पता लगा सकेंगे। आप इसका पता कैसे लगाते हैं? ब्रह्माण्ड का संपूर्ण पदार्थ जिसमें ब्रह्माण्ड में व्याप्त सभी तत्व सम्मिलित हैं, मानसिक क्षमता वाले जीवित प्राणी हैं, और वे सभी ब्रह्माण्ड के फा के विभिन्न स्तरों पर अस्तित्व के रुप हैं। वे आपको ऊपर बिल्कुल नहीं बढ़ने देंगे। वे आपको ऊपर क्यों नहीं बढ़ने देते? यह इसलिए क्योंकि आपके नैतिकगुण में अभी सुधार नहीं हुआ है। प्रत्येक स्तर पर आदर्श भिन्न हैं। यदि आप एक उच्च स्तर पर पहुँचना चाहते हैं, आपको अपने कुविचार त्यागने होंगे और स्वयं में व्याप्त बुराईओं का शोधन करना होगा। जिससे आप उस स्तर के आदर्श की आवश्यकताओं से आत्मसात हो सकें। ऐसा करने से ही आप ऊपर उठ सकते हैं।
जैसे ही आप अपने नैतिकगुण में वृध्दि करते हैं, आपके शरीर में एक महान परिवर्तन होगा। नैतिकगुण में सुधार होने पर, आपके शरीर के पदार्थ का रुपांरतण अवश्यंभावी है। किस प्रकार के परिवर्तन होंगे? आप उन बुराईयों का त्याग कर देंगे जिनके प्रति आपको मोहभाव है। उदाहरण के लिए, यदि गंदी वस्तुओं से भरी बोतल को कस के बंद करके पानी में फेंक दिया जाए, तो यह पूरी तल तक डूब जाऐगी। आप इसके कुछ गंदे पदार्थ बाहर निकाल दें। जितना आप बोतल को रिक्त करेंगे, उतना ही अधिक ऊपर यह तैरेगी। यदि यह पूरी तरह रिक्त कर दी जाए तो यह पानी की सतह पर तैरने लगेगी। हमारे साधना अभ्यास के दौरान, आपको अपने शरीर में व्याप्त विभिन्न बुराईयों का शोधन करना होगा जिससे आप ऊपर की ओर प्रगति कर सकें। ब्रह्माण्ड की यह प्रकृति वस्तुत: यही भूमिका निभाती है। यदि आप अपने नैतिकगुण की साधना नहीं करते या अपने नैतिक आदर्श में वृध्दि नहीं करते, या आपके कुविचार और बुरे तत्व नहीं निकाले गऐ हैं, यह आपको ऊपर नहीं उठने देगी। आप कैसे कह सकते हैं कि वे समान वस्तुऐं नहीं हैं। मैं एक परिहास सुनाता हूँ। यदि एक व्यक्ति, जिसमें साधारण मनुष्यों वाली सभी मानवीय भावनाऐं और इच्छाऐं हैं, को ऊपर उठने दिया जाता है और वह एक बुध्द बन जाता है - इसके बारे में सोचिए - क्या यह संभव है? एक बोधिसत्व29 को इतना सुंदर देख उसे कोई दुष्ट विचार आ सकता है। हो सकता है यह व्यक्ति एक बुध्द से विवाद कर बैठे क्योंकि उसकी ईष्या समाप्त नहीं की गई है। ऐसा कैसे होने दिया जा सकता है? तो इसके बारे में क्या किया जाना चाहिए? आपको साधारण व्यक्तियों वाले सभी कुविचार त्यागने होंगे - तभी आप ऊपर की ओर प्रगति कर सकते हैं।
दूसरे शब्दों में, आपको नैतिकगुण साधना पर ध्यान देना होगा और साधना का अभ्यास ब्रह्माण्ड की प्रकृति सत्य-करुणा-सहनशीलता के अनुसार करना होगा। आपको साधारण व्यक्तियों की इच्छाओं को, अपवित्र विचारों और बुरे कर्म करने की धारणा को पूर्णतया छोड़ना होगा। आपकी मनस्थिति के प्रत्येक थोड़े से सुधार के साथ, आपके शरीर से कुछ बुराईयां दूर कर दी जाऐंगी। साथ ही, आपको थोड़े बहुत दुख भी भोगने चाहिऐं और कुछ कठिनाईयां झेलनी चाहिऐं जिससे आपके कर्म कम हो सकें। तब आप कुछ ऊपर बढ़ सकते हैं, यानि ब्रह्माण्ड की प्रकृति आपका उतना ही विरोध नहीं करेगी। साधना आपके अपने प्रयत्नों पर निर्भर करती है, जबकि गोंग का रुपांतरण आपके गुरु द्वारा किया जाता है। गुरु आपको गोंग यन्त्र प्रणाली देते हैं जो आपके गोंग का विकास करती है, और यह गोंग यन्त्र प्रणाली क्रियाशील होगी। यह सद्गुण तत्व को आपके शरीर के बाहर गोंग में रुपान्तरित करती है। जैसे जैसे आप निरन्तर स्वयं की प्रगति करते हैं और साधना अभ्यास में ऊपर की ओर बढ़ते हैं, आपका गोंग स्तंभ (गोंग ज़ू) भी लगातार उच्च स्तरों की ओर भेदन करता रहेगा। एक अभ्यासी की भांति, आपके लिए साधारण व्यक्तियों के वातावरण में स्वयं की साधना करना तथा तपना आवश्यक है और धीरे-धीरे मोहभावों तथा विभिन्न इच्छाओं का समापन करना है। कई बार जिसे हमारा मानव समाज अच्छा समझता है, उच्च स्तरों के दृष्टिकोण से अक्सर बुरा होता है। इस प्रकार, लोग किसी व्यक्ति के लिए यह अच्छा समझते हैं कि वह साधारण व्यक्तियों के बीच और अधिक निजी लाभ की पूर्ति करे, जिससे बेहतर जीवन व्यतीत कर सके। महान ज्ञानप्राप्त प्राणियों की दृष्टि में, यह व्यक्ति बुरी स्थिति में है। इसमें बुरा क्या है? जितना अधिक कोई व्यक्ति लाभ अर्जित करता है, उतना ही वह दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण करता है। वह वे वस्तुऐं भी प्राप्त कर लेगा जिन पर उसका अधिकार नहीं है। इस व्यक्ति को प्रसिध्दि और लाभ का मोह होगा, जिससे सद्गुण की हानि कर लेगा। यदि आप नैतिकगुण साधना पर ध्यान दिये बिना ही अपना गोंग विकसित करना चाहते हैं, तो आपके गोंग में तनिक भी वृध्दि नहीं होगी।
साधक समुदाय का मत है कि व्यक्ति की मूल आत्मा लुप्त नहीं होती। अतीत में, लोग भले ही मानव मूल आत्मा के बारे में बात करना अंधविश्वास मानते हों। यह ज्ञातव्य है कि मानव शरीर पर भौतिकि के शोध ने अणु, परमाणु, प्रोटोन, इलेक्ट्रान, इससे भी आगे क्वार्क और न्युट्रिनो आदि का पता लगाया है। उस स्तर पर, एक सूक्ष्मदर्शी भी उनका पता नहीं लगा सकती। यद्यपि वे जीवन के मूल और पदार्थ के मूल से कहीं दूर हैं। सभी जानते हैं कि नाभिकीय फ्यूजन या फिशन घटित होने के लिए अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा और अत्यधिक उष्मा की आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति के शरीर में उपस्थित नाभिक उसकी मृत्यु के पश्चात सरलता से कैसे लुप्त हो सकते हैं? इसलिए, हमने पाया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, हमारे इस आयाम के केवल स्थूलतम आण्विक तत्व ही छूटकर अलग होते हैं, जबकि दूसरे आयामों के शरीरों का नाश नहीं होता। आप सब इसके बारे में सोचें : एक मानव शरीर सूक्ष्मदर्शी के द्वारा कैसा दिखाई पड़ता है। संपूर्ण मानव शरीर गतिशील है। जब आप यहां शांत बैठे हैं तो भी आपका शरीर गतिशील है। कोशिकाओं के अणु गतिशील हैं और पूरा शरीर इस प्रकार विरल है जैसे रेत का बना हो। एक मानव शरीर सूक्ष्मदर्शी में ठीक ऐसा ही दिखाई पड़ता है, और जैसा हमारी नंगी आंखों से दिखाई पड़ता है, यह उससे बिल्कुल भिन्न है। यह इसलिए क्योंकि ये दो मानवीय आखें आपके लिए भ्रामक छवि पैदा करती हैं, और आपको इन वस्तुओं को देखने से रोकती हैं। जब व्यक्ति का दिव्य नेत्र30 (त्येन मू) खुल जाता है, यह वस्तुओं को परावर्धित करके देख सकता है, वास्तव में यह एक मानवीय मूल प्रवृति है, जो अब दिव्य सिध्दि कहलाती है। यदि आप दिव्य सिध्दियां विकसित करना चाहते हैं, तो आपको अपनी मूल, सच्ची प्रकृति की ओर लौटना होगा और साधना के द्वारा वापस जाना होगा।
अब सद्गुण के बारे में बात करें। इसका क्या विशिष्ट संबंध है। हम इसका विस्तार से विश्लेषण करेंगे। हम मानवों का अनेकों आयामों में प्रत्येक में एक शरीर है। हम अभी मानव शरीर की जांच करें, तो विशालतम तत्व कोशिकाऐं हैं, और उनसे मानवीय भौतिक शरीर की रचना हुई है। यदि आप कोशिकाओं और अणुओं के मधय के अवकाश या परस्पर अणुओं के मध्य के अवकाश में प्रवेश कर सकें, तो आपको एक दूसरे आयाम में होने का अनुभव होगा। उस शरीर की संरचना का अस्तित्व कैसा है? निसंदेह, इसे समझने के लिए आप इस आयाम की धारणाओं का प्रयोग नहीं कर सकते, तथा आपका शरीर उस आयाम की संरचना के अस्तित्व के अनुरुप होना चाहिए। सबसे पहले तो दूसरे आयाम में आपका शरीर विशाल अथवा लघु रुप धारण कर सकता है। इस समय आपको यह भी असीमित आयाम जान पड़ेगा। यह एक सरल प्रकार के दूसरे आयामों का उदाहरण है जिनका अस्तित्व परस्पर एक ही स्थान पर है। अनेकों आयामों में से प्रत्येक में सभी का एक निर्दिष्ट शरीर है। एक निर्दिष्ट आयाम में मानव शरीर को घेरे हुए एक प्रभाव क्षेत्र है। यह किस प्रकार का प्रभाव क्षेत्र है। यह प्रभाव क्षेत्र सद्गुण है जिसका हमने उल्लेख किया है। सद्गुण एक श्वेत पदार्थ है और जैसा हम अतीत में सोचा करते थे, यह कोई आदर्शवादी या धारणात्मक वस्तु नहीं है - इसका वास्तविकता में एक प्रकार का भौतिक अस्तित्व है। इस प्रकार, पुराने समय में जब वृध्द लोग सद्गुण के संचयन अथवा हानि के बारे में कहते थे, तो उनका कहना बहुत कुछ विचारवान था। यह सद्गुण एक प्रभाव क्षेत्र उत्पन्न करता है जो व्यक्ति के शरीर को चारों ओर से घेरे रहता है। अतीत में, ताओ विचारधारा का मत था कि गुरु शिष्य को चुनता है न कि शिष्य गुरु को। इसका क्या अर्थ है? एक गुरु जांच करता था कि इस शिष्य के शरीर में अत्यधिक मात्रा में सद्गुण विद्यमान है अथवा नहीं। यदि इस शिष्य के पास प्रर्याप्त सद्गुण होता था, तो उसके लिए साधना का अभ्यास सरल होगा। अन्यथा, वह इसे सरलता से पूर्ण नहीं कर पाएगा, और उसे उच्च स्तरों की ओर गोंग विकसित करने में बहुत कठिनाई होगी।
इसी के साथ, एक काले पदार्थ का अस्तित्व है जिसे हम "कर्म" कहते हैं और बुध्दमत में यह "दुष्कर्म" कहलाता है। इन श्वेत और काले पदार्थों का अस्तित्व साथ साथ ही होता है। इन दोनो पदार्थों के बीच क्या संबंध है? हम उस सद्गुण को दुख भोग कर, कठिनाईयां झेल कर और अच्छे कर्म करने से प्राप्त करते हैं; काले पदार्थ का संचय बुरे कार्य करने से और बुराईयों में लिप्त होने से या लोगों को डराने धमकाने से होता है। वर्तमान में, कुछ लोग न केवल सभी कुछ लाभ की दृष्टि से देखते हैं, बल्कि वे सभी प्रकार के अनिष्ट करने पर उतारु हैं। वे धन के लिए सभी प्रकार के अनिष्ट कार्य करेंगे, और हत्या तक कर देंगे या हत्या के लिए किसी को धन देंगे, अनैतिक संबंधों में लिप्त होंगे और नशीली दवाओं का सेवन करेंगे। वे सभी प्रकार के दुष्कर्म करते हैं। जब कोई व्यक्ति अनिष्ट कार्य करता है तो उसे सद्गुण की हानि होती है। व्यक्ति को सद्गुण की हानि किस प्रकार होती है? जब कोई व्यक्ति दूसरे पर चीखता चिल्लाता है, तो उसे लगता है उसने बाजी मार ली है और सुखद अनुभव करता है। इस ब्रह्माण्ड में एक नियम है -"हानि नहीं तो लाभ नहीं।" लाभ प्राप्त करने के लिए, कुछ खोना आवश्यक है। यदि आप कुछ खोना नहीं चाहते, आपको हानि के लिए बाध्य कर दिया जाऐगा। यह भूमिका कौन निभाता है? यह ब्रह्माण्ड की प्रकृति ही है जो यह भूमिका धारण कर लेती है। इस प्रकार, यह असंभव है कि आप केवल लाभ की प्राप्ति की कामना करते रहें। तब क्या होगा? जब वह किसी व्यक्ति पर चीखता चिल्लाता है या उसे धमकाता है, तो वह अपना सद्गुण उस दूसरे व्यक्ति पर फेंक रहा होता है। चूंकि दूसरा व्यक्ति वह पक्ष है जिसे लगता है उसके साथ अन्याय हुआ है तथा उसने कुछ खोया है और पीड़ित हुआ है, उसकी उसी प्रकार भरपाई होती है। जब एक व्यक्ति इधर चीख चिल्ला रहा होता है, उसके चिल्लाने से उसके अपने आयाम क्षेत्र से सद्गुण का एक अंश दूसरे व्यक्ति के पास चला जाता है। जितना अधिक वह चिल्लाता है इतना अधिक सद्गुण वह उसे देता है। दूसरे के मारने पीटने या धमकाने पर भी ऐसा ही होता है। जब कोई व्यक्ति किसी को मारता पीटता है, वह अपने सद्गुण का एक अंश दूसरे को दे देगा, जो निर्भर करता है, उसने दूसरे को कितना पीटा। एक साधारण व्यक्ति इस नियम को इस स्तर पर नहीं देख सकता। अपमानित अनुभव कर, दूसरा व्यक्ति इसे सहन नहीं कर पाता और सोचता है, "क्योंकि तुमने मुझे पीटा है, मुझे भी बदला लेना चाहिए।" "धूम" वह उस व्यक्ति को वापस मारता है और सद्गुण वापस कर देता है। किसी ने न कुछ पाया न ही कुछ खोया। यदि वह सोचे, "तुमने तो मुझे एक ही बार मारा, मुझे तुमको दो बार मारना चाहिए। अन्यथा, मेरा प्रतिशोध पूरा नहीं होगा।" वह उसे दोबारा मारेगा, और सद्गुण का एक और अंश दूसरे व्यक्ति को दे दिया जाऐगा।
यह सद्गुण इतना अमूल्य क्यों है? सद्गुण के रुपान्तरण में किस प्रकार का पारस्परिक संबंध है? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार: ''द होने पर, मनुष्य को इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में अवश्य फल प्राप्ति होगी।'' उसे क्या प्राप्त होगा? अत्यधिक सद्गुण होने पर, वह एक उच्च अधिकारी बन सकता है या बहुत सा धन अर्जित कर सकता है। वह जो चाहे प्राप्त कर सकता है, और वह उसे इस सद्गुण के बदले मिल जाएगा। धार्मिक मान्यताओं का यह भी कथन है कि यदि व्यक्ति के पास लेश मात्र भी सद्गुण नहीं है तो उसके शरीर और आत्मा दोनों का विनाश हो जाएगा। उसकी मूल आत्मा का विनाश हो जाएगा, और मृत्यु उपरान्त वह पूर्णत: मृत हो जाऐगा और कुछ शेष नहीं बचेगा। हमारे साधक समुदाय में, यद्यपि, हमारा मानना है कि सद्गुण को सीधे गोंग में रुपान्तरित किया जा सकता है।
हम यह बताऐंगे कि सद्गुण को गोंग में किस प्रकार रुपान्तरित किया जाता है। साधक समुदाय में एक कथन है: "साधना व्यक्ति के अपने प्रयत्नों पर आधारित होती है, जबकि गोंग का रुपान्तरण उसके गुरु द्वारा किया जाता है।" तब भी कुछ लोग "जमा की हुई औषधिक जड़ी बूटियों31 का उपयोग कर शरीर को तपाने की भटटी बना कर तान32 बनाने" और मानसिक क्रियाओं की बातें करते हैं और वे इन्हें बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। मैं आपको बताना चाहूँगा कि ये बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं हैं, और यह एक मोहभाव होगा यदि आप इनके बारे में अत्यधिक सोचते हैं। यदि आप इसके बारे में अत्यधिक सोचते हैं तो क्या आपको इसे पाने की इच्छा का मोह नहीं हैं? साधना व्यक्ति के अपने प्रयत्नों पर आधारित होती है, जबकि गोंग का रुपांतरण उसके गुरु द्वारा किया जाता है। यदि आपकी यह इच्छा है तो यह संतोषप्रद है। वास्तव में यह गुरु करते हैं, क्योंकि आप यह करने के लिए बिल्कुल असमर्थ हैं। आपका एक साधारण व्यक्ति का शरीर होते हुए, आप इसे उच्च शक्ति पदार्थ से बने उच्च जीवन के शरीर में कैसे रुपान्तरित कर सकते हैं? यह बिल्कुल असंभव है और एक उपहास जैसा लगता है। दूसरे आयामों में मानव शरीर की रुपान्तरण प्रक्रिया बहुत जटिल और पेचीदा है। आप इस प्रकार के कार्य बिल्कुल नहीं कर सकते।
गुरु आप को क्या देते हैं? वे आपको गोंग यन्त्र प्रणाली देते हैं जो आपके गोंग का विकास करती है। चूंकि सद्गुण का अस्तित्व व्यक्ति के शरीर के बाहर होता है, व्यक्ति का वास्तविक गोंग सद्गुण से उत्पन्न होता है। व्यक्ति के स्तर की ऊँचाई और गोंग सामर्थ्य की शक्ति दोनों सद्गुण से उत्पन्न होते हैं। गुरु आपके सद्गुण को गोंग में रुपान्तरित करते हैं, जो एक घुमावदार रुप में ऊपर की ओर वृध्दि करता है। गोंग जो वास्तव में व्यक्ति का स्तर निर्धारित करता है, व्यक्ति के शरीर के बाहर विकसित होता है, और यह एक घुमावदार रुप में ऊपर की ओर वृध्दि करता है जो अन्तत: व्यक्ति के सिर के ऊपर की ओर वृध्दि करने पर एक गोंग स्तंभ का आकार ले लेता है। इस व्यक्ति के गोंग स्तंभ की ऊँचाई पर एक ही दृष्टि डाल कर, उसके गोंग के स्तर का पता लगाया जा सकता है। यह व्यक्ति का स्तर और उसकी फल पदवि दर्शाता है जैसा कि बुध्दमत में उल्लेख है। ध्यान अवस्था मे बैठने पर, कुछ लोगों की मूल आत्मा शरीर छोड़ कर एक निश्चित स्तर पर पहुँच सकती है। प्रयत्न करने पर भी, उसकी मूल आत्मा और आगे नहीं बढ़ पाती, और यह ऊपर बढ़ने का साहस भी नहीं कर पाती। चूंकि यह अपने गोंग स्तंभ पर विराजमान होकर ऊपर उठती है, यह केवल उसी स्तर पर पहुँच सकती है। क्योंकि उसका गोंग स्तर केवल उतना ही ऊँचा है, यह उससे और ऊपर नहीं बढ़ सकती। यह विषय फल पदवि का है जिसका बुध्दमत में उल्लेख है।
नैतिकगुण स्तर को मापने के लिए एक मानक भी है। मानक और गोंग स्तंभ का अस्तित्व एक ही आयाम में नहीं है, परन्तु एक साथ अवश्य है। आपकी नैतिकगुण साधना ने अवश्य ही प्रगति कर ली है, यदि उदाहरण के लिए, जब साधारण लोगों के बीच में कोई आप को बुरा भला कहता है, आप एक भी शब्द नहीं कहते और बहुत शांत रहते हैं, या जब कोई आप पर मुष्टि प्रहार करता है, आप एक शब्द भी नहीं कहते और मुस्कुराहट के साथ अविचलित रहते हैं। आपका नैतिकगुण स्तर अवश्य ही बहुत ऊँचा है। तो एक अभ्यासी की भांति, आपको क्या प्राप्त होना चाहिए? क्या आपको गोंग प्राप्त नहीं होने जा रहा है? जब आपके नैतिकगुण में वृध्दि होती है, आप का गोंग बढ़ जाता है। एक व्यक्ति का गोंग स्तर उसके नैतिकगुण स्तर के बराबर होता है, और यह एक अटल सत्य है। गत वर्षों में, लोग चीगोंग का अभ्यास यद्यपि घरों या उद्यानों में करते थे, वे बहुत परिश्रम और एकाग्रता से इसे करते थे, और अच्छा अभ्यास करते थे। किन्तु एक बार घर से बाहर निकलने पर, वे भिन्न प्रकार से आचरण करते और अपने ही तरीके से चलते, साधारण लोगों के बीच प्रसिध्दि और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा और संघर्ष करते। वे अपना गोंग कैसे बढ़ा सकते थे? कुछ लोग एक लंबी अवधि के अभ्यास के पश्चात भी रोग मुक्त क्यों नहीं हो पाते? चीगोंग साधना अभ्यास पध्दति है और दिव्य है, यह साधारण लोगों के व्यायामों से अलग श्रेणी में है। शारीरिक रोगमुक्ति और गोंग की वृध्दि के लिए व्यक्ति को नैतिकगुण पर ध्यान देना आवश्यक है।
कुछ लोग जमा की हुई औषधिक जड़ीबूटियों का उपयोग कर शरीर को तपाने वाली भटटी बनाकर तान बनाने में विश्वास करते हैं, और वे सोचते हैं कि तान ही गोंग है। जबकि यह नहीं है। यह तान शक्ति का केवल एक अंश ही एकत्रित करता है, और इसमें संपूर्ण शक्ति का समावेश नहीं है। तान किस प्रकार का पदार्थ है? जैसे ज्ञातव्य है कि जीवन के संवर्धन के लिए हमारे पास कुछ और भी वस्तुऐं हैं, और हमारे शरीर दिव्य सिध्दियां तथा और भी सिध्दियां विकसित करेंगें, जिनमें से अधिकतम बंधित कर दी जाती हैं और उनके उपयोग की अनुमति नहीं होती है। अनेकों दिव्य सिध्दियां होती हैं - लगभग दस हजार तक। जैसे ही एक विकसित होती है, उसे बंधित कर दिया जाता है। उनके प्रकट होने की अनुमति क्यों नहीं है? इसका औचित्य यह है कि साधारण मानव समाज में आपके द्वारा इनका अनुचित प्रयोग न हो सके। आपको साधारण मानव समाज में अकारण विघ्न डालने की अनुमति नहीं है, और न ही आपको अपनी सिध्दियों की साधारण मानव समाज में अकारण प्रदर्शन की अनुमति है। यह इसलिए है क्योंकि ऐसा करने से साधारण मानव समाज की स्थिति में विघ्न आ सकता है। अनेक लोग साधना अभ्यास ज्ञानोदय के मार्ग से करते हैं। यदि आप अपनी समस्त सिध्दियां उनको प्रदर्शित कर दें, वे देखेंगे कि यह सब वास्तविक है और सभी साधना अभ्यास करने आ जाऐंगें। लोग जिन्होने अक्षम्य कुकर्म किये हैं वे भी साधना अभ्यास करने आ जाऐंगे, और इसकी अनुमति नहीं है। आपके द्वारा इस प्रकार के प्रदर्शन की अनुमति नहीं है। साथ ही आप सरलता से कोई दुष्कर्म कर सकते हैं क्योंकि आप वस्तुओं का पूर्व नियोजित संबंध और वास्तविक प्रकृति नहीं देख सकते। आप समझते हैं कि आप एक अच्छा कार्य कर रहे हैं, जबकि यह एक बुरा कार्य हो सकता है। इसलिए, आपको उनके प्रयोग की अनुमति नहीं है, क्योंकि एक बार आप बुरा कार्य करते हैं, आपका स्तर निम्न कर दिया जाऐगा और आपकी साधना व्यर्थ जाऐगी। इस कारण, अनेक दिव्य सिध्दियां बंधित कर दी जाती हैं। उससे क्या होगा? उस समय जब व्यक्ति गोंग खुलने की स्थिति (काईगोंग) तक पहुंचता है और उसे ज्ञान प्राप्त होता है, यह तान एक बम की तरह विस्फोट करेगा और सभी दिव्य सिध्दियों को, शरीर के सभी बंधों को, और सैकड़ों शक्तिमार्गों को खोल देगा। एक धमाके के साथ सभी कुछ खुल जाऐगा। यही है जिसके लिए तान का उपयोग होता है। मृत्यु होने पर, एक भिक्षु के क्रियाक्रम के उपरान्त "सरीर" शेष रहता है। लोग कहते हैं कि ये हड्डियां और दांत हैं। तो फिर साधारण लोगों का "सरीर" क्यों नही होता? वे केवल विस्फोटित तान हैं, जिनकी शक्ति मुक्त हो चुकी है। उनमें दूसरे आयामों के पदार्थों का समावेश अत्यधिक मात्रा में होता है। अन्तत:, उनका भी भौतिक अस्तित्व है, किन्तु उपयोग कुछ नहीं। लोग उन्हें अब अति मूल्यवान वस्तु समझ कर ले जाते हैं। उनमें शक्ति होती है, और चमकदार व बहुत कठोर होते हैं। यही उनकी वास्तविकता है।
गोंग बढ़ा पाने में असफल होने का एक और कारण भी है। जो है, उच्च स्तरों के फा को जाने बिना, व्यक्ति साधना अभ्यास में प्रगति नहीं कर सकता। इसका क्या अर्थ है? जैसा मैने अभी उल्लेख किया, कई लोग अनेक चीगोंग पध्दतियों का अभ्यास कर चुके हैं। मैं आपको बताना चाहूँगा कि आप चाहे जितना भी अध्ययन कर लें, यह तब भी व्यर्थ होगा। आप रहेंगे एक प्राथमिक कक्षा के ही छात्र - साधना अभ्यास में प्राथमिक कक्षा के छात्र। वे सभी निम्न स्तर के नियम हैं। ऐसे निम्न स्तर के नियम आपके उच्च स्तरों की ओर साधना अभ्यास के मार्गदर्शन में कोई भूमिका नहीं निभा सकते। यदि आप कॉलेज में प्राथमिक कक्षा की पाठयपुस्तकें पढ़ते हैं, आप प्राथमिक कक्षा के छात्र ही रहेंगे। चाहे आप कितनी भी पढ़ें, सब व्यर्थ जाऐगा। बल्कि, आपको और हानि ही होगी। विभिन्न स्तरों का फा भिन्न होता है, और फा विभिन्न स्तरों पर विभिन्न मार्गदर्शकों की भूमिका निभाता है। इस प्रकार, निम्न स्तर के नियम आपके साधना अभ्यास में उच्चस्तरों की ओर मार्गदर्शन नहीं कर सकते। जिनके बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे वे सब साधना अभ्यास के उच्च स्तरों के नियम हैं। मैं शिक्षा में विभिन्न स्तरों की वस्तुओं को सम्मिलित कर रहा हूँ। वे इस प्रकार आपके आने वाले साधना अभ्यास में सदैव एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाऐंगे। मेरे पास अनेक पुस्तकें, आडियो टेप तथा विडियो टेप हैं। आप पाऐंगे कि उन्हें एक बार देखने और सुनने के बाद, जब आप उन्हें कुछ बाद में देखते और सुनते हैं वे तब भी आपका मार्गदर्शन करते हैं। आप भी निरन्तर अपना विकास कर रहे हैं, और वे निरन्तर आपका मार्गदर्शन करते हैं - यह फा है। उपरोक्त दो कारण हैं जिससे गोंग नहीं बढ़ पाता। उच्च स्तरों की जानकारी के बिना, साधना अभ्यास नहीं किया जा सकता। अपने नैतिकगुण और आन्तरिक प्रकृति की साधना के बिना, व्यक्ति का गोंग नहीं बढ़ सकता। ये दो कारण है।
फालुन दाफा की विशिष्टताऐं
हमारा फालुन दाफा बुध्द विचारधारा की चौरासी हजार साधना पध्दतियों में से एक है। इस मानव सभ्यता के ऐतिहासिक काल में इसे कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया। एक पूर्व ऐतिहासिक काल में, यद्यपि, एक बार इसका उपयोग मानव समुदाय का उध्दार करने में बहुतायात से किया गया था। इस अन्तिम महाविनाशकाल33 की अन्तिम अवधि में, मैं इसे पुन: सार्वजनिक कर रहा हूँ। इसलिए, यह अत्यन्त मूल्यवान है। मैं सद्गुण को सीधे गोंग में रुपान्तरित करने के तरीके की बात कर चुका हूँ। गोंग, वास्तव में, अभ्यास द्वारा प्राप्त नहीं होता। इसकी प्राप्ति साधना द्वारा होती है। कई लोग अपने गोंग को बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं और केवल अभ्यास करने की विधि पर ही ध्यान देते हैं, इस बात की परवाह किये बिना कि साधना कैसे की जाए। वास्तव में, गोंग पूर्णत: नैतिकगुण साधना के द्वारा प्राप्त किया जाता है। तब हम यहां व्यायाम भी क्यों सिखाते हैं? पहले, मैं यह बताना चाहूँगा कि एक भिक्षु व्यायामों का अभ्यास क्यों नहीं करता। वह केवल ध्यान में बैठता है, शास्त्रों का उच्चारण करता है, नैतिकगुण की साधना करता है, और तब उसका गोंग बढ़ जाता है। वह गोंग बढ़ाता है जिससे उसके स्तर में वृध्दि होती है। चूंकि शाक्यमुनी ने लोगों को जगत में सब कुछ त्याग देने की शिक्षा दी थी - यहां तक उनके शरीर भी, इसलिए शारीरिक व्यायाम अनावश्यक हो गए। ताओ विचारधारा सभी प्राणियों को मोक्ष नहीं दिलाती। यह विभिन्न मानसिकताओं और स्तरों वाले सभी प्रकार के लोगों का सामना नहीं करती, जिनमें से कुछ अधिक स्वार्थी हों और कुछ कम स्वार्थी। यह अपने शिष्यों का चुनाव करती है। यदि तीन शिष्यों का चुनाव होता है, उनमें से केवल एक ही सच्ची शिक्षा ग्रहण करता है। इसके लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह शिष्य बहुत सदगुणी है, बहुत अच्छा है और मार्ग भ्रमित नहीं होगा। यह इस प्रकार तकनीकि वस्तुओं की शिक्षा जैसे जीवन का संवर्धन और अलौकिक शक्तियां, कौशल, आदि पर बल देती है। इसके लिए कुछ शारीरिक व्यायाम आवश्यक हैं।
फालुन दाफा भी मन और शरीर की साधना अभ्यास पध्दति है, और इसमें व्यायाम आवश्यक हैं। एक ओर, व्यायामों का उपयोग दिव्य सिध्दियों को सुदृढ़ करने के लिए होता है। ''सुदृढ़ करना'' क्या होता है? यह आपके शक्तिशाली गोंग सामर्थ्य द्वारा आपकी दिव्य सिध्दियों का प्रबलन है, जिससे वे निरन्तर और अधिक शक्तिवान बन सकें। दूसरी ओर, आपके शरीर में कई चेतन सत्ताओं का विकास किया जाना आवश्यक है। उच्च स्तरीय साधना अभ्यास पध्दति में, ताओ विचारधारा में अमर शिशु (युआन यिंग) के जन्म की आवश्यकता होती है, जबकि बुध्द विचारधारा में वज्र के अविनाशवान शरीर की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, अनेक अलौकिक सिध्दियां विकसित की जानी चाहिऐं। इन वस्तुओं का विकास शारीरिक व्यायामों द्वारा किया जाना आवश्यक है, और इन्हीं का हमारे व्यायामों द्वारा संवर्धन होता है। मन और शरीर की एक संपूर्ण साधना अभ्यास पध्दति के लिए साधना और अभ्यास दोनो आवश्यक होते हैं। मुझे लगता है कि आप सब अब तक समझ गए होंगे कि गोंग की उत्पति कैसे होती है। गोंग जो वास्तव में आपकी उपलब्धि के स्तर को निर्धारित करता है, उसका विकास अभ्यास द्वारा बिल्कुल नहीं किया जाता, बल्कि साधना द्वारा किया जाता है। साधारण लोगों के बीच अपनी साधना में अपने नैतिकगुण में वृध्दि करने और ब्रह्माण्ड की प्रकृति के साथ आत्मसात होने से ब्रह्माण्ड की प्रकृति आपके लिए बाधा उत्पन्न नहीं करेगी, उसके पश्चात आपको ऊपर उठने की अनुमति होगी। आपका सद्गुण तब गोंग में रुपान्तरित होना आरंभ हो जाऐगा। जैसे-जैसे आपके नैतिकगुण स्तर में सुधार आता है, वैसे ही आपके गोंग की वृध्दि होती है। इसका इस प्रकार का संबंध है।
हमारी मन और शरीर दोनो की सच्ची साधना अभ्यास पध्दति है। गोंग जिसकी हम साधना करते हैं शरीर की प्रत्येक कोशिका में संचित किया जाता है, और उच्च शक्ति तत्व के गोंग को एक अत्यन्त सूक्ष्म स्तर पर पदार्थ के मूल सूक्ष्म कणों में भी संचित किया जाता है। जैसे जैसे आपका गोंग सामर्थ्य विकास करता है, गोंग के घनत्व में और शक्ति में भी वृध्दि होगी। ऐसा उच्च शक्ति तत्व प्रज्ञावान होता है। क्योंकि यह मानव शरीर की प्रत्येक कोशिका में जीवन के मूल तत्व तक संचित होता है, यह धीरे-धीरे आपके शरीर में कोशिकाओं के समान स्वरुप धारण कर लेगा, यह समान अणुओं की संरचना और नाभिक का स्वरुप धारण कर लेगा। हालांकि, इसका मूल तत्व बदल चुका है, क्योंकि यह शरीर अब मूल भौतिक कोशिकाओं से निर्मित नहीं रह गया है। क्या आप पंच तत्वों को पार नहीं कर गये हैं? निश्चित ही, आपका साधना अभ्यास अभी समाप्त नहीं हुआ है, और आपको अब भी साधारण लोगों के बीच साधना के अभ्यास की आवश्यकता है। इसलिए, सतह पर आप अब भी एक साधारण व्यक्ति ही लगेंगे। केवल एक भिन्नता होगी कि आप अपनी उम्र के दूसरे लोगों से अधिक युवा दिखाई देंगे। निश्चित रुप से, आपके शरीर की बुरी वस्तुऐं, जिनमें रोग शामिल हैं, उन्हे पहले हटाना होगा, किन्तु हम यहां रोगों का उपचार नहीं करते। हम आपके शरीर की शुध्दि कर रहे हैं, और इसके लिए शब्द प्रयोग "रोग उपचार" भी नहीं है। हम इसे केवल "शरीर की शुध्दि" कहते हैं, और हम सच्चे अभ्यासियों के शरीरों का आन्तरिक शोधन करते हैं। कुछ लोग यहां केवल रोग उपचार के लिए आते हैं। जो लोग बहुत बीमार हैं, उन्हें हम कक्षाओं में आने की अनुमति नहीं देते क्योंकि वे बीमारी ठीक किये जाने का मोहभाव और बीमार होने की मनोदशा नहीं छोड़ सकते। यदि एक व्यक्ति बहुत बीमार है और बहुत परेशानी में है, क्या वह इसका विचार छोड़ सकता है? यह व्यक्ति साधना अभ्यास करने में असमर्थ है। हम समय समय पर बलपूर्वक कहते रहे हैं कि हम गंभीर रुप से बीमार रोगियों की भर्ती नहीं करते। यह साधना अभ्यास है, जो उससे कहीं दूर है जिसके बारे में वे सोचते हैं। वे वह सब करने के लिए अन्य चीगोंग गुरु ढूंढ सकते हैं। निसंदेह, कई अभ्यासी रोगग्रस्त होते हैं। क्योंकि आप सच्चे अभ्यासी हैं, हम आपके लिए इन वस्तुओं को संभालेंगे।
कुछ समय साधना अभ्यास करते रहने के बाद, हमारे फालुन दाफा अभ्यासी शक्लसूरत में बहुत कुछ अलग दिखाई देने लगते हैं। उनकी त्वचा कोमल और गुलाबी हो जाती है। वृध्द लोगों में, झुर्रियां कम या नाममात्र के लिए रह जाती हैं, जो एक साधारण घटना है। मैं यहां कोई अविश्वस्नीय बात नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि यहां बैठे हमारे कई अनुभवी अभ्यासी इस स्थिति से परिचित हैं। इसके अलावा, वृध्द महिलाओं का मासिक धर्म फिर से आरंभ हो जाऐगा क्योंकि एक मन और शरीर के साधना अभ्यास में आवश्यक है कि मासिक धर्म शरीर का संवर्धन करे। मासिक धर्म होगा, किन्तु मासिक स्राव अधिक नहीं होगा। वर्तमान में, उतना थोड़ा सा ही पर्याप्त होगा। यह भी एक साधारण घटना है। अन्यथा, इसके बिना वे अपने शरीर की साधना कैसे कर पाऐंगी। वैसा ही पुरुषों के लिए होगा : वृध्द तथा युवा सभी अनुभव करेंगे कि संपूर्ण शरीर हल्का हो गया है। जो सच्चे अभ्यासी हैं, वे इस रुपान्तरण का अनुभव करेंगे।
हमारी अभ्यास पध्दति साधना द्वारा जो विकसित करती है वह बहुत प्रगाढ़ है, उन अभ्यास पध्दतियों के विपरीत जिनके व्यायाम पशुओं की नकल पर आधारित हैं। इस अभ्यास पध्दति द्वारा साधना अति विराट है। वे सभी नियम जिनका शाक्यमुनि और लाओ ज़34 ने अपने समय में उल्लेख किया था, हमारी आकाशगंगा के अंदर के नियमों तक सीमित थे। हमारा फालुन दाफा साधना द्वारा क्या विकसित करता है? हमारी साधना पध्दति ब्रह्माण्ड के निरन्तर विकास के नियमों पर आधारित है, और यह ब्रह्माण्ड की उच्चतम प्रकृति के आदर्श, सत्य-करुणा-सहनशीलता द्वारा दिग्दर्शित है। हम इतने विराट विषय की साधना करते हैं जो ब्रह्माण्ड की साधना के समकक्ष हैं।
हमारे फालुन दाफा का एक और अत्यन्त अनुपम, अति विशिष्ट लक्षण हैं जो किसी भी दूसरी अभ्यास पध्दति से भिन्न हैं। वर्तमान में, समाज में प्रचलित सभी चीगोंग अभ्यास पध्दतियां तान की साधना या तान अभ्यास के पथ पर आधारित हैं। चीगोंग अभ्यास जिनमें तान की साधना की जाती है, उसमें साधारण लोगों के बीच रहते हुए गोंग खोलने की अवस्था और ज्ञान प्राप्ति तक पहुंचना बहुत कठिन होता है। हमारा फालुन दाफा तान की साधना नहीं करता। हमारी अभ्यास पध्दति उदर के निचले हिस्से में एक फालुन का संवर्धन करती है। कक्षा में मैं स्वयं इसे अभ्यासियों के लिए स्थापित करता हूँ। जब मैं फालुन दाफा सिखा रहा होता हूँ, हम क्रम से इसे सभी के लिए स्थापित करते हैं। कुछ लोग इसका अनुभव कर सकते हैं जबकि कुछ नहीं, अधिकतर लोग इसे अनुभव कर सकते हैं। यह इसलिए क्योंकि लोगों की शारीरिक अवस्थाऐं भिन्न होती हैं। हम फालुन की साधना करते हैं न कि तान की। फालुन ब्रह्माण्ड का एक सूक्ष्म स्वरुप है जिसमें ब्रह्माण्ड के सभी सामर्थ्य समाहित हैं, और यह स्वचालित कार्य कर सकता है व आर्वतन कर सकता है। यह आपके उदर के निचले भाग में निरन्तर आर्वतन करता रहेगा। एक बार इसके आपके शरीर में स्थापित किये जाने पर, यह सालों साल नहीं रुकेगा और इसी प्रकार घूमता रहेगा। घड़ी की दिशा में घूमते हुए, यह स्वचालित तरीके से विश्व से शक्ति सोख सकता है। इसके अलावा, आपके शरीर के प्रत्येक भाग के रुपान्तरण के लिए आवश्यक शक्ति की पूर्ति के लिए यह स्वयं शक्ति को रुपान्तरित कर सकता है। साथ ही, घड़ी की विपरीत दिशा में घूमते हुए यह शक्ति को निष्कासित करता है, जिससे अवांछनीय तत्व आपके शरीर से बाहर निकल जाते हैं। जब यह शक्ति निष्कासित करता है, तो शक्ति बहुत दूर तक छूटती है, और इसके बाद पुन: यह नई शक्ति अन्दर ले लेता है। छोड़ी गई शक्ति आपके आस पास के लोगों के लिए लाभप्रद हो सकती है। बुध्द विचारधारा स्वयं उध्दार तथा सभी चेतन प्राणियों का भी उध्दार सिखाती है। इसके साथ और लोग भी लाभन्वित हो सकते हैं, तथा आप अनजाने ही दूसरे लोगों के शरीर ठीक कर सकते हैं, और उन्हें रोग मुक्त कर सकते हैं, इत्यादि। निश्चित ही, शक्ति का क्षय नहीं होता। जब फालुन घड़ी की दिशा में आर्वतन करता है, यह शक्ति को वापस समेट सकता है क्योंकि यह निरन्तर आर्वतन करता है।
कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है, "फालुन निरन्तर आवर्तन क्यों करता है?" और भी लोग हैं जो मुझसे पूछते हैं, कि "यह कैसे आर्वतन कर सकता है? इसका क्या कारण है?" यह समझना सरल है कि जब शक्ति एकत्रित होती है तो तान का निर्माण हो सकता है, किन्तु यह अविश्वसनीय लगता है कि फालुन आर्वतन करता है। मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। ब्रह्माण्ड गतिमान है, तथा ब्रह्माण्ड की सभी आकाशगंगाऐं और नीहारिकाऐं भी गतिमान हैं। नौ ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, तथा पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूमती है। इसके बारे में आप सब सोचें, उन्हें कौन धकेल रहा है? उन्हें किसने बल प्रदान किया है? एक साधारण व्यक्ति की मनोवृति से आप इसे नहीं समझ सकते, क्योंकि यह इसी प्रकार की आवर्तन प्रणाली है। यही हमारे फालुन के लिए भी सत्य है, कि यह स्वयं आवर्तन करता है। व्यायाम करने के समय में वृध्दि होने से, इसने साधारण लोगों के लिए साधारण जीवन-यापन की परिस्थितियों में साधना के अभ्यास की समस्या को हल कर दिया है। इसमें कैसे वृध्दि होती है? क्योंकि यह निरन्तर आवर्तन करता है, यह लगातार विश्व से शक्ति सोखता और रुपान्तरित करता रहता है। जब आप कार्य करने जाते हैं, तब यह आपका संवर्धन कर रहा होता है। निश्चित ही, फालुन के अलावा, हम आपके शरीर में अनेक शक्ति प्रणालियां व यन्त्र भी स्थापित करेंगे जो, फालुन के साथ-साथ, स्वचालित रुप से आर्वतन करेंगे और आपका रुपान्तरण करेंगे। इसलिए, यह गोंग पूरी तरह स्वचालित रुप से लोगों का रुपान्तरण करता है। इस प्रकार, इसका अर्थ है "गोंग अभ्यासियों का संवर्धन करता है", जिसे "फा अभ्यासियों का संवर्धन करता है" भी कहते हैं। जब आप अभ्यास नहीं कर रहे होते हैं गोंग आपका संवर्धन करता है, ठीक उसी प्रकार जब आप अभ्यास कर रहे होते हैं यह तब भी आपका संवर्धन करता है। खाना खाते हुए, सोते हुए, या कार्य करते हुए आप निरन्तर गोंग द्वारा रुपान्तरित हो रहे होते हैं। आप व्यायाम किस लिए करते हैं? आप व्यायाम फालुन को सुदृढ़ करने तथा इन सभी शक्ति यन्त्रों और प्रणालियों को, जो मैने प्रदान की हैं, प्रबल करने के लिए करते हैं। जब व्यक्ति उच्च स्तरों पर साधना करता है, यह पूर्णत: वूवेइ 35 की दशा में होनी चाहिए, तथा व्यायामों की क्रियाऐं भी यन्त्रों का अनुसरण करती हैं। मन से कोई निर्देशन नहीं होता, और न ही किसी श्वास पध्दति आदि का प्रयोग करना चाहिए।
हम अभ्यास करने के लिए समय अथवा स्थान को महत्व नहीं देते। कुछ लोग पूछते हैं, "अभ्यास के लिए उचित समय क्या है? मध्यरात्रि, सुबह या दोपहर?" हम व्यायामों को करने के लिए समय को महत्व नहीं देते। जब आप मध्यरात्रि में अभ्यास नहीं कर रहे होते गोंग आपका संवर्धन करता है। जब आप सुबह अभ्यास नहीं कर रहे होते, गोंग आपका संवर्धन करता है। जब आप सोते हैं, गोंग आपका तब भी संवर्धन कर रहा होता है। जब आप चल रहे होते हैं, गोंग तब भी आपका संवर्धन करता है। गोंग तब भी आपका सवंर्धन करता है जब आप कार्य कर रहे होते हैं। क्या इससे आपके अभ्यास करने के समय में बहुत कमी नहीं आ जाती? आपमें से अनेक वास्तव में ताओ की प्राप्ति के लिए हृदय रखते है, जो निश्चित ही, साधना अभ्यास का प्रयोजन है। साधना अभ्यास का उच्चतम ध्येय ताओ की प्राप्ति तथा साधना को पूर्ण करना है। यद्यपि कुछ लोगों के जीवन में सीमित समय ही शेष रह गया है। उनके जीवन के अब गिने चुने वर्ष ही शेष हैं जो हो सकता है कि साधना के लिए समुचित न हों। हमारा फालुन दाफा इस समस्या को हल कर सकता है तथा अभ्यास की समयावधि को कम कर सकता है। साथ ही, यह मन और शरीर का साधना अभ्यास भी है। जब आप निरन्तर साधना का अभ्यास करते हैं, आप लगातार अपने जीवन में वृध्दि करते रहेंगे। नियमित अभ्यास से, आपके जीवन में लगातार वृध्दि होती रहेगी। वे वृध्द व्यक्ति जिनके जन्मजात गुण अच्छे हैं उनके पास अभ्यास के लिए समुचित समय रहेगा। यहां यद्यपि एक मानदण्ड है, कि आपके पूर्व नियोजित जीवन से अधिक बढ़ाया गया जीवन पूर्णत: आपके अभ्यास के लिए आरक्षित है। यदि आपका मन तनिक भी पथ भ्रमित होता है, तो आपके जीवन को खतरा हो जाएगा क्योंकि आपका जीवनकाल कहीं पहले ही पूर्ण हो जाना चाहिए था। आपके साथ ऐसी बाधा तब तक रहेगी जब तक आप पर-त्रिलोक-फा साधना तक नहीं पहुँच जाते। उसके पश्चात, आप एक दूसरी ही अवस्था स्तर पर होते हैं।
हमें अभ्यास के लिए कोई दिशा विशेष की ओर सम्मुख होने की आवश्यकता नहीं होती और न ही अभ्यास समाप्त करने के लिए विशेष तरीकों की आवश्यकता होती है। चूंकि फालुन निरन्तर आवर्तन करता है, इसे रोका नहीं जा सकता। यदि फोन की घण्टी बजे या द्वार पर कोई दस्तक दे, आप अभ्यास को समाप्त किए बिना ही सीधे इस कार्य को कर सकते हैं। जब आप कुछ करने के लिए रुकते हैं, फालुन तुरन्त घड़ी की दिशा में घूमेगा और आपके शरीर के बाहर निष्कासित शक्ति को वापस ले लेगा। जो लोग जान बूझ कर ची को बंधित करते हैं और अपने सिर में उड़ेल लेते हैं, आप कैसे भी इसे बंधित करें, यह तब भी निकल जाऐगी। फालुन एक प्रज्ञावान सत्ता है, तथा इन कार्यों को स्वयं करना जानता है। हमें दिशाओं की भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि संपूर्ण ब्रह्माण्ड गतिशील है। आकाशगंगा गतिशील है, तथा नौ ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूर्णन कर रही है। हम ब्रह्माण्ड के इस महान नियम के अनुरुप साधना करते हैं। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, या उत्तार कहां हैं? इनमें से कुछ भी नहीं है। किसी भी दिशा में अभ्यास करना सभी दिशाओं की ओर अभ्यास करना है, तथा किसी भी दिशा में अभ्यास करना पूर्व, दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तार की ओर एक साथ अभ्यास करने के समान है। हमारा फालुन अभ्यासियों को भटकने से बचाऐगा। यह आपको कैसे बचाता है? यदि आप सच्चे अभ्यासी हैं, तो हमारा फालुन आपकी रक्षा करेगा। मैं ब्रह्माण्ड में स्थिर हूँ। यदि कोई आपको हानि पहुंचा सकता है, तो उसे मुझे भी हानि पहुँचाने योग्य होना होगा। सरल शब्दों में, वह व्यक्ति इस ब्रह्माण्ड को हानि पहुँचा सकेगा। जो मैने कहा है वह बहुत अविश्वसनीय लग सकता है। आप इसे बाद में समझेंगे जब आप आगे पढेंग़े। इसके अतिरिक्त और भी वस्तुएं हैं जो मेरे द्वारा बताये जाने के लिए अत्यन्त प्रगाढ़ हैं। हम ऊँचे स्तरों के फा की, सरल से प्रगाढ़ तक, क्रमबध्द व्याख्या करेंगे। यह तब कार्य नहीं करेगा यदि आपका नैतिकगुण पवित्र नहीं है। यदि आप किसी वस्तु की इच्छा रखते हैं, तो आप कठिनाई में पड़ सकते हैं। मुझे पता चला है कि कई अनुभवी अभ्यासियों के फालुन विकृत हो गए हैं। क्यो? आपने अपने अभ्यास के साथ दूसरी वस्तुओं का सम्मिश्रण किया है, और आपने दूसरे लोगों की वस्तुओं को स्वीकार लिया है। फालुन ने तब आपकी रक्षा क्यों नहीं की? यदि यह आपको दिया गया है तो यह आपका है, तथा यह आपके मन द्वारा संचालित होता है। यह इस ब्रह्माण्ड का नियम है कि आपको किसी वस्तु के लिए इच्छा प्रयास है तो उसमें किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि आप साधना अभ्यास नहीं करना चाहते, कोई आपके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता अन्यथा वह वैसा ही होगा जैसे कोई अनुचित कार्य करना। कौन जबरदस्ती आपका हृदय परिवर्तन कर सकता है? आपको स्वयं अपने को अनुशासित करना होगा। सभी विचारधाराओं में से सर्वोतम चुनने का अर्थ है प्रत्येक से वस्तुओं को स्वीकारना। यदि आप रोग के निवारण के लिए आज एक चीगोंग पध्दति का अभ्यास करते हैं और कल किसी और का, तो क्या आपका रोग ठीक हो जाता है? नहीं। आप केवल इसे विलम्बित कर सकते हैं। ऊँचे स्तरों पर अभ्यास के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति एक विचारधारा पर ध्यान दे और उस पर स्थिर रहे। यदि आप एक अभ्यास अपनाते हैं, आप जब तक उस पथ पर पूर्णतया ज्ञानप्राप्ति न कर लें आपको अपने हृदय से इसकी ओर समर्पित होना होगा। उसके बाद ही आप दूसरी विचारधारा का साधना अभ्यास कर सकते हैं, और वह एक भिन्न प्रणाली होगी। क्योंकि एक सच्ची शिक्षाओं की प्रणाली बहुत सुदूर काल से हस्तांतरित हो रही होती है, यह रुपान्तरण की एक अत्यन्त जटिल प्रक्रिया से गुजर चुकी होती है। कुछ लोग इस अनुसार चलते हैं कि अभ्यास करने पर उन्हें कैसा अनुभव होता है। आपके अनुभव का कितना महत्व है? यह कुछ नहीं है। वास्तविक रुपान्तरण प्रक्रिया दूसरे आयाम में फलित होती है तथा अत्यन्त जटिल और पेचीदा होती है। उसमें तनिक भी गलती नहीं हो सकती। यह ठीक एक सुनिश्चित यन्त्र की तरह है जिसमें जैसे ही आप कोई बाहरी पुर्जा लगाऐं तो वह कार्य नही करेगा। आपके शरीर का प्रत्येक आयाम में परिवर्तन में हो रहा है; यह अत्यन्त सूक्ष्म है; और इसमें तनिक भी गलती नहीं हो सकती। मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि साधना व्यक्ति के अपने प्रयत्नों पर निर्भर करती है, जबकि गोंग का रुपान्तरण व्यक्ति के गुरु द्वारा किया जाता है। यदि आप लापरवाही से दूसरे लोगों की वस्तुएं लेते हैं और उन्हें अपने अभ्यास में मिला लेते हैं, तो बाहरी संदेश इस विचारधारा के अभ्यास की वस्तुओं में व्यावधान डालेंगे, और आप भटक जाऐंगे। इसके अलावा, यह साधारण मानव समाज में दृष्टिगोचर होगा तथा साधारण व्यक्तियों की समस्याओं का रुप धारण करेगा। यह आपके इच्छा प्रयास के कारण होता है, तथा दूसरे इसमें मदद नहीं कर सकते। यह आपके ज्ञानोदय के गुण से संबंधित विषय है। साथ ही, जो आप मिला लेते हैं वह आपके गोंग को विकृत कर देगा, और आप उसके पश्चात साधना अभ्यास नहीं कर सकते। यह समस्या आऐगी। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि प्रत्येक के लिए फालुन दाफा का अध्ययन करना आवश्यक है। यदि आप फालुन दाफा का अध्ययन नहीं करते हैं तथा किसी और चीगोंग पध्दतियों से सच्ची शिक्षाऐं प्राप्त कर चुके हैं, मैं उसे भी स्वीकृत करुंगा। हांलाकि, मैं बताना चाहूँगा, कि ऊँचे स्तरों की ओर वास्तविक साधना अभ्यास के लिए, व्यक्ति को एक अभ्यास के साथ एकाग्रचित होना चाहिए। एक बात जो मैं और सामने लाना चाहूँगा : वर्तमान में, मेरे समान कोई और व्यक्ति लोगों को ऊँचे स्तरों की ओर वास्तविक शिक्षा नहीं दे रहा है। भविष्य में आप जानेंगे कि मैने आपके लिए क्या किया है। इस प्रकार, मुझे विश्वास है कि आपका ज्ञानोदय का गुण बहुत निम्न नहीं है। बहुत से लोग ऊँचे स्तरों की ओर साधना का अभ्यास करना चाहते हैं। अब यह आपके ठीक सामने उपलब्ध किया जा रहा है, और हो सकता है आप अभी भी इससे अनभिज्ञ हों। आप एक गुरु की खोज में हर जगह जा चुके हैं और बहुत सा धन व्यय कर चुके हैं, तब भी आपको कुछ प्राप्त नहीं हुआ। आज, यह आपके द्वार पर उपलब्ध किया जा रहा है, और हो सकता है कि आपने इसे नहीं जाना है ! यह विषय इस पर निर्भर करता है कि आपको यह ज्ञानवर्धन हो सकता है तथा क्या आपको बचाया जा सकता है।
1 चीगोंग — एक प्रकार का पारंपरिक चीनी व्यायाम, जिसमें ची या प्राण शक्ति की साधना की जाती है।
2 दाफा — "महान सिध्दान्त या महान मार्ग", नियम।
3 शिनशिंग — मन अथवा हृदय की प्रकृति, नैतिक गुण।
4 "दस दिशाओं का जगत"— बुध्द विचारधारा में जगत की अवधारणा।
5 ची — चीनी संस्कृति में इसे प्राण शक्ति माना जाता है। गोंग की तुलना में यह एक निम्न प्रकार की शक्ति है।
6 त्रि-लोक-फा — बुध्दमत का मानना है कि जीव को संसार के जन्म मरण के क्रम से गुजरना ही होगा जब तक वह साधना अभ्यास में पर-त्रिलोक-फा स्तर अथवा तीन लोकों के पार न पहुंच जाए।
7 गोंग — 1. साधना शक्ति 2. अभ्यास जो ऐसी शक्ति विकसित करता है।
8 शाक्यमुनी — गौतम बुध्द, सिध्दार्थ।
9 धर्म — शाक्यमुनी बुध्द की शिक्षाऐं।
10 "बैल के सींग में खोदना" — एक चीनी मुहावरा, एक बंद रास्ते में जाना।
11 तथागत — बुध्द विचारधारा में फलपदवि प्राप्त ज्ञानप्राप्त व्यक्ति, जिसका स्तर बौधिसत्व और अरहत के ऊपर होता है।
12 वज्र सूत्र — बुध्दमत का एक पौराणिक धर्मशास्त्र।
13 मूल आत्मा — यह मुख्य आत्मा (जु युआनशन) और सह आत्मा (फू युआनशन) में विभाजित है। सांस्कृतिक चीनी विचारधारा में यह माना जाता है कि शरीर में कई चेतनाएं वास करती हैं, जो कुछ विशेष कार्यों को संचालित करती हैं (उदाहरण स्वरुप यह माना जाता है यकृत की अपनी चेतना है जो इसके कार्य को संचालित करती है)।
14 धर्म विनाश काल — शाक्यमुनी बुध्द के अनुसार धर्म विनाशकाल उनके पांच सौ वर्ष बाद आरम्भ होगा, और उनका धर्म उसके बाद मनुष्यों का उध्दार नहीं कर सकेगा।
15 पंच तत्व — धातु, लकड़ी, जल, अग्नि और पृथ्वी।
16 फल पदवि — बुध्द विचारधारा में एक व्यक्ति की उपलब्धि का स्तर। उदाहरण के लिए अरहत, बोधिसत्व, तथागत आदि।
17 द — "नैतिकता", एक बहुमूल्य श्वेत पदार्थ।
18 लेय फंग — चीन में 1960 के दशक के नैतिक प्रदर्शक।
19 कल्प — दो अरब वर्ष की अवधि। यहां इसका उपयोग संख्या के लिए किया गया है।
20 ताई ची — ताओ विचारधारा का प्रतीक चिन्ह जो पश्चिम में यिन-यैंग चिन्ह के नाम से प्रसिध्द है।
21 ह तू लुओ श्यु — पूर्व ऐतिहासिक आकृतियां जो प्राचीन चीन में प्रकट हुईं और माना जाता है कि वे प्रकृति के परिवर्तत के क्रम को उजागर करती हैं।
22 परिवर्तनों की पुस्तक — दिव्य विषयों की एक प्राचीन पुस्तक, झाऊ राजवंश (1100 बी.सी.-221 बी.सी.) के समय से।
23 आठ त्रिआकृतियां — परिवर्तनों की पुस्तक से, एक पूर्व ऐतिहासिक आकृति जो माना जाता है कि प्रकृति के परिवर्तन के क्रम को उजागर करती है।
24 फो तुओ — चीनी भाषा में बुध्द के लिए साहित्यिक शब्द।
25 फु तु — चीनी भाषा में बुध्द के लिए साहित्यिक शब्द।
26 महान सांस्कृतिक आंदोलन — एक वामपंथी राजनीतिक अभियान जिसमें पांरपरिक आदर्शों और संस्कृति की निंदा हुई (1966-1976)।
27 अरहत — बुध्द विचारधारा में फलपदवि प्राप्त ज्ञानप्राप्त प्राणी जो त्रिलोक से बाहर है।
28 तान जिंग, ताओ जांग — साधना अभ्यास की चीनी साहित्यिक कृतियां।
29 बोधिसत्व — बुध्द विचारधारा में फलपदवि प्राप्त एक ज्ञानप्राप्त प्राणि जो अरहत से उच्च किन्तु एक तथागत से निम्न है।
30 दिव्य नेत्र — इसे तीसरा नेत्र भी कहा जाता है।
31 तान — साधक के शरीर में उपस्थित शक्ति पुंज, जिसे दूसरे आयामों से एकत्रित किया जाता है।
32 "जमा की हुई औषधिक जड़ीबूटियों का उपयोग कर शरीर को तपाने की भट्टी बना कर तान बनाना" — आन्तरिक प्रक्रिया के लिए एक ताओ कथन।
33 अन्तिम महाविनाशकाल — साधक समुदाय का मत है कि ब्रह्माण्ड के निरन्तर विकास की तीन अवस्थाऐं हैं (आंरभिक महाविनाशकाल, मध्यमिक महाविनाशकाल, अन्तिम महाविनाशकाल) और अब अन्तिम महाविनाश काल की अन्तिम अवधि चल रही है।
34 लाओ ज़ — ताओ विचारधारा में संस्थापक और ताओ ते चिंग के लेखक, माना जाता है कि वे चीन में पांचवी या चौथी शताब्दी ई.पू. में रहे व शिक्षाऐं दीं।
35 वूवेई — र्निविचार, बिन उद्देश्य।